उदारीकरण की नीति
वर्ष 1991 के दौरान कीमतें बढ़ती गई, आवश्यक पूँजी में कमी आयी, सरकारी व्यय आय से अधिक हो गया तथा विदेशी ऋण की मात्रा इतनी बढ़ गयी कि ब्याज देना भी कठिन हो गया। अतः अर्थव्यवस्था के सुधारार्थ उदारीकरण की नीति अपनानी पड़ी। उदारीकरण की प्रक्रिया में विभिन्न औद्योगिक कार्यक्रम, जिन्हें पहले सार्वजनिक क्षेत्र चलाते थे, अब निजी क्षेत्रों के लिए खोल दिया गया। निजी क्षेत्र के विकास में बाधक सभी नियमों तथा प्रतिबन्धों में छूट दी गई। उदारीकरण की नीति से पिछले सत्रह वर्षों में कई परिवर्तन हुये, किन्तु रोजगार के ढाँचे में विशेष अन्तर नहीं पड़ा। विश्व के माल और सेवाओं की नीति का उद्देश्य रोजगार के नये अवसर निकालना है, किन्तु तेजी से बढ़ती हुई आबादी के हिसाब से यह बहुत कम है। यद्दपि 2000 तक औद्योगिक क्षेत्र में विकास हुआ है, किन्तु अपेक्षित स्तर तक नहीं पहुँचा है। कृषि उत्पादन के क्षेत्र में गिरावट आई है, जिससे खाद्यान्न समस्या पुनः सिर उठा रही है।
भारत में आर्थिक उदारीकरण की प्रक्रिया ने विकास के स्वरूप
1991 में नई आर्थिक नीति के अन्तर्गत उदारीकरण को अपनाने पर भारत के आर्थिक विकास का कायाकल्प हआ। यह एक नये आर्थिक युग का सूत्रपात था। उदारीकरण की इस प्रक्रिया ने विकास के स्वरूप को विभिन्न प्रकार से प्रभावित किया –
1. उदारीकरण की प्रक्रिया के फलस्वरूप भारत की राष्ट्रीय और प्रति व्यक्ति आय में वृद्धि हुई।
2. आर्थिक क्षेत्र में उदारीकरण ने भारतीयों के जीवन की गुणवत्ता बढ़ाई है। गरीबी उन्मूलन पर भी अपना प्रभाव डाला है।
3. भारत के कृषि उत्पादन में पर्याप्त वृद्धि हुई है, जिससे खाद्यान्न के क्षेत्र में देश आत्मनिर्भर हुआ है। प्रतिकूल मौसम की स्थिति में भी खाद्यान्न उत्पादन लगातार बढ़ रहा है, अतः कृषि में हरित क्रान्ति आ गई है।
4. उदारीकरण का ही परिणाम है कि घरेलू पूँजी निवेश बढ़ाने में विदेशी पूँजी निवेश से काफी सहायता प्राप्त हुई है। इससे घरेलु उद्योग धन्धों के उपभोक्ताओं को भी लाभ पहुंच रहा है।
5. उदारीकरण की प्रक्रिया से देश को संचार एवं परिवहन क्षेत्र में उन्नति करने का अवसर मिला है। रेलवे और सड़कों का विस्तार और आधुनिकीकरण हुआ है। भारतीय डाक नेटवर्क संसार का सबसे बड़ा नेटवर्क बन गया है। करोड़ों भारतीय मोबाइल फोन धारक हैं।
6. उदारीकरण का प्रभाव निजीकरण के क्षेत्र में भी देखा जा सकता है। निजीकरण की लहर से धीरे-धीरे सार्वजनिक उपक्रम निजी क्षेत्र को दिए जा रहे हैं, ताकि सरकार अपव्यय से बच सके।
7. उदारीकरण के कारण विवाह, परिवार, नातेदारी, जाति जैसी संस्थाएँ भी प्रभावित हुई हैं। ब्याह धार्मिक संस्कार के स्थान पर एक सामाजिक उत्सव बन गया है। प्रेम विवाह, अन्तर्जातीय विवाहों की संख्या बढ़ी है। एकाकी विवाह लोकप्रिय हुए हैं, जाति प्रथा के बन्धन टूटते जा रहे हैं, आदि।
8. इस प्रक्रिया का एक प्रभाव शिक्षा में गुणात्मक और तकनीकी सुधार भी है। परिवहन तथा संचार साधनों के कारण विभिन देशों की दूरियाँ काफी कम हुई हैं, अतः शिक्षा सम्बन्धी प्रगति से सभी देशों को लाभ मिल रहा है। शिक्षा में कम्प्यूटर एवं इंटरनेट का प्रयोग सामान्य होता जा रहा है।
9. इस प्रक्रिया के ही कारण आज महिलाएं जागरूक होती जा रही हैं। महिला सशक्तीकरण अभियान तेजी से चल रहा है। किरन बेदी, कल्पना चावला, सुनीता एण्डरसन, गाधी के कारण महिलाओं की विश्व में एक अच्छी पहचान बनी है।
