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तैमूर के भारत पर आक्रमण के कारण और प्रभाव

तैमूर का परिचय

तैमूर का जन्म 1336 ई० में ट्रांस-आकिस्याना के केश नामक स्थान पर हुआ था। वह एक तुर्क मुसलमान था। 33 वर्ष की अवस्था में वह समरकन्द का सुल्तान बना। गद्दी पर बैठते ही उसने मध्य एशिया के कई देशों पर आक्रमण किया और उन्हें पराजित किया। तत्पश्चात् उसने भारत को जीतने की योजना बनाई।

भारत पर आक्रमण करने के कारण तैमूर के भारत पर आक्रमण करने के कई कारण थे। इनमें से प्रमुख ये थे-

(1) महमूद गजनवी का तरह तैमूर भी भारत की विपुल सम्पत्ति को लूट कर ले जाना चाहता था।

(2) वह भारत में इस्लाम धर्म का प्रचार करना चाहता था।

(3) तुगलक साम्राज्य की गिरती हुई दशा ने भी तैमूर को आक्रमण करने के लिए प्रोत्साहित किया।

तैमूर का आक्रमण-

24 सितम्बर, 1398 ई० को तैमूर ने एक विशाल सेना लेकर सिन्ध नदी पार कर लिया। वह पाकपटन, दिपालपुर, भटनेर, सिरसुती आदि प्रदेशों पर अपना अधिकार करता हुआ दिल्ली के पास आ धमका। डॉ० ईश्वरी प्रसाद के शब्दों में, “जहाँ-जहाँ तैमूर का दल पहुँच जाता था, वहाँ के भय-विह्वल निवासी अपनी सम्पत्ति तथा गृह उन बर्बरों के लिए छोड़ कर भाग उठते थे ।” इस प्रकार लूट-पाट और लोगों की हत्या करता हुआ तैमूर दिल्ली के निकट जब पहुँचा तो दिल्ली के सुल्तान महमूद तुगलक ने उसका सामना किया।

दिल्ली की सेना बड़ी वीरता से लड़ी परन्तु उसको पराजित होना पड़ा। 18 दिसम्बर, 1398 ई० को दिल्ली पर तैमूर का आधिपत्य स्थापित हो गया। तैमूर ने शहर को लूटने तथा नर-संहार की आज्ञा दे दी। सैनिकों को अपार विपुल धनराशि मिली। हजारों लोगों को गुलाम बना लिया गया। इससे पहले दिल्ली पर ऐसा संकट कभी नहीं आया था।

15 दिनों तक दिल्ली में आनन्दोत्सव मनाने के बाद तैमूर ने दिल्ली से समरकन्द के के लिए प्रस्थान किया। फिरोजाबाद एवं मेरठ को रौंदता हुआ वह जम्मू पहुँचा और वहाँ के राजा को हरा कर उसे इस्लाम धर्म स्वीकार करने के लिए बाध्य किया। भारत की सीमाओं को छोड़ने के पहले तैमूर ने खिज्र खाँ सैयद को मुल्तान, लाहौर तथा दिपालपुर का सूबेदार नियुक्त किया। 19 मार्च, 1399 ई० को उसने स्वदेश लौटने के लिए सिन्धु नदी पार की।

तैमूर के आक्रमण का भारत पर प्रभाव-

(1) तैमूर के लौटने के बाद उत्तरी भारत में दुःख तथा अराजकता फैल गई। उसने प्रदेशों व नगरों को इतनी बुरी तरह लूटा, जलाया और नष्ट-भ्रष्ट किया, कि इन प्रदेशों की अपनी पूर्व समृद्धि पुनः प्राप्त करने में अनेक वर्ष लग गये।

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(2) तैमर की लूट से देश की आर्थिक दशा बहुत ही शोचनीय हो गई। किसानों की दशा अत्यन्त बुरी हो गई।

(3) तैमूर ने भारत के मन्दिरों एवं कला के उत्कष्ट अवशेषों को नष्ट-भ्रष्ट किया। वह यहाँ के प्रसिद्ध कारीगरों एवं कलाकारों को अपने साथ ले गया। इस प्रकार तैमूर के आक्रमण से भारत को कला की दृष्टि से बड़ी क्षति पहुँची।

(4) तैमूर के आक्रमण का एक अन्य प्रभाव यह हुआ कि दिल्ली नगर उजड़ गयी। नगर के आस-पास भयंकर दुर्भिक्ष पड़ गया। लाखों शवों के सड़ने से जल और वायु दूषित हो गये और भयानक महामारी फैल गई। इतिहासकार बदायूँनी ने लिखा है कि जो लोग बच रहे थे वे अकाल और महामारी के कारण मर गये और दो महीने तक दिल्ली में किसी पक्षी ने भी पर नहीं मारा ।’

सिकन्दर लोदी और उसकी उपलब्धियों का वर्णन

लोदी वंश के प्रमुख शासक तुगलक साम्राज्य के पतन के बाद 1414 ई० में खिज्र खाँ दिल्ली का सुल्तान बना। उसने सैयद वंश की नींव डाली। सैयद वंश का अन्तिम शासक अलाउद्दीन आलमशाह हुआ । इस समय चारों ओर विद्रोह हो रहे थे, प्रान्तीय शासक स्वतन्त्र हो रहे थे। सुल्तान बदायूँ को चला गया और वहीं रहने लगा। अतः अमीरों ने बहलोल को 1451 ई० में दिल्ली की गद्दी पर बैठाया। उस समय बहलोल सरहिन्द का सूबेदार था। उसने लोदी वंश की नींव डाली । सल्तनत काल का यह पाँचवाँ और अन्तिम वंश था।

