भारत में पंचवर्षीय योजना हर 5 साल के लिए केंद्र सरकार द्वारा देश के लोगो के लिए आर्थिक और सामजिक विकास के लिए शुरू की जाती है । Five Year Plans केंद्रीकृत और एकीकृत राष्ट्रीय आर्थिक कार्यक्रम हैं। इस योजना के अंतर्गत अब तक 12th Five Year Plans जारी की जा चुकी है और 12th Five Year Plans चल रही है। पंचवर्षीय योजना के अंतर्गत देश में कृषि विकास ,रोजगार के अवसरप्रदान करना, मानवीय, व भौतिक ससाधनो का उपयोग कर उत्पादकता को बढ़ावा आदि सुविधाएं उपलब्ध कराई जा रही है। दोस्तों आज हम आपको अपने इस Post के माध्यम से Five Year Plan से जुडी सभी जानकारी प्रदान करने जा रहे है अतः हमारे इस आर्टिकल को अंत तक पढ़े ।
भारत की पंचवर्षीय योजनाओं का समाजशास्त्रीय मूल्यांकन
आयोजन या नियोजन वास्तव में सुनिश्चित सामाजिक लक्ष्यों की दृष्टि से अधिकतम लाभ उठाने के लिये साधनों को संगठित करने तथा उपयोग में लाने की एक पद्धति है। आयोजना की अवधारणा के दो मुख्य आधार हैं – लक्ष्य एवं उपलब्ध साधन। स्वाधीनता प्राप्त करने के समय भारत का ढाँचा खोखला था, अतः पंचवर्षीय योजनाओं की शरण लेना आवश्यक था। देश में सन् 1951 में पंचवर्षीय योजनायें चलाई गयीं। अभी तक दस पंचवर्षीय पूर्ण हुई है। भारत में सामाजिक-आर्थिक विकास और परिवर्तन लाने में इनकी भूमिका एवं योगदान महत्वपूर्ण है। विभिन्न पंचवर्षीय योजनाओं का समाजशास्त्रीय मूल्याँकन निम्नानुसार प्रस्तुत है –
पहली पंचवर्षीय योजना (1 अप्रैल, 1951 से 31 मार्च, 1956)
सन् 1950 में प्रधानमंत्री नेहरू की अध्यक्षता में एक ‘राष्ट्रीय योजना आयोग’ स्थापित हुआ, जिसने 6 माह के बाद जुलाई, 1951 में पहली पंचवर्षीय योजना प्रकाशित की, जिसको दिसम्बर 1952 में संशोधित रूप में स्वीकार किया गया। पहली पंचवर्षीय योजना के मुख्य उद्देश्य थे – योजनाओं को शीघ्र पूरा करना, विस्थापितों के पुनर्वास का प्रबन्ध करना, कम समय में खाद्यान्न और कच्चे माल का उत्पादन, औद्योगिक विकास तथा रोजगार के क्षेत्र को विस्तृत करने वाली योजनाओं का क्रियान्वयन, समाज-कल्याण कार्यक्रमों का अधिकाधिक आयोजन, युद्ध तथा बॅटवारे के कारण अर्थव्यवस्था में उत्पन्न, असामंजस्य को सुधारना, योजना शुरू होने के पहले की राज्य और केन्द्र सरकार द्वारा चलाई गई योजनाओं को पूरा करना।
पहली योजना में कुल 1,960 करोड़ रु0 खर्च हुये। इस योजना-काल की प्रमुख उपलब्धि रही – राष्ट्रीय आय में 18% वृद्धि, कृषि क्षेत्र में 12.2% प्रतिशत वृद्धि हुई। विद्युत उत्पादन 23 लाख किलोवाट हो गया, सिंचित क्षेत्र बढ़ा एवं उद्योगों का विकास भी हुआ। 1950-51 में विद्यालयों में 2.25 करोड़ छात्र थे, जो योजना के अन्त में 3.14 करोड़ तक, पहुँच गये।