10. उदारीकरण एवं वैश्वीकरण के फलस्वरूप उपभोक्ता बाजार का बादशाह बना है। आज आर्थिक क्रियाओं का केन्द्रीय बिन्दु उपभोक्ता है
11. इस प्रक्रिया के फलस्वरूप आर्थिक विकास की दर में पर्याप्त वृद्धि हुई है, अतः देश में गरीबी कुछ कम हुई है। सकल देशीय उत्पादन बढ़ा है। रोजगार के नये-नये क्षेत्र उभरकर सामने आये हैं।
12. उदारीकरण और वैश्वीकरण ने देश में उपभोग करने वाली कत्रिम आवश्यकताओं में वृद्धि की है, जिससे भारतीय समाज धीरे-धीरे उपभोक्ता समाज बनने की दिशा में है। देश में एक पापुलर संस्कृति पनप रही है, जो जन संस्कृति के रूप में सम्पूर्ण में सजातीयता ला रही है। विद्वानों के एक वर्ग के अनुसार उदारीकरण ने श्रमिकों का कमजोर तथा शोषित वर्गों की समस्याएँ कम करने के स्थान पर उन्हें और अधिक बढाया है। विभिन्न क्षेत्रों पर उदारीकरण की नीति का प्रभाव नकारात्मक ही दिखाई दे रहा आयात में वृद्धि और निर्यात में कमी, बेरोजगारी में वृद्धि, राजस्व की हानि एवं विदेशी सामान की भरमार, विनिमय दर में निरन्तर गिरावट, बाजार में आयातत कृषि उत्पादों का अम्बार, विदेशी ऋण के बोझ में बढ़ोत्तरी, केन्द्र एवं राज्य सरकारों का दिवालियापन जैसी समस्याएँ भी किसी न किसी रूप में उदारीरकण के ही प्रभाव हैं।
भारत में उदारीकरण की प्रक्रिया की समालोचनात्मक/आलोचनात्मक(Criticism)व्याख्या
उदारीकरण से तात्पर्य व्यापार व अर्थव्यवस्था को गति प्रदान करने हेतु नियमों को सरल करने से है। उदारीकरण में अनेक औद्योगिक कार्यक्रम जिन्हें पहले सार्वजनिक क्षेत्र चलाते थे, उन्हें अब निजी क्षेत्रों के लिए भी खोल दिया गया। उन सब नियमों का प्रतिबन्धों को उदार कर दिया गया जो निजी क्षेत्र के विकास में रुकावट डालते थे इस नीति से विगत कई वर्षों से कई प्रत्यक्ष व अप्रत्यक्ष परिवर्तन दृष्टिगोचर हए हैं । यद्यपि इन परिवर्तनों से रोजगर के ढाँचे में कोई विशेष परिवर्तन नहीं हआ है । फिर भी कुछ प्रत्यक्ष परिवर्तन इस प्रकार हैं – संचार के क्षेत्र में कम दामों पर उत्तम सेवाएं जैसे – दूरभाष के अच्छे उपकरण, कई खाद्य उत्पादन कम्पनियाँ जैसे – पेप्सी व कोका कोला ने देश में उत्पादन इकाइयाँ आरम्भ करके शीतल पेय और कछ अन्य खाद्य पदार्थों के बाजार में अच्छा स्थान बना लिया है। विश्व के माल व सेवाओं के व्यापार में भारत की भागीदारी बढ़ी है । लेकिन अभी भी काफी धीमी प्रगति है। अन्य देशों ने भारत में माल और सेवाओं के उत्पादन में निवेश बढाया है । यद्यपि इस नीति का उद्देश्य रोजगार के नये अवसर निकालना है। कुछ अवसर निकल भी रहे हैं। परन्तु देश की बढ़ती आवश्यकता के हिसाब से आज भी यह बहुत कम है खासकर ग्रामीण क्षेत्रों में।
यद्यपि 2000 तक औद्योगिक क्षेत्र में कुछ विकास हुआ है लेकिन अपेक्षित स्तर तक नहीं पहुँच सका है | उदारीकरण की प्रक्रिया ने विश्व के आर्थिक विकास की कायापलट ही कर दी है । भारत में उदारीकरण का प्रारम्भ 1991 में हुआ था। यह एक नये आर्थिक युग का सूत्रपात था । उदारीकरण से राष्ट्रीय आय व प्रति व्यक्ति आय में वृद्धि हई। उदारीकरण से कृषि क्षेत्र भी लाभान्वित हुआ । कृषि के क्षेत्र में नवीन तकनीकों के द्वारा खाद्यान्नों का रिकार्ड उत्पादन हो रहा है और देश इस मामले में आत्मनिर्भर