सामुदायिक सेवा (Community Service)
प्राचीन शिक्षा पद्धति पर दष्टिपात करने से ज्ञात होता है कि तत्कालीन शिक्षा भी सामुदायिक सेवा भावना से ओतप्रोत थी, जिसमें गुरुकुलों तथा आश्रमों में छात्र परस्पर सेवा व सहयोग के साथ शिक्षा ग्रहण करते थे इससे उनमें समाज सेवा करना, सांस्कृतिक व सामाजिक चेतना, कर्तव्यनिष्ठा, देशभक्ति आदि भावनाओं का विकास होता था। शनैः शनैः भारतीय शिक्षा पर लॉर्ड मैकाले को शिक्षा पद्धति का प्रभाव पड़ा और इससे विद्यालय सांस्कृतिक परम्पराओं तथा सामुदायिक जीवन से बिल्कुल अलग हो गये। लेकिन स्वतंत्रता के उपरान्त पुनः शिक्षा-शास्त्रियों ने समय-समय पर बैठे आयोगों में सामुदायिक चेतना के विषय में चिन्ता अभिव्यक्त की।
इसी क्रम में माध्यमिक शिक्षा आयोग, 1953-54 ने कहा, “शिक्षा में सुधार का आरम्भ विद्यालय को जीवन से पुन: जोड़ने एवं उनमें घनिष्ठ सम्पर्क स्थापित करने से होगा,जो। कि आज की परम्परागत औपचारिक शिक्षा के कारण टूट चुका है। हमें विद्यालय को वास्तविक सामाजिक जीवन एवं सामाजिक गतिविधियों का केन्द्र बनाना है, जहाँ आदर्श मनुष्य समुदाय के समान सुन्दर और सहज जीवन की प्रेरणा और प्रणाली दिखाई दे। कोठारी आयोग 1964-661 ने भी सामुदायिक भावना जागृत करने हेतु वयस्क शिक्षा के अन्तर्गत निरक्षरता का उन्मूलन अनवरत शिक्षा, पत्राचार द्वारा शिक्षा आदि कार्यक्रम रखे गये।
राष्ट्रीय शिक्षा नीति, 1986 में समाज के योगदान का शिक्षा में विशेष महत्त्व हो, इस पर जोर देते हुए निरक्षरता, निर्धनता, छुआछूत, जाति-भेद, सामाजिक कुरीतियों, कालाबाजारी, भ्रष्टाचार आदि के निवारण हेतु सामुदायिक सेवा व सामुदायिक चेतना विद्यालयों द्वारा विद्यार्थियों में जागत की जानी चाहिए। 7 मई 1990 में 1986 को राष्ट्रीय शिक्षा नीति की समीक्षा समिति ने भी इस बात पर विशव चिन्ता अभिव्यक्त की कि भारत के लोगों के दिलों में जो इन्सान है, वह सूखता जा रहा है। अत: आज आवश्यकता है कि इस समस्या का समाधान सामुदायिक सेवा के माध्यम से किया जाये।
सामुदायिक सेवा का अर्थ (Meaning of Community Service):
‘समुदाय’ शब्द अंग्रेजी के कम्युनिटी शब्द का हिन्दी रूपान्तर है। कम्युनिटी शब्द दो शब्दों से मिलकर बना है- कॉम + म्यूनिस। ‘कॉम’ का अर्थ है सेवा करना। अर्थात् जब मनुष्यों का कोई समूह किसी विशेष उद्देश्य को लेकर संगठित जीवन बिताता है, तो उसे समुदाय कहते हैं। समुदाय के साथ आत्मीयता और एकात्मकता में जीवन की पूर्णता का अनुभव करना सामाजिक चेतना है। इस सामाजिक चेतना के साथ वा तथा परस्पर मिलकर सामाजिक समस्याओं का निराकरण करना सामुदायिक सेवा है।
सामुदायिक सेवा के उद्देश्य (Objectives of Community Service) :
