व्यक्तिगत अनुदेशन प्रणाली(PERSONALIZED SYSTEM OF INSTRUCTION)
जैसा कि नाम से प्रकट है, “व्यक्तिगत अनुदेशन प्रणाली एक ऐसी प्रणाली है जिसमें अनुदेशन के वैयक्तीकरण पर अध्याधिक बल दिया जाता है और अनुदेशन को छात्रों की योग्यता, रुचि और आवश्यकता के अनुरूप बनाने क प्रयास किये जाते हैं।“
ग्रीन (Green, 1974) ने इस प्रणाली का विवरण देते हुये लिखा है, “व्यक्तिगत अनुदेशन प्रणाली को यह नाम इसीलिये दिया गया क्योंकि इसमें शिक्षक प्रत्येक छात्र को एक व्यक्ति (Person) के रूप में अपनाता है। इसमें एक छात्र तथा एक शिक्षक एक-दूसरे के सामने बैठकर अधिगम-अनुदेशन प्रक्रिया में भाग लेते हैं, चाहे कक्षा में छात्रों की संख्या 100 ही क्यों न हो। यह प्रणाली ऐसे पाठ्यक्रमों के लिये ज्यादा उपयुक्त है, जिसमें छात्र से आशा की जाती है कि वह (भली-भाँति) सुपरिभाषित ज्ञान के एक भाग अथवा कौशल को अर्जित कर सकेगा। इस प्रणाली का शिक्षक प्रत्येक छात्र से आशा रखता है कि वह अपनी अधिगम सामग्री को भली-भाँति सीखेगा। शिक्षक ऐसे प्रत्येक छात्र को (जो भली-भाँति अधिगम सामग्री में निपुणता प्राप्त कर रहे हैं) अच्छे अंक तथा अच्छी श्रेणी प्रदान करने के लिये तत्पर रहता है। उसे इस बात से कोई मतलब नहीं है कि कक्षा में छात्र का सापेक्षित स्थान क्या था या क्या है। वह तो उद्देश्य की प्राप्ति का उत्तरदायित्व, जनशक्ति (Manpower), स्थान (Space) तथा उपकरण (Equipment) की सामान्य सीमाओं के अन्तर्गत स्वीकार करता है।”
नैपर (1980) के अनुसार- “व्यक्तिगत अनुदेशन प्रणाली मूलतः स्वगतियुक्त निपुणता-अधिगम (Mastery Learning) है जिसमें छात्र पाठ्यक्रम सामग्री की एक विशिष्ट प्रारूप में तैयार की गयी यूनिटों पर स्वयं कार्य करते हैं। प्रत्येक यूनिट में उद्देश्यों, वाचन, दत्त कार्यों और सम्बन्धित समस्याओं की सूची होती है। जब छात्र महसूस करता है कि उसने उस विषय-वस्तु विशेष में निपुणता स्तर (Mastery Level) प्राप्त कर लिया है तो उसका परीक्षण होता है और सफलता प्राप्त होने पर अगली यूनिट उसे अधिगम हेतु दे दी जाती है। जब तक पिछली यूनिट में वह निपुणता स्तर प्राप्त नहीं करेगा, तब तक अगली यूनिट उसे नहीं दी जा सकती। इस प्रणाली में अंकन तत्काल छात्र अनुकर्ता (Procter) कर लिया जाता है।”
व्यक्तिगत अनुदेशन प्रणाली एक ऐसी प्रणाली है, जो स्किनर द्वारा प्रवर्तित अभिक्रमित अनुदेशन प्रणाली से अपेक्षाकृत ज्यादा व्यापक आधार वाली है तथा ज्यादा लचीली है एवं जिसमें मानव-शिक्षक की भूमिका ज्यादा महत्त्वपूर्ण है। अतः कहा जा सकता है कि-व्यक्तिगत अनुदेशन प्रणाली, वह प्रणाली है, जिसमें सामूहिक शिक्षण (अनुदेशन) के सभी गुण तथा विशेषताएँ समावेशित करके व्यक्तिगत अनुदेशन प्रदान किया जाता है।
“It is the system in which the advantages of collective instruction are retained to a great extent in the individual instructional method.”
Personalized system of Instruction प्रणाली को संक्षेप में PSI कहते हैं। इसे ‘कैलर’ योजना भी कहते है क्योंकि PSI प्रणाली के प्रवर्तक डॉ० फ्रड एस० केलर (Dr. Fred S. Keller) थे। उन्होंने अपने तीन साथियों शरमन, जई व बोरी की सहायता से इसका विकास सन् 1963 में किया था।
यह प्रणाली व्यक्तिन्योन्मुखी है। इसमें ‘मास्टरी लर्निंग’ तथा ‘अभिक्रमित अनुदेशन’ की विशेषताओं को समावेशित किया गया है। वेदनायगम ने इसका वर्णन इस प्रकार किया है-
“At the beginning of a course, students have a contact-agreement with the teacher regarding what work will be done and then they proceed at their own pace and initiation. The teacher is available for tutorial assistance or small group discussions, thus giving general feedback and guidance.”
–E. G. Vedanaygam.