हो गया। उदारीकरण के कारण होने वाले तीव्र विकास के कई प्रमाण हैं | इसका प्रभाव गरीबी उन्मूलन पर भी प्रभाव पड़ा है। उदारीकरण के कारण निजीकरण को बढ़ावा मिला है। विकसित देशों के विभिन्न उपक्रम निजी संस्थाओं द्वारा चलाये जाते हैं तथा अच्छा लाभ भी कमाते हैं। इसी से प्रेरणा पाकर उदारीकरण की प्रक्रिया के अन्तर्गत विकासशील देशों में भी निजीकरण की प्रक्रिया बढ़ रही है । धीरे-धीरे इन देशों में विभिन्न उपक्रमों का निजीकरण हो रहा है ।
1991 में भारत ने नई आर्थिक नीति को अंगीकार किया, जिसके पूर्व तक आर्थिक विकास की मिश्रित अर्थव्यवस्था प्रचलित रही। मिश्रित अर्थव्यवस्था की नीति को इस कारण अपनाया गया था कि लोहा तथा कोयला खनन, इस्पात-शक्ति एवं सड़कों की महत्वपर्ण उद्योग सरकारी नियन्त्रण में होने चाहिए, ताकि अर्थव्यवस्था के अलग-अलग में विकासात्मक कार्यों के लिए आवश्यक संसाधन सरलता से अपलब्ध हो सकें। दूसरी ओर निजी क्षेत्रों को उद्योग तथा व्यापार के क्षेत्रों में कानून के अन्तर्गत नियमों एवं प्रतिबन्धों को स्वीकार करते हए कार्य करने की अनुमति दी गई थी। यह कदम इस कारण से उठायदान गया था कि देश की धन सम्पत्ति और संसाधन मात्र कुछ ही लोगों के हाथों में केन्द्रित था। सार्वजनिक क्षेत्र में सरकार ने अपनी आय का काफी बड़ा हिस्सा निवेश में लगाया। इस दिन नीति का मुख्य लक्ष्य था – गरीबी उन्मूलन तथा सामाजिक न्याय के आधार पर आर्थिक सम्बन्धी विकास की प्राप्ति।
कालान्तर में भारतीय सार्वजनिक क्षेत्र अत्यन्त विस्तृत होता गया। फलस्वरूप भारत – असम सरकार की आय का एक बहुत बड़ा भाग विकास के अन्य कार्यों की अपेक्षा सार्वजनिक जिन क्षेत्र के उद्यमों की धन आपूर्ति में ही निवेश होने लगा। इससे औद्योगिक उत्पादन में वृद्धि हुई, शिक्षा संस्थाओं ने वैज्ञानिकों और तकनीशियों को तैयार किया, जिससे देश को किया औद्योगिक एवं प्राविधिक विकास करने में काफी सफलता मिली। इस नीति के कुछ नकारात्मक फल भी देखने को मिले, जैसे औद्योगिक विकास आशानुकूल नहीं हुआ, क्योंकि इसकी धीमी गति से कारण वही थे, जो निजी क्षेत्र पर नियन्त्रण करने के लिए तैयार किए गये थे। सार्वजनिक क्षेत्र को सुचारु रूप से संचालित और नियन्त्रित करने के उद्देश्य से जिस कि को सरकारी ढाँचे को खड़ा किया गया था, वही औद्योगिक विकास के मार्ग की बाधा बन गया। फलस्वरूप आवश्यक पूँजी में कमी आई, वस्तुओं एवं सेवाओं की कीमतें बढ़ीं और सरकारी व्यय उसकी आय से अधिक होता गया। विदेशी ऋण का भार इतना बढ़ गया कि उसका ब्याज चुकाना भी कठिन हो गया। अतः भारतीय अर्थव्यवस्था को आर्थिक विकास के मार्ग पर तेजी से लाने के लिए एक कार्य योजना ‘उदारीकरण’ (Liberalization) की तैयार की गई।
उदारीकरण की नीति के अन्तर्गत कई औद्योगिक कार्यक्रम, जो पहले सार्वजनिक क्षेत्रों द्वारा चलाए जाते हैं, उन्हें अब निजी क्षेत्रों के लिए खोल दिया गया। उन समस्त प्रतिबन्धों और नियमों को छूट दी गई, जो कि पहले निजी क्षेत्र के विकास में बाधा पैदा करते थे। उदारीकरण की नीति अपनाने के बाद गत दो दशकों में अनेक प्रत्यक्ष व अप्रत्यक्ष परिवर्तन हए हैं। यद्यपि देश के रोजगार के ढाँचे में विशेष अन्तर नहीं आया है, किन्तु कुछ प्रत्यक्ष परिवर्तन दिखाई दे रहे हैं, यथा – संसार क्षेत्र में कम कीमतों में उत्तम सेवाएँ, यथा