अभिक्रमित अधिगम के प्रकार (Types of Programmed Learning)
अभिक्रमित अधिगम हेतु अनुदेशन देने के लिए अनेक प्रकार के अभिक्रम काम में लाये जाते हैं, जो प्रमुखत: निम्नलिखित हैं :
1. रेखीय अभिक्रम (Linear Program)
2. शाखीय अभिक्रम (Branching Program)
3.मैथेटिक्स अभिक्रम (Mathematics Program)
4. स्वनिर्देशित अभिक्रम (Adjunct Auto-instruction Program)
5. कम्प्यूटर आधारित कार्यक्रम (Computer based Program)
रेखीय अभिक्रम (Linear Program):
रेखीय अभिक्रम को श्रृंखला अभिक्रम अथवा बाह्य अनुदेशन भी कहते हैं। अधिगम हेतु मनोवैज्ञानिकों ने समय-समय पर अनेक सिद्धान्त प्रतिपादित किये और इन सिद्धान्तों के आधार पर शिक्षाशास्त्रियों द्वारा छात्रों की अधिगम शक्ति को अधिग सुग्राहा, सरल व रुचिकर बनाने का प्रयत्न किया गया है। इन मनोवैज्ञानिकों में हार्वर्ड विश्वविद्यालय के बी.एफ. स्किनर का नाम उल्लेखनीय है, जिन्होंने 1943 में कबूतरों पर प्रयोग के आधार पर अधिगम का सक्रिय अनुबद्ध अनुक्रिया सिद्धान्त प्रतिपादित किया और इसके आधार पर ही ‘सक्रिय अनुबद्ध अनुक्रिया शिक्षण प्रतिमान‘ का निर्माण किया। इस प्रतिमान का उदाहरण ‘रेखीय अभिक्रम’ है। इस प्रकार रेखीय अभिक्रम के मुख्य प्रतिपादक बी.एफ. स्किनर हैं। 1984 में जब स्किनर अभिभावक दिवस के अवसर पर अपनी पुत्री के विद्यालय गये तब उन्होंने अनुभव किया कि तत्कालीन शिक्षण प्रणाली में सुधार अपेक्षित है।
शिक्षण में पृष्ठपोषण तथा पुनर्बलन अत्यावश्यक है और इनके द्वारा ही छात्रों में अपेक्षित व्यवहारगत परिवर्तन लाया जा सकता है। इन विचारों को स्किनर ने एक लेख ‘अधिगम का विज्ञान तथा शिक्षण की कला‘ में प्रकाशित किया। स्किनर ने सीखने के लिए छोटे-छोटे पदों का प्रयोग किया इसलिए इनके प्रोग्राम को श्रृंखला अनुदेशन कहा जाता है जबकि प्रेसे के अनदेशन को मिश्रित अभिक्रमित अनुदेशन कहा जाता है, क्योंकि इसमें बहुविकल्पात्मक प्रश्नों को पाठ की पुनरावृत्ति के लिए प्रयोग किया जाता है।
रेखीय अभिक्रम में जो अभिक्रम बनाये जाते हैं, वे एक सीधी रेखा के रूप में होते हैं तथा प्रत्येक फ्रेम से एक नया फ्रेम निकलता है। इस प्रकार यह एक श्रृंखला की भाँति एक-दूसरे से जुड़े हुए तथा एक क्रम में होते हैं। किसी भी फ्रेम की उपशाखायें नहीं होती। इसमें बालक के पढ़ने का मार्ग बाह्य रूप से अधिक्रमित अनुदेशन लिखने वाले द्वारा निर्धारित किया जाता है, इसलिए इसे बहिर्निहित अथवा बाह्य अनुदेशन भी कह देते हैं।
रेखीय अभिक्रम की अवधारणायें (Assumptions of Linear Program) :
1. छात्र सही अनुक्रियाओं पर प्रेरित होते हैं तथा पूर्ण अनुक्रियाओं को दूर करने का प्रयत्न कर अधिक सीखते हैं।
2. इसमें पाठ्यवस्तु को छात्रों के समक्ष सरल व सुग्राह्य रूप में छोटे-छोटे पदों में प्रस्तुत किया जाता है, अतः छात्र अधिक सीखते हैं।
3. छात्र स्वयं सीखने के लिए तत्पर तथा सक्रिय होते हैं।
4. पाठ्यवस्तु की क्रमबद्धता शिक्षण सूत्रों के अनुसार होती है, अत: अधिगम अधिक होता है।
रेखीय अभिक्रम का स्वरूप (Structure of Linear Program) :
रेखीय अभिक्रम में विषयवस्तु को छोटे-छोटे पदों में विभक्त कर दिया जाता है। इन पदों में तीन तत्त्व निहित होते हैं :
1. उद्दीपन (Stimulus),
2. अनुक्रिया (Response),
3. पुनर्बलन (Reinforcement)।
1. उद्दीपन (Stimulus)- रेखीय अभिक्रम में पाठ्यवस्तु अथवा पद उद्दीपन होते हैं जो छात्र को प्रतिक्रिया करने के लिए प्रेरित करते हैं, इन्हें स्वतंत्र चर भी कहते हैं।
2. अनुक्रिया (Response)- छात्र पाठ्यवस्तु के रूप में प्रस्तुत उद्दीपक के प्रति क्या प्रतिक्रिया अभिव्यक्त करते हैं, उसे अनुक्रिया कहते हैं। यह आश्रित चर है क्योंकि अनुक्रिया उद्दीपक पर निर्भर होती है। अनुक्रिया से छात्र के ज्ञान में वृद्धि होती है तथा अनुक्रिया की पुष्टि छात्र को पुनर्बलन प्रदान करती है।
