राष्ट्रीय शिक्षा नीति 1986 की प्रमुख विशेषताओं का वर्णन कीजिए।

राष्ट्रीय शिक्षा नीति 1986 की प्रमुख विशेषताओं का वर्णन कीजिए।

 

बाल्यावस्था में प्रारम्भिक देखभाल एवं शिक्षा

राष्ट्रीय नीति छोटे बच्चों, विशेष रूप से उन बच्चों के, जिनमें प्रथम पीढ़ी के सीखने वालों की प्रधानता है, उनके विकास में निवेश पर बल देती है। प्रारम्भिक बाल्यावस्था में देखभाल और शिक्षा को उच्च प्राथमिकता दी जायेगी और एकीकृत बाल विकास सेवा कार्यक्रम के साथ जहाँ भी सम्भव होगा समुचित रूप से उसका एकीकरण किया जायेगा।

इस कार्यक्रम को बाल केन्द्रित बनाते हुए इस स्तर पर खेलकूद तथा रुचि के विकास पर जोर दिया जायेगा और उसे पढ़ने-लिखने की पुरातन विधियों से दूर रखा जायेगा। स्थानीय समुदाय को इस प्रकार के कार्यक्रमों में पूर्णतया आवेष्टित किया जायेगा।

 

प्रारम्भिक शिक्षा

प्रारम्भिक शिक्षा में नया प्रतिबल दो पक्षों पर विशेष जोर देगा-

(1) 14 वर्ष की आयु के बच्चों का सार्वभौमिक नामांकन और सार्वभौमिक अवधारणा।

(2) शिक्षा की गुणवत्ता में ठोस सुधार।

 

बाल केन्द्रित उपागम

प्राथमिक स्तर पर बाल केन्द्रित एवं क्रिया आधारित अधिगम की प्रक्रिया अपनायी जायेगी। प्रथम पीढ़ी के शिक्षार्थियों को अपनी गति से बढ़ने देने के लिये पूरक उपचारात्मक शिक्षा की व्यवस्था की जायेगी। शारीरिक दण्ड को शैक्षिक प्रणाली से समूल नष्ट कर दिया जायेगा और विद्यालय का समय बच्चों की सुविधानुसार समायोजित किया जायेगा। श्याम पट्ट संचालन (Operation Black Board) समस्त देश में प्राथमिक विद्यालयों के उन्नयन के लिये प्रारंभ किया जायेगा। सरकार, स्थानीय संस्थाएँ, स्वयं सेवी अभिकरणों और व्यक्तियों को पूर्णतया आवेष्टित किया जायेगा।

 

अनौपचारिक शिक्षा

विद्यालय छोड़ने वालों, उन आदिवासी बच्चों जहाँ विद्यालय नहीं हैं, कार्यरत बालक-बालिकाओं के लिये अनौपचारिक शिक्षा का विशाल एवं सुसम्बद्ध कार्यक्रम प्रारम्भ किया जायेगा। अनौपचारिक शिक्षा केन्द्रों के अधिगम पर्यावरण को उन्नत बनाने हेतु आधुनिक उपकरणों की सहायता ली जायेगी। स्थानीय प्रतिभावान एवं समर्पित युवा-युवतियों को अनुदेशक के रूप में कार्य करने का दायित्व सौंपा जायेगा तथा उन्हें प्रशिक्षित किया। जायेगा। अनौपचारिक शिक्षा की गुणवत्ता बनाए रखने का प्रयास किया जायेगा। ‘उच्चकोटि की शिक्षण सामग्री का विकास कर सभी छात्रों को निःशुल्क उपलब्ध कराई। जावेगी। अनौपचारिक शिक्षा के कार्यक्रमों में खेलकूद, सांस्कृतिक गतिविधियाँ, भ्रमण आदि क्रियाकलापों का समावेश किया जायेगा।

अनौपचारिक शिक्षा का संचालन स्वयंसेवी अभिकरणों और पंचायती राज संस्थाओं द्वारा सम्पन्न करवाया जायेगा तथा इन संस्थाओं को पर्याप्त मात्रा में और समय से वित्तीय सहायता उपलब्ध कराई जायेगी। वे सभी बच्चे जो 1990 तक 11 वर्ष की अवस्था में पहुँचेंगे, पाँच वर्ष की विद्यालयी शिक्षा अथवा उसके समकक्ष अनौपचारिक घारा द्वारा शिक्षा प्राप्त कर लेंगे। इसी प्रकार 1995 तक 14 वर्ष की अवस्था तक सभी बच्चों के लिए निःशुल्क एवं अनिवार्य शिक्षा का प्रबंध कर दिया जायेगा।

 