दूसरी पंचवर्षीय योजना (1 अप्रैल, 1956 से 31 मार्च, 1961)
इसमें पहली योजना के कार्यक्रमों को आगे बढ़ाने और उनमें तेजी लाने का काम हुआ अर्थात् राष्ट्रीय आय, जनसंख्या वृद्धि से बढ़ने वाली श्रम-शक्ति के लिये पर्याप्त सीमा तक रोजगार अवसरों में वृद्धि, औद्योगीकरण को बढ़ाने का प्रयास किया गया। इस योजना के मुख्य उद्देश्य थे – राष्ट्रीय में में इतनी वृद्धि करना, ताकि रहन-सहन का स्तर बढ़े, मल तथा भारी उद्योगों का विकास ताकि औद्योगीकरण की गति तीव्र हो, आय एवं सम्पत्ति की असमानता दूर करना तथा आर्थिक शक्ति का पहले से अधिक समान वितरण।
दूसरी योजना में कुल 4,672 करोड़ रु0 व्यय हुये। इस योजना की अवधि में राष्ट्रीय में 20%, कृषि उत्पादन में 48.7%, सार्वजनिक क्षेत्र के उद्योगों के उत्पादन में 8.4 प्रतिशत वृद्धि हुई। 2.80 करोड़ हेक्टेयर भूमि सिंचित होने लगी और स्कूली छात्रों की संख्या 4.46 करोड़ हो गई।
तीसरी पंचवर्षीय योजना (1 अप्रैल, 1961 से 31 मार्च, 1964)
तीसरी योजना में कृषि अर्थव्यवस्था को मजबूत करने, शक्ति एवं यातायात साधनों का विकास करने, औद्योगिक तथा तकनीकी परिवर्तन की प्रक्रिया को तेज करने, अवसर की समानता और समाज के समाजवादी स्वरूप की दिशा में उल्लेखनीय प्रगति करने एवं श्रम शक्ति के सम्पूर्ण अतिरिक्त भाग के रोजगार देने हेतु विशेष कार्य किये जाने थे। इस योजना के मुख्य उद्देश्य थे – राष्ट्रीय आय में प्रतिवर्ष 5% की वृद्धि, पूँजी नियोजन इस प्रकार करना कि भावी योजनाओं की अवधि में भी यह वृद्धि जारी रहे। खाद्यान्न के सम्बन्ध में आत्मनिर्भरता, कच्चे माल की उपज में इतनी वृद्धि करना कि उद्योग धन्धों की आवश्यकतायें पूरी हो सके तथा निर्यात भी किया जा सके। इस्पात, रासायनिक उद्योग, इंधन एवं विद्युत आदि आधारभूत उद्योगों का विकास, मशीन निर्माण के कारखानों की स्थापना करना। जनशक्ति का अधिकतम उपयोग एवं रोजगार की संभावनाओं का विस्तार। सभी को उन्नति के समान अवसर देना तथा आय एवं सम्पत्ति के अन्तर को कम करना, आदि।
तीसरी योजना पर कुल 8,577 करोड़ रु0 व्यय हुये। इस योजनाकाल में राष्ट्रीय आय, कृषि, औद्योगिक उत्पादन, आदि बढ़ा, किन्तु अन्तिम वर्षों में कमी आई। स्कूली छात्रों की संख्या बढ़कर 6.60 करोड़ हो गई। समाज कल्याण कार्यों में 1,300 करोड़ रुपये व्यय किये गये, जो कुल राशि का लगभग 17% था।
योजना अवकाश (Planning Holiday).