टेलीफोन के अच्छे उपकरण उपलब्ध होना। कोका कोला तथा पैप्सी कम्पनियों द्वारा भारत में ही उत्पादन इकाइयों को आरम्भ करके शीतल पेय और नये खाद्य पदार्थों का विपणन करना। विश्व के माल और सेवाओं के व्यापार में देश की हिस्सेदारी बढ़ती जा रही है, किन्तु अभी भी काफी धीमी प्रगति है। विश्व के अनेक देशों ने भारत में माल तथा सेवाओं के उत्पादन में निवेश को बढ़ाया है। उदारीकरण की नीति का उद्देश्य यद्यपि रोजगार के नये-नये अवसर उपलब्ध कराना है और कई अवसर उपलब्ध भी हो रहे हैं, किन्तु भारत की निरन्तर बढ़ती हुई आवश्यकता के अनुपात से आज भी बहुत ही कम है, विशेष रूप से ग्रामीण क्षेत्रों में स्पष्ट है कि औद्योगिक क्षेत्र में कुछ विकास तो अवश्य हुआ है, किन्तु अभी तक अपेक्षित स्तर तक पहुँचने में सफल नहीं हो पाया है।
आपको ये भी पसन्द आयेगा-
- सामाजिक परिवर्तन में बाधक कारक का वर्णन | Factor resisting social change in hindi
-
सामाजिक परिवर्तन के विभिन्न स्वरूप क्या है? | Forms of social change in hindi
-
सामाजिक उद्विकास की अवधारणा, अर्थ, सिद्धान्त तथा विशेषताएं | Social Evolution in hindi
-
सामाजिक उद्विकास के प्रमुख कारक | Factors of Social Evolution in hindi
- स्पेंसर के सामाजिक उद्विकास का सिद्धांत | Spencer theory of Social Evolution in hindi
-
समाज और संस्कृति के उद्विकास के स्तरों पर निबन्ध | Social Evolution Theory of Morgan in hindi
-
सामाजिक प्रगति की अवधारणा, अर्थ तथा विशेषताएँ क्या है | What is Social Progress in hindi
-
सामाजिक प्रगति में सहायक दशाएँ और कसौटियाँ | Conditions and Criteria for Social Progress in Hindi
-
सामाजिक रूपांतरण क्या है और स्वतंत्रता के बाद की रणनीति | What is Social Transformation in Hindi
-
सामाजिक संरचना क्या है, अवधारणा और विशेषताएँ | Change in Social Structure in Hindi
-
सामाजिक परिवर्तन के प्रमुख सिद्धांत | Theories of Social Change in Hindi
-
सामाजिक परिवर्तन के प्रमुख कारक | Factors of Social Change in Hindi
-
सामाजिक और सांस्कृतिक परिवर्तन में अन्तर | Difference Between Social and Cultural Change in Hindi
-
सामाजिक परिवर्तन के स्तर और दशाओं का वर्णन | Levels of Social Change in hindi
-
सामाजिक परिवर्तन की प्रक्रियाओं से आप क्या समझते हैं? | Process of Social Change in Hindi
-
धर्मनिरपेक्षीकरण क्या हैं? तथा धर्मनिरपेक्षीकरण के प्रभाव | Whats is Secularization in Hindi
-
आर्थिक विकास की बदलती अवधारणाएँ | Changing Conceptions of Development in Hindi
-
विकास के विभिन्न समीक्षात्मक परिप्रेक्ष्य की समीक्षा | Critical Perspectives of Development in Hindi
Complete Reading List-
इतिहास/History–
- प्राचीन इतिहास / Ancient History in Hindi
- मध्यकालीन इतिहास / Medieval History of India
- आधुनिक इतिहास / Modern History
समाजशास्त्र/Sociology–
Disclaimer -- Hindiguider.com does not own this book, PDF Materials, Images, neither created nor scanned. We just provide the Images and PDF links already available on the internet or created by HindiGuider.com. If any way it violates the law or has any issues then kindly mail us: 24Hindiguider@gmail.com