शिक्षा के सम्बन्ध में समुदाय की दोहरी भूमिका है। ब्राउन ने इसे स्पष्ट करते हए कहा है कि, ‘यह अपने बालकों में न केवल लोक-रातियों को ही जागत करता है, वरनि दृष्टिकोणों एवं जीवन मूल्यों का भी विकास करता है। दूसरे यह सम्पूर्ण जीवन के साँचे को तैयार करता है जिससे विद्यालय एक संस्था के रूप में कार्य करता है।’
सामदायिक सेवा के निम्नलिखित उद्देश्य हैं:
1. बालकों में सामाजिक चेतना तथा समाज सेवा की भावना का विकास करना।
2. बालकों के ‘अहं बोध’ को ‘सामाजिक बोध’ में बदलना दूसरे शब्दों में बालकों में ‘मैं’ के स्थान पर ‘हम’ की भावना का विकास करना।
3. बालकों में समाज के प्रति उत्तरदापिल को समझने की योग्यता विकसित करना।
(iv) विद्यालयों में विभिन्न कार्यक्रमों के माध्यम से सामाजिक वातावरण का निर्माण करना।
(v) निस्वार्थ भावना के साथ ‘वसुधैव कुटुम्बकम्’ अर्थात् सारी पृथ्वी ही परिवार है ऐसी भावना का विकास करना।
(ज) बालकों में नैतिक गुणों का विकास कर सामाजीकरण की प्रक्रिया को गति प्रदान करना।
(ज) बालकों को क्रियाशीलता का उपयोग समाज हित में करना।
(viii) बालकों में समाज को समस्याओं को समझने तथा उनके निराकरण हेतु अन्तर्दृष्टि का विकास करना।
(iv) पाठयक्रम के विभिन्न विषयों को समाज से सम्बद्ध करके पढ़ाना।
सामुदायिक सेवा सम्बन्धी विद्यालयी कार्यक्रम :
छात्रों में सामुदायिक सेवा की भावना उत्पन्न करने हेतु विद्यालय द्वारा विभिन्न कार्यक्रम आयोजित किये जाने चाहिएं तथा विद्यालय स्तर पर ही तत्सम्बन्धी कार्यो का अभ्यास छात्रा को करवाया जाना चाहिए। इसका सर्वोत्तम माध्यम विद्यालय में आयोजित की जाने वाली पाठ्य-सहगामी क्रियाएं हैं। इनके भली-भाँति आयोजन हेतु वद्यालय के सम्पूर्ण छात्रों के कुछ सदनों के अन्तर्गत बाँट दिया जाना चाहिए तथा सदनों का नामकरण, महापुरुषों के नाम, नैतिक गुणों, पशु-पक्षियों तथा रंगों के नाम के आधार पर किया जाना चाहिए जिसमें प्रत्येक सदन के नेता, उपनेता तथा चार पाँच सदस्यों के एक दल का गठन किया जाना चाहिए, जो पूरे सदन का उत्तरदायित्व वहन करें तथा मिलकर विभिन्न गतिविधियों में भाग लें।
ये गतिविधियाँ निम्नलिखित रूप में हो सकती हैं :
सामुदायिक सेवा सम्बन्धी कार्यक्रम
विद्यालय प्रांगण के अन्दर
1. विद्यालय प्रांगण के बाहर कक्षाकक्ष, क्रीड़ास्थल, प्रार्थना-स्थल आदि की स्वच्छता के लिए विद्यार्थी परिषद् का निर्माण करना
2. विभिन्न पर्वो तथा उत्सवों के आयोजन के लिए पर्व समिति का गठन करना।
3. बालचर संघ द्वारा कब्स, बुलबुल तथा स्काउटिंग गाइडिंग का प्रशिक्षण देना।
4. समाज में प्रचलित कुरीतियों के विरोध में भाषण, वाद-विवाद, निबन्ध लेखन जैसी गोष्ठियाँ, सेमिनार आदि का आयोजन करना।
5. विद्यालय के वार्षिकोत्सव पर छात्रों की हस्तनिर्मित वस्तुओं की प्रदर्शनी लगाना तथा इसमें स्वदेशी वस्तुओं की प्रदर्शनी को सम्मिलित करना।
