शिक्षण की नवीन पद्धतियाँ(Innovations of Teaching)
आधनिक युग में शिक्षा के प्रति छात्रों में बढ़ते हुए अलगाव को दूर करने के लिए यह आवश्यक है कि शिक्षण में ऐसी प्रविधियों का प्रयोग किया जाये जो छात्रों में अन्तर्दृष्टि, आलोचनात्मक दृष्टिकोण, सौन्दर्यानुभूति, विश्लेषणात्मकता, विषयों का सहसम्बन्ध स्थापित करने की योग्यता, विषयों की सामाजिक व व्यावहारिक उपयोगिता को पहचानने की योग्यता का विकास कर सके। इसके लिए विभिन्न नवीन शिक्षण पद्धतियों का प्रयोग शिक्षा प्रदान करने हेतु किया जा रहा है।
समूह परिचर्चा या सामूहिक वाद-विवाद (Panel Discussion)
आज ज्ञान के क्षेत्रों का तीवगति से विकास हो रहा है। नवीनतम आविष्कारों ने मानव मस्तिष्क के चिन्तन के द्वार खोल दिये हैं। ऐसी स्थिति में उच्च स्तर पर केवल व्याख्यान विधि से शिक्षण करते जाना ठीक नहीं, अपितु आवश्यकता इस बात की है कि शिक्षक तथा छात्र परस्पर विचारों का आदान-प्रदान करें। एक ही शिक्षक से एक विषय के सभी प्रकरणों के विशिष्ट ज्ञान की अपेक्षा करना ठीक नहीं है, अत: प्रकरण के अनुसार विशेषज्ञों को आमंत्रित कर परस्पर चर्चा करके नवीन तथ्यों को प्राप्त करना अत्यन्त आवश्यक है। इसके लिए सामूहिक वाद-विवाद (Panel Discussion) बहुत उपयोगी है। ‘पैनल’ शब्द का हिन्दी अनुवाद है-‘लघु-विशिष्ट समूह‘।
ऐतिहासिक पृष्ठभूमि (Historical Background) :
सन् 1929 में सर्वप्रथम हेरी ए. ओबर स्ट्रीट (Herry A. Ober Street) ने पैनल चर्चा का प्रयोग कक्षा शिक्षण के रूप में किया, इसमें कक्षा में छोटे समूह में श्रोताओं के समक्ष सामूहिक वाद-विवाद हुआ। बाद में श्रोताओं ने भी इसमें भाग लिया और प्रश्नों को पूछा गया और प्रश्नों का समाधान किया गया, किन्तु इसको पैनल चर्चा के नाम से नहीं पुकारा गया।
मॉर्स, ए. कार्ट राइट का मत है कि “अमेरिका में प्रौढ़ शिक्षा संघ के वार्षिक सम्मेलन में इस विधि का नाम पैनल चर्चा रखा गया।” इस सम्मेलन का आयोजन सन् 1932 में हुआ।
एन.सी.ई.आर.टी. ने भी 10+2 शिक्षा योजना के पाठयक्रम में यही मत प्रकट किया कि,”शिक्षक को यह स्मरण रखना चाहिए कि बालक तथ्यात्मक ज्ञान के प्रस्तुतीकरण का केवल निष्क्रिय होकर सुनने की अपेक्षा स्वयं क्रिया कर तथा खोज कर अधिक प्रभावी रूप से सीख सकता है।”
सामूहिक वाद-विवाद का अर्थ (Meaning of Panel Discussion) :
स्ट्रक ने पैनल चर्चा के अर्थ को स्पष्ट करते हुए कहा, “पैनल चर्चा में चार से आठ व्यक्तियों का एक समूह किसी समस्या पर आपसी विचार-विमर्श करता है। यह चर्चा जन-समूह या कक्षा के विद्यार्थियों के समक्ष की जाती है।”
इस प्रकार पैनल चर्चा वह चर्चा है, जो विशिष्ट समूह के द्वारा बड़े समूह के समक्ष की जाती है तथा समूह के सभी सदस्य इस चर्चा में भाग लेते हैं।
सामूहिक वाद-विवाद के उद्देश्य (Objects of Panel Discussion) :
(i) समस्या से सम्बन्धित सूचनाओं, तथ्यों तथा आँकड़ों को विशेषज्ञों की सहायता से प्राप्त करना।
(ii) समस्या का विश्लेषण कर अधिगम को प्रभावी बनाना।
(iii) सामाजिक, सांस्कृतिक और नैतिक मूल्यों का विद्यार्थियों में विकास करना।
(iv) छात्रों में तार्किक चिन्तन की योग्यता विकसित करना।
(v) छात्रों में आत्मविश्वास, आत्मनिर्णय, आत्मचिन्तन के साथ मौखिक अभिव्यक्ति की क्षमता जागृत करना।
(vi) शिक्षण को मनोवैज्ञानिक आधार प्रदान करना, जैसे-स्वयं क्रिया द्वारा सीखने पर बल देना।
(vii) पैनल चर्चा द्वारा मनोरंजन के साथ-साथ ज्ञानवर्धन करना।
(viii) छात्रों में परस्पर सहयोग की भावना के साथ व्यापक दृष्टिकोण उत्पन्न करना।
सामूहिक वाद-विवाद के सिद्धान्त (Principles of Panel Discussion) :