इसे संक्षेप में PSI कहा जाता है।
व्यक्तिगत अनुदेशन प्रणाली के उद्देश्य(Objectives of PSI)
- छात्र एवं शिक्षक के मध्य की दूरी दूर करना तथा परस्पर व्यक्तिगत साहचर्य विकसित करना।
- छात्रों को उनकी शक्षिक प्रगति व उपलब्धि के आधार पर व्यक्तिगत रूप से प्रतिपुष्टि (Feedback) प्रदान करना।
- अधिगम में पुनर्बलन की बारम्बरता में वृद्धि करना।
- व्याख्यान विधि के स्थान पर अन्य ज्यादा उपादेय विधिओं का प्रयोग करना।
- व्यक्तिगत मूल्यांकन पर बल देना।
व्यक्तिगत अनुदेशन प्रणाली के तत्व (Basic Elements of PSI)
व्यक्तिगत अनुदेशन प्रणाली के मूलभूत तत्व नीचे चित्र द्वारा प्रदर्शित किये जा रहे हैं-
- अधिगम में निपुणता (मास्टरी लर्निंग)
- अपनी गति से अधिगम (सैल्फ पेसिंग)
- प्रोक्टोर्स का उपयोग (शिक्षण सहायक का उपयोग)
- लिखित शब्दों पर जोर
- अभिप्रेरणा युक्त क्रियाएँ
(1) अधिगम में निपुणता (Mastery Learning)-इस प्रणाली में अधिगम में निपुणता का अर्थ है छात्र द्वारा एक यूनिट से अगली यूनिट पर जाने से पूर्व, पहले की यूनिट पर अपेक्षित निपुणता स्तर प्राप्त करना। (यह निपुणता स्तर 90% या इसके आस-पास अधिकतर निर्धारित किया जाता है।) जब तक प्रत्येक यूनिट पर निर्धारित अपेक्षित निपुणता स्तर प्राप्त नहीं होता, छात्र को अगली यूनिट नहीं दी जाती।
(2) अपनी गति (स्व-गति) से अधिगम (Self-pacing)- इस प्रणाली में प्रत्येक छात्र को पाठ्यक्रम का विषय-वस्तु का अध्ययन अपनी सुविधानुसार अपनी गति के अनुसार करने की आजादी रहती है साथ ही इसमें परीक्षण हेतु भी छात्र अपनी सुविधानुसार परीक्षण देता है। छात्र जब भी यह महसूस करता है कि दी गयी यूनिट पर उसकी निपुणता हो गयी है या वह नैपुण्य प्रदर्शित करने के लिये पूरी तरह से तैयार है तो वह यूनिट के परीक्षण के लिये जा सकता है।
(3) शिक्षण अनुकर्ता/सहायक का प्रयोग (Use of Proctors)- शिक्षण अनुकर्ता को छात्र अनुकर्ता या सहायक भी कहा जाता है। अधिकतर ऐसे छात्र जिन्होंने अपना पाठ्यक्रम पूरा कर लिया होता है कि नियुक्ति शिक्षण अनुकर्ता के रूप में कर ली जाती है। इनके प्रमुख कार्य हैं-
- यूनिट परीक्षण तथा अन्तिम परीक्षणे में निपुणता स्तर का अंकन करना।
- छात्रों के उत्तरों का विवेचन करना।
- छात्रों को अनुवर्ग शिक्षण देना।
- अनुदेशक को पाठ्यक्रम, लिखित सामग्री व परीक्षण पदों (Items) पर छात्रों की प्रगति की अनुरूप पृष्ठपोषण प्रदान करना।
(4) लिखित शब्दों पर जोर (Emphasis on Written Words)- इस प्रणाली में सम्पूर्ण अनदेशन लिखित सामग्री के माध्यम से संचालित किया जाता है। ये लिखित शब्द या लिखित सामग्री स्व-अनुदेशात्मक अभिक्रमित अनुदेशन, अथवा नियमित पाठ्य पुस्तकें तथा इस प्रणाली में लिखित अध्ययन संदर्शिकायें (Study Guides) होती हैं। इनमें अध्ययन संदर्शिकायें सर्वाधिक महत्व की हैं. ये अनुदेशक तथा छात्र, दोनों के मध्य सम्प्रेषण का कार्य करती हैं।
(5) अभिप्रेरणायें युक्त क्रियायें (Activities with Motivations)- प्रस्तुत प्रणाली में क्रियाओं के लिये अभिप्रेरणायें प्रदान करने का कार्य व्याख्यान/संभाषण द्वारा किया जाता है। व्याख्यान का उपयोग सूचना देने या विषय-वस्तु के स्पष्टीकरण के लिये करने की अपेक्षा इस प्रणाली में उत्साहवर्धन तथा सम्बर्धन कार्यों (Enrichment Functions) के लिये किया जाता है। परीक्षण देने, परीक्षणों के अध्ययन तथा छात्र अनुकर्ताओं द्वारा अनुवर्ग शिक्षण के लिये कक्षा सभायें (Class Meetings)आयोजित की जाती है।
व्यक्तिगत अनुदेशन की यह प्रणाली मनोविज्ञान के प्रबलन-सिद्धान्त पर आधारित है।
प्रारम्भ में व्यक्तिगत अनुदेशन प्रणाली का सूत्रपात 1963 में ‘केलर-योजना’ (Keller Plan) के नाम से हुआ था। व्यक्तिगत अनुदेशन प्रणाली में-
“Learners work on their own and they must achieve mastery of a series of written learning units (by scoring or more, in general). They are assisted by teachers and proctors (by way of enriching lectures before final tests).”
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