6. छात्र न्याय परिषद् का गठन करना जो छात्रों के आपसी झगडों का निर्णय करने में सहयोग करे।
7. विद्यालय में ‘बुक बैंक’ की योजना चलाना जिसमें छात्रों द्वारा एकत्रित की गई। पुस्तकों का संग्रह किया जाये जिनका उपयोग निर्धन छात्र मेघावी व अन्य छात्र ज्ञानवर्द्धन हेतु कर सकें।
8. विद्यालय में ‘खिलौना बैंक स्थापित करना जिसमें छोटे-छोटे बच्चे अपने पुराने खिलौनों को संग्रहित करें जो निर्धन बच्चों के काम आ सकें।
9. छात्रों को समाज की समस्याओं से परिचित करवाने के लिए दूरदर्शन, चलचित्र तथा नाटकों का प्रदर्शन करना।
10. पुस्तकालय में नवीन पत्र-पत्रिकाओं नियमित रूप से पढ़ने की आदत डालना।
11. प्राथमिक चिकित्सा का प्रशिक्षण देना।
12. अभिभावक अध्यापक संघ का आयोजन कर अभिभावक अध्यापक दिवस तथा सभा का आयोजन करना।
विद्यालय प्रांगण के बाहर
1. राष्ट्रीय सेवा योजना शिविरों का आयोजन करना, जिनके द्वारा गाँवों की सफाई करना, ग्रामवासियों को शिक्षाप्रद बातें बताना।
2. विद्यालय संकुल की स्थापना करना।
3. साक्षरता अभियान चलाना ।
4. पर्यावरण के प्रति चेतना जागृत करने हेतु गोष्ठियाँ, सेमिनार आदि का आयोजन करना तथा पर्यावरण संरक्षण हेतु जन-जन में जागृति लाना।
5. एन.सी.सी. तथा स्काउटिंग-गाइडिंग शिविरों का आयोजन कर छात्रों में देशभक्ति तथा समाजसेवा की भावना उत्पन्न करना।
6. युवक समारोहों का आयोजन करना।
7. विभिन्न सामाजिक समस्याओं से सम्बन्धित आँकड़े एकत्रित करने के लिए छात्रों को सर्वेक्षण करने हेतु भेजना।
8. शैक्षिक भ्रमणों का आयोजन करना।
9. विकलांगों, असहाय तथा अनाथ लोगों को सहायता करना।
10. यातायात के नियमों का पालन करना तथा अन्य लोगों को इन नियमों से परिचित कराना।
11. दैवी प्रकोप,जैसे,बाढ़,सूखा, भूकम्प आदि तथा अकस्मात् दुर्घटना के समय छात्रों को समूहों में भेजना।
12. परिवार नियोजन के महत्त्व से परिचित कराना।
13. स्वास्थ्य सम्बन्धी जानकारी देना।
14. नवीन तकनीकी शिल्प कलाओं से परिचित कराना।
15. सामुदायिक सेवार्थ ‘भविष्य ज्ञान’ (Futurology) के क्षेत्र में चिन्तन कराना।
उपर्यक्त समस्त कार्यक्रमों को विधिवत रूप से चलाने में विद्यालय तथा समुदाय दोनों की ही सहभागिता आवश्यक है। इसके लिए विद्यालय तथा समुदाय के प्रतिनिधियों को समय-समय पर सभा आयोजित कर कार्यक्रमों की क्रियान्विति पर बल देना चाहिए। विभिन्न समाजसेवी संस्थाओं, जैसे, समाज कल्याण विभाग, क्लब तथा स्वयंसेवी संस्थाओं को इनके लिए आर्थिक तथा मानवीय सहायता प्रदान करनी चाहिए। सभी लोगों के सहयोग से सामुदायिक सेवा का कार्यक्रम भली-भाँति संचालित किया जा सकता है।
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