माध्यमिक शिक्षा

“माध्यमिक शिक्षा छात्रों को विज्ञान, मानविकी और समाज विज्ञानों की विशिष्ट भूमिकाओं से अवगत कराना आरम्भ करती है। यह एक उपयुक्त अवस्था होती है, जब बच्चों को इतिहास-बोध एवं राष्ट्रीय परिप्रेक्ष्य से परिचित कराया जाये और उन्हें एक नागरिक के रूप में अपने संवैधानिक कर्तव्य और अधिकार समझने के अवसर प्रदान किये जायें। उचित रूप से रचित पाठयक्रम द्वारा उनमें स्वस्थ कर्मशीलता (Work ethos) और मानवीय तथा सग्रंथित संस्कृति के मूल्यों को सचेतन रूप से हृदयंगम कराया जायेगा। विशिष्ट संस्थाओं द्वारा इस अवस्था में व्यवसायीकरण, आर्थिक वृद्धि के लिये मूल्यवान जनशक्ति उपलब्ध कराई जा सकी है। माध्यमिक शिक्षा के उपागम (Approach) को विस्तृत बनाया जायेगा जिससे उसमें उन क्षेत्रों को भी समाहित किया जा सकेगा जो उसके द्वारा अभी तक असेवित रहे हैं। अन्य क्षेत्रों में मुख्य बल दृढ़ीकरण पर दिया। जायेगा।”

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गति-निर्धारक विद्यालय (Pace-setting schools)

विशिष्ट प्रतिभावान अथवा रुचिशील बालकों को तीव्र गति से आगे बढ़ाने के लिये अच्छे स्तर की शिक्षा उपलब्ध कराये जाने के प्रयास किये जायेंगे, ताकि उनके अभिभावकों की आर्थिक विपन्नता उनके मार्ग में रोड़े न अटका सके।

“इस उद्देश्य की सम्पूर्ति हेतु देश के विभिन्न भागों में एक निश्चित प्रतिमान (Pattern) के अनुरूप गति निर्धारक विद्यालय स्थापित किये जायेंगे। इनमें नई-नई विधाओं को अपनाने और प्रयोग करने की छूट रहेगी। इन विद्यालयों के मुख्य उद्देश्य होंगे- श्रेष्ठता के उद्देश्य की पूर्ति, समदृष्टि एवं सामाजिक न्याय सहित देश के विभिन्न भागों के प्रतिभासम्पन्न बालकों को साथ रहने और शिक्षा ग्रहण करने के अवसर प्रदान कर राष्ट्रीय एकता को प्रोत्साहन देना, उनकी सम्भावनाओं को पूर्णतया विकसित करने तथा विद्यालय उन्नयन के राष्ट्रव्यापी कार्यक्रम में उत्प्रेरक बनाना। ये विद्यालय पूर्णतया आवासीय एवं निःशुल्क होंगे।”

 

व्यवसायीकरण

व्यक्ति की रोजगार योग्यता में वृद्धि करने, कुशल मानव-शक्ति का विकास करने, अरुचिपूर्ण निरुद्देश्य उच्च शिक्षा प्राप्त करने वाले युवक-युवतियों को एक विकल्प प्रस्तुत करने हेतु व्यावसायिक शिक्षा का प्रारम्भ करना होगा। इसका मुख्य उद्देश्य। व्यवसायों में छात्रों को प्रस्तुत करना है। व्यावसायिक पाठ्यक्रम माध्यमिक स्तर के पश्चात ही लाग किए जायेंगे परन्त योजना को लचीली रखते हुए कक्षा आत के पश्चात भी ये पाठ्यक्रम उपलब्ध कराये जा सकेंगे। व्यावसायिक पाठ्यक्रमों अथवा संस्थाओं की स्थापना सरकार तथा सार्वजनिक और निजी क्षेत्रों में सेवा नियोजकों का उत्तरदायित्व होगा। यह प्रस्तावित किया गया कि उच्चतर माध्यमिक छात्रों का 10 प्रतिशत 1990 और 25 प्रतिशत 1995 तक व्यावसायिक पाठ्यक्रमों के अन्तर्गत आ जायेंगे।

 

उच्च शिक्षा

उच्च शिक्षा का निरन्तर अन-अन्वेषित क्षेत्रों में प्रवेश करते हुए अभूतपूर्व रूप से गतिशील होना चिन्तनीय है। आज भारत में लगभग 150 विश्वविद्यालय एवं 5000 महाविद्यालय हैं। इन संस्थाओं की सर्वांगीण उन्नति के लिये भविष्य में मुख्य बल वर्तमान संस्थाओं में सुविधाओं के दृढ़ीकरण एवं प्रसार पर दिया जायेगा। बड़ी संख्या में स्वायत्तशासी महाविद्यालयों को विकसित होने में सहायता दी जायेगी। पाठ्यक्रमों ओर कार्यक्रमों की पुनर्रचना विशिष्टीकरण की माँग की पूर्ति हेतु की जायेगी। भाषायी क्षमता पर विशेष बल दिया जायेगा। न्यूनतम सविधाओं की व्यवस्था की जायेगी और प्रवेश को। सामर्थ्यानुसार नियंत्रित किया जायेगा। शिक्षण विधियों, दृश्य-श्रव्य सामग्री, विद्युत उपकरणों विज्ञान एवं तकनीकी सामग्री के विकास, शोध तथा शिक्षक अभिनवीनीकरण पर ध्यान दिया जावेगा। विश्वविद्यालयों में शोध कार्यों पर अधिक बल दिया जायेगा तथा उसकी गुणवत्ता सुनिश्चित करने के उपाय किये जायेंगे।