चीन एवं पाकिस्तान के अचानक आक्रमण तथा देश में सूखे से पैदा हुई परिस्थिति के कारण तीसरी योजना की समाप्ति के उपरान्त एक-एक वर्ष की तीन वार्षिक योजनायें चलाई गई, फलतः तीन वर्षों तक योजना अवकाश/स्थगन रहा। इनमें व्यय निम्नानुसार हुआ- |
वर्ष 1966-67 – प्रस्तावित आय, 2,082 – वास्तविक आय 2,137
वर्ष 1967-68 – प्रस्तावित आय 2,246 – वास्तविक आय 2,205
वर्ष 1968-69 – प्रस्तावित आय 2,337 – वास्तविक आय 2,283
कुल व्यय 6,625 6,665
चौथी पंचवर्षीय योजना (1 अप्रैल 1969 से 31 मार्च, 1974)
भारतीय योजना आयोग के अनुसार चौथी योजना भी भारतीय नियोजन के लक्ष्यों या उद्देश्यों की प्राप्ति की दिशा में अगला कदम होगा। इस योजना के स्थायित्व की कास की गति तीव्र करने का उददेश्य प्रमुख था। इसके अन्य उददेश्य थेद्ध एवं आयात प्रतिस्थापित करने की दृष्टि से कृषि उद्योग योजनाआ का सर्वोच्च प्राथमिकता। ग्रामीणों की आय वृद्धि तथा खाद्यान्नों एवं कृषि से प्राप्त कच्चे माल की मात्रा वृद्धि के लिये कृषि उत्पादन को अधिकाधिक सम्भव बनाना। कृषि में और अधिक साधनों को लगाना। जनोपयोगी उपयोग की वस्तुओं का उत्पादन बढ़ाना। परिवार नियोजन कार्यक्रम का विस्तार करना। मशीन, धातु, खनिज, शक्ति और परिवहन उद्योगों का करना। सामाजिक सेवाओं के क्षेत्र में विशेषतः ग्रामीण हेतु और अधिक एवं पर्याप्त राशि उपलब्ध कराना। इस योजना पर कुल 16,201 करोड़ रुपये व्यय हुये।
पाँचवीं पंचवर्षीय योजना (1 अप्रैल, 1974 से 31 मार्च, 1979)
सन् 1977 में कांग्रेस पार्टी की पराजय होने तथा जनता पार्टी की सरकार बनने के कारण चौथी योजना को एक वर्ष पूर्व ही अर्थात् 31 मार्च, 1978 में समाप्त कर लिया गया था | चौथी योजना का मुख्य उददेश्य आत्म-निभरता का प्राप्ति और गरीबी की रेखा से नीचे रहने वालों के उपभोग-स्तर में सुधार के समुचित उपाय करना था। जनसंख्या वद्धि पर नियन्त्रण, रोजगार अवसरों की वृद्धि, असमानताओ को कम करना, पन्द्रह वर्ष की आयु तक के सभी बच्चों की शिक्षा, कृषि, उद्योग और परिवहन का विकास अन्य उददेश्य थे। इस योजना पर कुल 39426 करोड़ रु0 व्यय किये गये।
छठी पंचवर्षीय योजना (1 अप्रैल, 1980 से 31 मार्च, 1985)
पुनर्गठित योजना आयोग ने वर्ष 1978-83 के लिये 71,000 करोड़ रुपये के परिव्यय की छठी योजना प्रस्तुत की। किन्तु जनवरी, 1980 में गठित केन्द्र की नई सरकार (कांग्रेस पार्टी) ने योजना आयोग का फिर से गठन किया, जिसने 1980 से 1985 तक की अवधि हेतु छठी पंचवर्षीय योजना नये सिरे से बनाई। इस योजना के मुख्य उद्देश्य थे – विकास दर में महत्वपूर्ण वृद्धि, आर्थिक-तकनीकी क्षेत्र में आधुनिकीकरण को प्रोत्साहन, निर्धनता तथा बेरोजगारी की समाप्ति, आम लोगों के जीवन-स्तर में सुधार, क्षेत्रीय विषमताओं को कम करना, जनसंख्या नियन्त्रण और छोटे परिवार के सिद्धान्त पर बल देना तथा विकास में सभी का सहयोग प्राप्त करना । इस योजना में कुल 1,09,292 करोड़ रुपये व्यय किये गये।