(1) बहलोल लोदी (1451-1489 ई०)-

बहलोल एक वीर एवं योग्य शासक था। दिल्ली में अपनी स्थिति को सुरक्षित एवं दृढ़ करने के बाद बहलोल ने राज्य बढ़ाने की ओर ध्यान दिया । उसने काफी लम्बे संघर्ष के बाद सन् 1476 ई० में जौनपुर के शासक को पराजित किया और अपने पुत्र बारबकशाह को जौनपुर का सूबेदार नियुक्त किया। सने कालपी, धौलपर, सिन्ध, मेवात और दोआब के विद्रोहों का दमन करके वहाँ शान्ति स्थापित की।

बहलोल का चरित्र-

बहलोल पवित्र विचारों वाला, चरित्रवान, ईमानदार एवं उदार शासक था। वह दीन-दुखियों का सदैव ध्यान रखता था। वह न्यायप्रिय शासक था। जनता की फरियाद वह स्वयं सुनता था। निरक्षर होते हुए भी वह विद्वानों का सम्मान करता था। हिन्दओ के प्रति उसका व्यवहार बरा न था।

(2) सिकन्दर लोदी (1489-1517 ई०)-

निजाम खाँ सिकन्दर लोदी के नाम से गद्दी पर बैठा था। गद्दी पर बैठते ही उसने अपने भाई बारबक शाह को पराजित किया तथा जौनपुर पर अपना आधिपत्य जमा लिया। उसने बिहार के शासक हुसैन शाह शर्की को भी परास्त किया तथा बिहार पर अधिकार जमा लिया। बंगाल के शासक ने डरकर सिकन्दर लोदी से मित्रता कर ली। सुल्तान ने विद्रोही हिन्दू राजाओं का दमन किया तथा दिल्ली सल्तनत के पूर्व गौरव को पुनःस्थापित किया। अफगान सरदारों को उसने कठोरता से अपने वश में कर लिया। वह उनका हित-चिन्तक भी था।

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1489 ई० में बहलोल लोदी की मृत्यु होने के बाद उसका पुत्र निजाम खाँ सिकन्दर लोदी के नाम से सिंहासनारूढ़ हुआ। बंगाल के शासक से उसका मैत्रीपूर्ण सम्बन्ध स्थापित हो गया। धौलपुर, ग्वालियर, चन्देरी तथा अन्य स्थानों पर उसने अपना आधिपत्य स्थापित कर लिया। अफगान सरदारों पर उसने कठोर नियन्त्रण रक्खा और उनके द्वारा रचे गये षड्यन्त्रों का पता लगाकर उन्हें कठोर दण्ड दिया। सन् 1504 ई० में सुल्तान ने वर्तमान आगरा नगर की नींव डाली।

सिकन्दर लोदी का चरित्र लोदी वंश का यह सर्वश्रेष्ठ शासक था। उसने अपनी योग्यता एवं नीतिनिपुणता से साम्राज्य में पुनः व्यवस्था स्थापित की। अमीरों पर वह कड़ा नियन्त्रण रखता था। उसने शासन से भ्रष्टाचार को दूर किया और कृषि व व्यापार को बढ़ावा दिया। वह राजसी ठाट-बाट से दरबार करता था। वह न्यायप्रिय शासक था। वह पीड़ितों की फरियाद स्वयं सुनता था और पक्षपात रहित न्याय करता था। गरीबों के प्रति उसके हृदय में अगाध प्रेम था।

(3) इब्राहीम लोदी (1517-1526 ई०)-

1517 ई० में सिकन्दर लोदी के बाद उसका पुत्र इब्राहीम लोदी सिंहासन पर बैठा। गद्दी प्राप्त करने के बाद इब्राहीम लोदी अभिमानी तथा निर्दयी हो गया और अफगान अमीरों के साथ अत्यन्त असभ्यता का व्यवहार करने लगा। सुल्तान के इस व्यवहार से अमीरों में असन्तोष फैल गया। बिहार के शासक दरिया खाँ ने अपने को स्वतन्त्र घोषित कर दिया। पंजाब के सूबेदार दौलत खाँ के बेटे को इब्राहीम ने मरवा डाला, अतः वह विद्रोही बन गया। उसने काबुल के बादशाह बाबर को भारत पर चढ़ाई करने के लिए आमन्त्रित किया।

बाबर बहुत समय से हिन्दुस्तान की शस्यस्यामला भूमि पर लोलुप दृष्टि गड़ाये हुए था। अतः इस आमन्त्रण का उसने हार्दिक स्वागत किया। वह एक विशाल सेना लेकर भारतवर्ष की ओर चल पड़ा और पानीपत के मैदान में 1526 ई० में इब्राहीम को पराजित किया। दिल्ली राज्य पर बाबर का अधिकार स्थापित हो गया और इस प्रकार दिल्ली सल्तनत का अन्त हो गया।

 

 

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