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खुला विश्वविद्यालय और दूरस्थ शिक्षा

उच्च शिक्षा के अवसरों में वृद्धि करने तथा शिक्षा का प्रजातांत्रीकरण करने हेतु खुले विश्वविद्यालय की प्रणाली प्रारम्भ की जायेगी। इस शक्तिशाली साधन का विकास सावधानीपूर्वक तथा प्रसार सतर्कता से किया जायेगा।

 

उपाधियों का नौकरियों से विलगन

चयनित क्षेत्रों में उपाधियों को नौकरी से विलग करने का प्रयास किया जायेगा। विलगन के सहवर्ती रूप में राष्ट्रीय परीक्षण सेवा की स्थापना उपयुक्त क्रम में की जायेगी।

 

ग्रामीण विश्वविद्यालय

ग्रामीण विश्वविद्यालय के नवीन प्रतिमान का दृढीकरण तथा विकास महात्मा गाँधी के शिक्षा सम्बन्धी क्रांतिकारी विचारों के अनुरूप किया जायेगा, जिससे वह ग्रामीण क्षेत्रों के रूपान्तरण हेत निम्नतम स्तर पर सूक्ष्म नियोजन की चनौतियाँ स्वीकार करें। गाँधीवादी बेसिक शिक्षा की संस्थाओं और कार्यक्रमों को सहायता प्रदान की जायेगी। 

 

तकनीकी और प्रबन्ध शिक्षा

वर्तमान और उभरती प्रौद्योगिकी दोनों में सतत् शिक्षा को प्रोत्साहन दिया जायेगा। चूंकि संगणक (Computer) महत्वपर्ण और सर्वव्यापक साधन बन गया है, औपचारिक पाठ्क्रमों में प्रवेश की कड़ी शर्तों के कारण साधारण लोगों को तकनीकी एवं प्रबन्धकीय शिक्षा नहीं मिल पाती है ऐसे लोगों के लिए दरस्थ शिक्षण सुविधाएं उपलब्ध कराई जायेगी। महिलाओं, आर्थिक तथा सामाजिक रूप से पिछडे, विकलांगों के लाभ कालय तकनीकी शिक्षा के लिए उचित और सलभ कार्यक्रम तैयार किये जायेंगे।

“छात्रों को जीवनवृत्ति के विकल्प के रूप में स्व-नियोजन पर विचार करने के लिए प्रेरित करने हेतु उपाधि एवं उपाधि-पत्र कार्यक्रमों में प्रमाणीय एवं वैकल्पिक-पाठयक्रमों द्वारा उद्यम संस्थापक (Entrepreneurship) का प्रशिक्षण प्रदान किया जायेगा।”

 

नवाचार शोध और विकास

“शैक्षिक प्रक्रियाओं के पुनरुज्जीवन एवं नवीनीकरण के साधन स्वरूप सभी उच्च तकनीकी संस्थाएँ शोध का उत्तरदायित्व लेंगी।” 

 

सभी स्तरों पर दक्षता एवं प्रभावकारिता बढ़ाना

तकनीकी एवं प्रबन्ध शिक्षा को प्रभावोत्पादक बनाने और श्रेष्ठता के उन्नयन हेतु निम्नलिखित सुविधाओं का विस्तार किया जायेगा-

(1) पर्याप्त छात्रावास सुविधा, विशेष रूप से कन्याओं के लिये उपलब्ध कराना।

(2) क्रीड़ा, सृजनात्मक कार्य एवं सांस्कृतिक सुविधाओं का विस्तार।

(3) शिक्षण, शोध अधिगम संसाधन सामग्री का विकास और प्रसार।

(4) चयनित संस्थाओं को शैक्षिक, प्रशासनिक और वित्तीय स्वतंत्रता दी जायेगी।

 

प्रबन्ध कार्यभार और परिवर्तन

अखिल भारतीय तकनीकी शिक्षा परिषद को नियोजन प्रतिमान एवं स्तर के निर्धारण एवं अनुरक्षण, प्रभावीकरण प्राथमिकता क्षेत्रों के निधिकरण, प्रबोधन (Monitoring) एवं मूल्यांकन प्रमाणीकरण एवं अंकों की समतुल्यता के अनुरक्षण और तकनीकी एवं प्रबन्ध शिक्षा के समेकित विकास के सुनिश्चयन हेतु वैधानिक अधिकार प्रदान किये जायेंगे।

 

व्यवस्था का क्रियाशीलन

शिक्षा का प्रबन्ध बौद्धिक अनुशासन, उद्देश्य की गम्भीरता और नवाचार एवं सृजनात्मकता के लिए आवश्यक स्वतंत्रता के वातावरण में होना चाहिये। राष्ट्र ने शिक्षा प्रणाली में असीमित विश्वास प्रकट किया है। लोगों को अधिकार है कि वे ठोस परिणामों की प्रत्याशा करें। इसे क्रियाशील बनाना नितांत आवश्यक है। सभी शिक्षक शिक्षा दें और विद्यार्थी अध्ययन करें।

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