सातवीं पंचवर्षीय योजना (1 अप्रैल, 1985 से 31 मार्च, 1990)
इस योजना के प्रमुख उद्देश्य थे – आधुनिकीकरण, आत्म निर्भरता एवं सामाजिक न्याय जैसे आयोजन के आधारभूत सिद्धान्तों का पालन करते हुये खाद्यान्न उत्पादन, रोजगार तथा उत्पादकता वृद्धि की नीतियों एवं कार्यक्रमों पर विशेष बल देना। इसके साथ ही निर्धनता कम करने, जीवन-स्तर में सुधार के माध्यम से पूँजीगत साज-सामान, संसाधन-प्रधान, वस्तुओं और अर्थव्यवस्था के समस्त क्षेत्रों में व्यापक रूप से काम में आने वाली सेवाओं की लागत कम करने का लक्ष्य भी रखा गया था। इस योजना में कुल 1,80,000 करोड रुपये के परिव्यय का प्रावधान था, किन्तु वास्तविक व्यय 2,18,729 करोड़ रुपये हुआ।
वार्षिक योजनायें (1990-91 एवं 1991-92) केन्द्र में बदलते राजनीतिक परिवर्तन के कारण आठवीं पंचवर्षीय योजना (1990-95) कार्यान्वयन नहीं हो सका। इस दौरान जून, 1991 में केन्द्र में सत्तारूढ़ नई सरकार न निर्णय लिया कि आठवीं पंचवर्षीय योजना को 1 अप्रैल से लागू किया जाना तथा 1990-91 और 1991-92 की अलग-अलग वार्षिक योजना माना जाये। इन वार्षिक योजनाओं पर मुख्य बल रोजगार के अधिक अवसर तथा सामाजिक परिवर्तन के लिये दिया गया था। सन 1990-91 में 58,369 रु0 और 1991-92 में 60,475 करोड़ रुपये व्यय किये गये।
आठवी पंचवर्षीय योजना (1 अप्रैल, 1992 से 31 मार्च, 1997)
1992 में कांग्रेस पुनः सत्तारूढ़ हुई, जिसने योजना आयोग को पुनर्गठित किय इस योजना के उद्देश्य थे – गरीबी उन्मूलन, ग्रामीण विकास, जनसंख्या वृद्धि का रोकथाम, सदी के अन्त तक सभी को रोजगार और विकास प्रक्रिया को तेज करना। अशिक्षा को दूर करना, सभी भागों में पेयजल तथा चिकित्सा सुविधायें उपलब्ध कराना, अन्य लक्ष्य थे। इस योजना में कुल निवेश 7,98,000 करोड़ रुपये हुआ।
नौवीं पंचवर्षीय योजना (1 अप्रैल, 1997 से 31 मार्च, 2002)
इस योजना का उद्देश्य गरीबों तथा समाज के विभिन्न पिछड़े एवं वंचित वर्गों के लोगों का जीवन-स्तर सुधारना था। ठोस विदेशी व्यापार एवं निवेश की नीतियों पर विशेष ध्यान दिया गया था, ताकि निर्यात में तेजी से वृद्धि हो सके। इसके उद्देश्य थे – अर्थपूर्ण रोजगार उत्पन्न करने के उद्देश्य से कृषि और ग्रामीण विकास को प्राथमिकता मूल्यों में स्थिरता के साथ ही, अर्थव्यवस्था के विकास दर को तीव्र करना। आत्मनिर्भरता के प्रयासों को सुदृढ़ करना। जनसंख्या वृद्धि की दर को रोकना। कमजोर वर्गों के लिये खाद्य एवं पोषाहार की व्यवस्था