जोसेफ शेलिंग की जीवनी, दार्शनिक विचार

जोसेफ शेलिंग की जीवनी, दार्शनिक विचार | Goseph Shelling Biography in Hindi

जोसेफ शेलिंग (Goseph Shelling)[ सन् १७७५ ई. से सन् १८४१ ई.]

शेलिंग फिक्टे के शिष्य थे। इनका जन्म सन् १७७५ ई. में जर्मनी के लियोनबर्ग नगर में हुआ था। बचपन से ही ये प्रतिभाशाली छात्र थे। ट्यूबिंगेन विश्वविद्यालय में इन्होंने दर्शन तथा धर्म का गम्भीर अध्ययन किया था। प्रतिभा के कारण ट्यूबिंगेन विश्वविद्यालय के शिक्षक इन्हें बहुत प्यार करते थे। १८ वर्ष की अवस्था से ही इन्होंने धर्म और दर्शन पर लिखना प्रारम्भ कर दिया। इसी विश्वविद्यालय से शेलिंग ने एम. ए. की परीक्षा पास की। फिक्टे के बर्लिन चले जाने पर ये जेना में दर्शन के प्रोफेसर नियुक्त हुए। सन् १८०१ में ये बर्लिन गए। वहाँ ये हेगल के सम्पर्क में आये। बर्लिन में हेगल के साथ इन्होंने दार्शनिक पत्र का सम्पादन भी किया। कुछ दिन हेगल के सम्पर्क में रहने के बाद ये हेगल के दर्शन का विरोध करने लगे। यह उनकी दार्शनिक रचनाओं का अन्तिम समय था। इसके बाद शेलिंग ने धर्म पर लिखना प्रारम्भ किया।

शेलिंग की रचनाओं का संग्रह चौदह भागों में प्रकाशित है। इनकी महत्त्वपूर्ण रचनाएँ निम्नलिखित हैं-

१. मानव स्वतन्त्रता (On Human Freedom),

२. विश्व के युग (Ages of the World),

३. प्रकृति सम्बन्धी विचार (Ideas Regarding Philosophy of Nature) एवं

४. पारमार्थिक विज्ञान का स्वरूप (System of Transcendental Idealism)|

 

जोसेफ शेलिंग के दार्शनिक विचार

शेलिंग का दर्शन तीन भागों में विभक्त है :

१. प्रकृति-दर्शन (Philosophy of Nature),

२. आत्मा-दर्शन (Philosophy of Spirit) एवं

३. रहस्यवाद (Positive Mysticism)|

अपने प्रकृति दर्शन में शेलिंग फिक्टे और हर्डर (Herder) दोनों से प्रभावित हैं परन्तु शेलिंग का मत दोनों से भिन्न है| फिक्टे और जोसेफ शेलिंग दोनों आत्म-अनात्म में नितान्त भेद नहीं मानते। इन दोनों दार्शनिकों ने जड़ और चेतन के भेद का निराकरण किया है। दोनों में भिन्नता अवश्य है, परन्तु दोनों में आत्यन्तिक विशेष नहीं, क्योंकि आत्म और अनात्म परमात्मा की अभिव्यक्ति है। एक अद्वैत परमार अपने को जड़ और चेतन के द्वैत में अभिव्यक्त करता है। इसके अतिरिक्त दोनों में भेद है। फिक्टे प्रकृति को जड़, अनात्म, ज्ञेय विषय मानते हैं तथा आत्मा को चेतन ज्ञाता मानते हैं। शेलिंग इस आत्म-अनात्म के भेद को नहीं मानते। उनके अनुसार चेतन तथा अचेतन में अभेद (Identity) है।