1. प्रत्येक सम्भागी को अपने विचार अभिव्यक्त करने के समान अवसर देना;
2. सक्रिय सहभागिता को सम्मान देना।
3. एक दूसरे के विचारों को सम्मान देना; एवं
4. व्यवस्था के आधुनिक सिद्धान्त पर आधारित।
सामूहिक वाद-विवाद के प्रकार (Types of Panel Discussion) :
1. सार्वजनिक वाद-विवाद (Public Discussion)- इस वाद-विवाद का आयोजनसार्वजनिक स्तर पर किया जाता है जिसमें ऐसे विषयों को रखा जाता है जो सामान्य तथा सार्वजनिक रुचि के होते हैं, जैसे, महँगाई की समस्या, खाद्य समस्या, बेरोजगारी की समस्या, प्रदूषण समस्या आदि। आधुनिक समय में यह चर्चा दूरदर्शन तथा आकाशवाणी के माध्यम से भी आयोजित की जाती है।
2. शैक्षिक वाद-विवाद (Educational Discussion)- यह चर्चा विद्यालय, महाविद्यालय तथा अन्तर्महाविद्यालय स्तर पर आयोजित की जाती है तथा इसका केन्द्रबिन्दु छात्र होता है। इसमें सूचनाओं तथा तथ्यों का ज्ञान प्रदान, सिद्धान्तों व प्रत्ययों का स्पष्टीकरण तथा समस्याओं के समाधान हेतु पैनल चर्चा की व्यवस्था की जाती है।
सामूहिक वाद-विवाद के सोपान (Steps of Panel Discussion) :
सामूहिक वाद-विवाद हेतु निम्नलिखित तीन सोपानों का अनुकरण किया जाता है।
(1) पूर्व तैयारी करना :
(क) लघु विशिष्ट समूह के सदस्यों का निर्धारण किया जाता है, जिसमें एक संयोजक या अनुदेशक (Instructor). एक अध्यक्ष, दो तीन विषय के विशेषज्ञ होते हैं।
(ख) श्रोताओं का निर्धारण।
(ग) समय व स्थान का निर्धारण।
(घ) विषय का निर्धारण
(ङ) विभिन्न उपकरणों व साधनों की व्यवस्था।
(2) कार्यान्वयन- चर्चा के संयोजक द्वारा सर्वप्रथम समस्या का संक्षिप्त परिचय प्रस्तुत किया जाता है। क्रमशः समस्या के विभिन्न पक्षों पर समूह के अन्य सदस्य अपने विचार प्रकट करते हैं। संयोजक विषय का उपसंहार करता है। तदुपरान्त श्रोता अपनी शंकाओं के समाधान हेतु प्रकट करते हैं। उपस्थित विशेषज्ञ छात्रों की समस्याओं का समाधान करते हैं।
सामूहिक वाद-विवाद का मूल्यांकन :
चर्चा के समाप्त होने पर चर्चा की सफलता ज्ञात करने हेतु छात्रों से विभिन्न प्रकार के विषयों से सम्बन्धित प्रश्कन पूछे जाते हैं। विद्यार्थियों से चर्चा के सम्बन्ध में उनकी प्रतिक्रियायें एवं सुझाव आमंत्रित किये जाते हैं तथा छात्रों द्वारा बताये गये सुझावों का आगामी चर्चा में ध्यान रखा जाता है।
सामूहिक वाद-विवाद के गुण (Merits):
1. इससे छात्रों में समस्या समाधान की योग्यता विकसित होती है।
2. समस्या को विभिन्न दृष्टिकोणों से समझने का अवसर मिलता है।
3. छात्रों में तर्कशक्ति, निरीक्षण-शक्ति तथा नेतृत्व-शक्ति आदि का विकास होता है।
4. यह सृजनात्मक चिन्तन के विकास की एक सर्वश्रेष्ठ विधि है।
5. परस्पर विचार-विमर्श से सहयोग की भावना का विकास होता है।
6. इससे आत्मविश्वास के साथ अपने विचारों की अभिव्यक्ति करने की योग्यता आती है। उच्च स्तर पर कम समय में अधिकाधिक ज्ञान प्रदान करने की यह उत्तम विधि है।
सामूहिक वाद-विवाद की सीमाएँ (Limitations) :
1. यह केवल उच्च स्तर के लिए उपयोगी है तथा यह सभी विषयों में प्रयोग में नहीं लायी जा सकती।
2. इसके लिए विशेष अनुभवी अध्यापकों की आवश्यकता होती है।
3. मुख्य विषय से भटकने तथा समूह के दो भागों में बँटने की सम्भावनाएँ रहती है।
4. इसमें कुछ विशेषज्ञों का अधिक प्रभुत्व हो जाने से दूसरे सम्भागी अपने विचारों को अभिव्यक्त करने से वंचित रह जाते हैं।
5. इसमें एक समूह विषय के पक्ष में तथा दूसरा विपक्ष में रहता है.ऐसी स्थिति में अधिगम परिस्थितियाँ अनुकूल नहीं रहतीं।
6. पैनल चर्चा हेतु विशेष रूप से अपेक्षित पूर्व तैयारियाँ न होने पर इसके असफल होने की सम्भावनाएँ बढ़ जाती हैं।
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