करना। सुरक्षित पेयजल, प्राथमिक स्वास्थ्य की सुविधा सबके लिये प्राथमिक शिक्षा। सभी स्तरों पर जनसहभागिता तथा सामाजिक जागरूकता द्वारा विकास प्रक्रियाओं को ऐसा बनाना, जो पर्यावरण के अनुरूप हो। महिलाओं, अनुसूचित जातियों, जनजातियों, अन्य पिछड़ी जनजातियों, अल्पसंख्यकों के लिये सामाजिक-आर्थिक परिवर्तन तथा उन्हें विकास के प्रतिनिधि के रूप में साधन-सम्पन्न बनाना।
इन पंचवर्षीय योजना के मुख्य लक्ष्य थे – न्यायपूर्ण वितरण और समानता के साथ वृद्धि करना। जीवन की गुणवत्ता रोजगार संवर्द्धन, क्षेत्रीय असन्तुलन का समाधान एवं आत्मनिर्भरता को राज्य नीति का आधार स्वीकार किया गया था। आत्मनिर्भरता हेतु कई बातों को प्राथमिकता दी गई थी – भुगतान सन्तुलन सुनिश्चित करना। विदेशी ऋण-भार को बढ़ने से रोकना एवं उसमें कमी लाना। खाद्यान्न क्षेत्र में आत्मनिर्भरता लाना। तकनीकी आत्मनिर्भरता प्राप्त करना। विवेकपूर्ण वृहद् प्रबन्धन संरचना और भुगतान सन्तुलन की आवश्यकताओं के वित्तीय-पोषण के लिये गैर-ऋण विदेशी आय पर निर्भरता को बढ़ाना।
नौवीं योजना में लगभग 27% योजना-राशि ऊर्जा, सिंचाई, संचार, परिवहन तथा सामाजिक सेवाओं पर व्यय किया गया । केन्द्रीय योजना के 48% तथा राज्यों की योजनाओं के 72% के वित्तीय प्रबन्धन हेतु उधार तथा विविध पूंजी प्राप्तियों का सहारा प्राप्त किया गया, जो एक अभूतपूर्व स्थिति थी। फलस्वरूप ब्याज के रूप में भारी बोझन पड़ा और गैर योजना व्यय में वृद्धि हुई। यह योजना कीमत नियन्त्रण के बारे में पूर्णतः खामोश बनी रही, जिसका प्रभाव सरकार के प्रशासनिक एवं अन्य व्ययों पर विध्वंशकारी सिद्ध हुआ। योजना का संसाधन गतिमान करने की दृष्टि से आधार मजबूत नहीं था। या तो योजना का आकार छोटा करना चाहिये था या न्यून वित्त प्रबन्ध का अधिक प्रयोग किया जाना चाहिये था।
दसवीं पंचवर्षीय योजना (1 अप्रैल, 2002 से 31 मार्च, 2007)
इस योजना के अन्तर्गत 8% की औसत वार्षिक वृद्धि-दर की परिकल्पना की गई। थी। यह मानते हुये कि मात्र आर्थिक वृद्धि ही वार्षिक आयोजना का एकमेव उद्देश्य नहीं है, दसवीं योजना में 8% की वृद्धि के लक्ष्य के साथ-साथ मानव विकास के कुछ मुख्य संकेतको हेतु ‘अनवीक्षणीय’ लक्ष्य भी निर्धारित किये गये। इनमें अन्य बातों के अतिरिक्त वर्ष 2007 तक निर्धनता के अनुपात को 6 प्रतिशतांक बिन्दु कम करना, योजना की अवधि में न्यूनतम श्रमिक शक्ति में वद्धि करने के लिये लाभदायक रोजगार सुलभ कराना और सभी बच्चों को वर्ष 2003 तक स्कूल भेजना एवं योजना अवधि के अन्तर्गत साक्षरता-दर को बढ़ाकर 75% करना सम्मिलित था।