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वस्तुतः चेतन ही अचेतन रूप में, ज्ञाता ही ज्ञेय रूप में प्रतीत होता है| ज्ञाता और ज्ञेय दोनों परस्पराधीन है। ज्ञाता के कारण ही ज्ञेय तथा ज्ञेय के कारण ही ज्ञाता की सत्ता सिद्ध होती है। अतः एक ही तत्त्व ज्ञाता और ज्ञेय दोनों हैं। इसी प्रकार फिक्टे और शेलिंग दोनों ही परम तत्त्व को मानते हैं परन्तु फिक्टे के अनुसार आत्म से ही अनात्म की उत्पत्ति होती है। इसके विपरीत, शेलिंग दोनों में बिल्कुल ही अभेद मानते हैं। वस्तुतः ज्ञाता और ज्ञेय में किसी प्रकार का भेद नहीं। यह अभेद ही शेलिंग के दर्शन की आधारशिला है। उनके अनुसार जड़ और चेतन, आत्म और अनात्म का भेद सम्भव नहीं।- परम तत्त्व प्रकृति (Nature) है जो आत्म-अनात्म रूप में केवल प्रतीत होती है। वस्तुतः यह प्रकृति का एक अद्वैत रूप है।

 

 

फिक्टे और जोसेफ शेलिंग में भेद

(क) फिक्टे के अनुसार परम तत्त्व आत्मा है, जोसेफ  शेलिंग के अनुसार परम तत्त्व  प्रकृति है|

(ख) फिक्टे के अनुसार जड़ चेतन का विरोधी है। जोसेफ शेलिंग के अनुसार इनमें विरोध नहीं।

(ग) फिक्टे के अनुसार जड़ चेतन के सीमित होने का परिणाम (Limitation) है, अत: जड़ चेतन का अवरोध करता है। शेलिंग के अनुसार जड़ चेतन का सहायक है। दोनों में अभेद है. अतः विरोध और अवरोध का प्रश्न ही नहीं उठता। इसी आधार पर जोसेफ शेलिंग का कहना है कि प्रकृति दृश्य आत्मा है तथा आत्मा अदृश्य प्रकृति है (Nature is visible spirit and spirit is invisible nature)।

(घ) फिक्टे के अनुसार परम तत्त्व की अभिव्यक्ति पहले आत्मा में होती है पुनः अनात्म में जोसेफ शेलिङ्ग के अनुसार परम तत्त्व पहले जगत् में तब जीव में अभिव्यक्त होता है।

इस प्रकार  जोसेफ शेलिंग के अनुसार प्रकृति ही परम तत्त्व है| जड़ चेतन सभी प्रकृति के अंग हैं। सभी अंगों में अभेद है| जड़ और चेतन विकास की प्रक्रिया की दो अवस्थाएँ हैं। जड़ केवल सुप्त चैतन्य है। दोनों का मूल एक ही है| जड़ केवल अविकसित अवस्था है। विकास की प्रक्रिया निरन्तर गतिशील है। इसकी कई अवस्थाएँ हैं-

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१. जड़ जगत् है जिसमें चेतन लुप्त है।

२. वनस्पति जगत् जिसमें प्राण-शक्ति है।

३. पशु-जगत् जिसमें चेतना है।

४. मानव जगत् जो स्वचेतन है।

इस प्रकार जड़ से लेकर स्वचेतन मानव एक ही प्रकृति के विकास स्तर हैं। यही प्रकृति परम तत्त्व है जिसे शेलिङ्ग परमात्मा (World-soul) कहते हैं।

जोसेफ शेलिंग अपने प्रकृति दर्शन में स्पिनोजा से प्रभावित हैं। देकार्त ने जड़ और चेतन को पृथक् पदार्थ माना है। स्पिनोजा ने जड़ और चेतन को एक ही परम तत्त्व के दो समानान्तर स्वरूप में स्वीकार किया है। जड़ और चेतन दोनों एक ही द्रव्य के दो रूप हैं। जोसेफ शेलिंग स्पिनोजा के समान जड़ और चेतन को दो समानान्तर रूप नहीं मानते। जोसेफ शेलिंग के अनुसार अचेतन और चेतन दोनों विकास की अवस्थाएँ हैं।

जड़ चेतना के अभाव में जड़ कहलाता है चेतना जड़ता के अभाव में चेतन कहलाता है। ये विकास के विभिन्न स्तर हैं। परम तत्त्व अपने को अनेक स्वरूपों में अभिव्यक्त करता है। चेतन की न्यूनतम से लेकर उच्चतम सभी अवस्थाएँ हैं। इस परम तत्त्व की पूर्णतम अभिव्यक्ति स्वचेतन मानव में होती है। इस प्रकार समस्त विश्व में एक ही चेतना व्याप्त है, सभी परम तत्त्व के स्वरूप हैं।

 

 

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