सभी राज्यों का सन्तुलित विकास, समानता और सामाजिक न्याय, सरकारी तथा निजी क्षेत्रों में कार्यकशलता और सुधार, सरकारी परिसम्पत्तियों का त्वरित हस्तान्तरण, सकल घरेलू उत्पाद में वृद्धि, विद्युत उत्पादन पर बल, पंचायती राज व्यवश प्रदान करना, व्यय सुधार आयोग की सिफारिशो का कार्यान्वयन करना के वेतन-बिल में कटौती करना, राज्य स्तर पर मूल्य-वर्धित कर (वेट) को आरम्भ करना, आदि नौवी योजना के प्रमुख अंग थे।
1 अप्रैल, 2007 से भारत की ग्यारहवीं पंचवर्षीय योजना मार्च, 2012 तक चलेगी।
विभिन्न पंचवर्षीय योजनाओं के माध्यम से भारत में सामाजिक-आर्थिक विकास परिवर्तन की दिशा में बहुत कुछ किया गया है और किया भी जा रहा है। पंचवर्षीय योजना ने अब तक पाँच दशकों की दूरी पार की है तथा देश को प्रत्येक क्षेत्र में उन्नत एवं सुदृढ़ बनाया है। इन योजनाओं के अनुभव अच्छे हैं और बुरे भी। योजनाओं के फलस्वरूप सामाजिक संगठन, सामाजिक ढाँचा, अविवेक से उत्पन्न समस्याओ का समाधान, मानव शक्ति का सन्तुलित विकास संभव हुआ है। मानवीय एवं प्राकृतिक संसाधनों का उपयोग हआ है। गरीबी, बेकारी कम हुई है। रोजगार के अवसर बढ़े हैं तथा उद्योग-धन्धे भी विकसित हुये है। राष्ट्रीय और प्रति व्यक्ति आय में वृद्धि हुई है। समाज के उपेक्षित और वंचित वर्गों को सामाजिक न्याय प्रदान करने की दिशा में कदम काफी आगे बढ़े हैं। उनके लिये विभिन्न कल्याणकारी कार्यक्रम शुरू किये गये है। राष्ट्रीय अल्पसंख्यक आयोग अल्पसंख्यक समुदायों के योग्य लोगों को वित्तीय अनुदान दिलाता है, ताकि वे स्व-रोजगार द्वारा आत्म-निर्भर बन सकें।
कृषि के क्षेत्र में प्रारम्भिक चरण में सफलता मिली, किन्तु उदारीकरण के कारण बाद में वांछित उत्पादन में गिरावट आई। रोजगार अवसरों की वृद्धि में पंचवर्षीय योजनाओं को कोई विशेष सफलता नहीं मिली। लघु उद्योगों को वैश्वीकरण की नीति से भारी झटका लगा है। शिक्षा और स्वास्थ्य के विकास में भारी असमानता है। रोगों की चिकित्सा व्यय में भारी वृद्धि हुई है, क्योंकि सरकारी चिकित्सा व्यवस्था विफल सिद्ध हुई है। शिक्षित बेकारी भयावह है। महिला साक्षरता 2001 में 54% थी, किन्तु आज भी एदेश में लगभग 20 करोड़ महिलायें निरक्षर हैं। बाल श्रम, असंगठित मजदूर, मूल्य वृद्धि की समस्यायें बढ़ रही है। महँगाई के कारण धनी वर्ग के अतिरिक्त अन्य सभी वर्ग संघर्ष कर रहे हैं। शिक्षा, स्वास्थ्य, चिकित्सा, रोजगार, जीवन-स्तर के क्षेत्र में वांछित परिवर्तन और सुधार नहीं हो पाया है। इस पर भी पंचवर्षीय योजनाओं के कारण भारतीय समाज में सकारात्मक परिवर्तन अवश्य हुये हैं। यदि योजना निर्माता विवेक से कार्य करे तो कोई कारण नहीं कि देश आगे न बढ़े।
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समाजशास्त्र/Sociology–
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