3. पुनर्बलन (Reinforcement)- छात्रों को अपनी अनुक्रियाओं का मूल्यांकन करने हेतु प्रत्येक फ्रेम के अन्त में सही उत्तर दिया होता है। अनुक्रिया सही होने पर छात्र प्रसन्न होकर अधिक सीखने के लिए प्रेरित होता है, यही पुनर्बलन है।।
रेखीय अभिक्रम के पदों के प्रकार (Types of Linear Program Frames) :
रेखीय अभिक्रम में पद प्रमुखतः चार प्रकार के बनाये जाते हैं :
1. प्रस्तावना पद (Introductory Frames)- इन पदों का मुख्य उद्देश्य अभिक्रम प्रारम्भ करना है। ये पूर्व व्यवहारों से नवीन व्यवहारों को जोड़ने का प्रयास करते हैं, जिससे छात्र सुगमता से सही अनुक्रिया कर सकें तथा सीखने के लिए प्रेरित हों।
2. शिक्षण पद (Teaching Frames)- इन पदों की संख्या अधिक होती है तथा इनका मुख्य लक्ष्य शिक्षण करना होता है। प्रत्येक पद एक नवीन ज्ञान प्रदान करता है। ये पद इस प्रकार क्रम से व्यवस्थित होते हैं कि छात्र पूरे पाठ को आसानी से समझ लेते हैं।
3. अभ्यास पद (Practice Frames)- इन पदों के माध्यम से पढ़ाये गये पाठ का अभ्यास करवाया जाता है तथा इनका कठिनाई स्तर शिक्षण पदों की तुलना में अधिक होता है।
4. परीक्षण पद (Testing Frames)- इन पदों का मुख्य उद्देश्य छात्रों के सीखे गये ज्ञान का मूल्यांकन करना है। इस चरण में छात्रों को सही अनक्रियाओं के लिए किसी भी प्रकार की सहायता प्रदान नहीं की जाती।
रेखीय अभिक्रम की विशेषताएँ (Characteristics of Linear Program) :
रेखीय अभिक्रम का अधिगम की क्रियाओं में विशेष महत्त्व है इसीलिए शिक्षण में इसका प्रयोग विशेषतः लोकप्रिय है। इसमें निम्नलिखित विशेषताएँ हैं:
1. यह मनोवैज्ञानिक सिद्धान्त पर आधारित है।
2. इसके द्वारा छात्रों की व्यक्तिगत विभिन्नताओं के आधार पर शिक्षण किया जा सकता है।
3. इसमें पदों का क्रम तार्किक होता है।
4. छात्र स्वयं सीखने के लिए प्रेरित होता है क्योंकि इसमें छात्र के उत्तर की ठीक उत्तर से जाँच कराकर पृष्ठ-पोषण की व्यवस्था है।
5. परम्परागत शिक्षण की अपेक्षा अभिक्रमित अनुदेशन से छात्र अधिक सीखते हैं।।
6. इसमें क्लिष्ट विषयों को भी बोधगम्य बनाया जाता है।
7. यह पत्राचार पाठ्यक्रम हेतु उपयोगी है।
8. इस अभिक्रम में शिक्षण सामग्री की रचना और प्रस्तुतीकरण इस ढंग से किया जाता है कि बालक की भूल की सम्भावना प्रायः समाप्त हो जाती है।
9. नियम निर्धारण अथवा सूचना-प्रधान विषयों के अध्ययन के लिए यह बहुत उपयोगी है।
रेखीय अभिक्रम की सीमायें (Limitations of Linear Program) :
1. रेखीय अभिक्रम का प्रयोग सभी विषयों और क्षेत्रों के लिए सम्भव नहीं है।
2. प्रतिभाशाली छात्र इस अभिक्रम के माध्यम से पढ़ने में अधिक रुचि नहीं लेते।
3. इन अभिक्रमों का निर्माण एक जटिल कार्य है। प्रायः उत्तम श्रेणी के अभिक्रम ही उपलब्ध नहीं होते।
4. इनके द्वारा छात्रों में मौलिकता तथा तर्क शक्ति का विकास कर पाना कठिन
5. इसके द्वारा छात्र की अनुक्रिया गलत होने पर उसकी यह जिज्ञासा, कि यह अनुक्रिया गलत क्यों है; इसका समाधान सम्भव नहीं है।
6. इसमें अधिगम नियन्त्रित परिस्थितियों में होता है।
7. रेखीय अभिक्रम के माध्यम से जो पद छात्र के समक्ष प्रस्तुत किये जाते हैं, उनके उत्तर छात्र स्वयं बिना सोचे ही देख लेते हैं, अत: इसका कोई लाभ नहीं रहता, क्योंकि सभी बच्चे ईमानदारी से कार्य करें, यह सम्भव नहीं है।
शाखीय अभिक्रम (Branching Program):
शाखीय अभिक्रम के प्रतिपादक नॉर्मन ए. क्राउडर हैं, इसी कारण से कभी-कभी इसे क्राउडेरियन अभिक्रम भी कहते हैं। वैसे इसे अरेखीय अभिक्रम तथा आन्तरिक अभिक्रम के नाम से भी जाना जाता है, क्योंकि इसमें अध्ययनकर्ता को स्वयं ही अपना निर्णय करके आगे बढ़ना होता है। रेखीय अभिक्रम में छात्र को प्रत्येक फ्रेम को पढ़ना पड़ता है, चाहे वह उसके लिए आवश्यक हो अथवा नहीं। परन्तु शाखीय अभिक्रम में छात्र को एक फ्रेम पढ़ने को दिया जाता है और फिर प्रश्न पूछा जाता है जिसमें बालक अपना उत्तर चुनकर देता है। इसमें केवल एक हा उत्तर सही होता है। छात्र यदि गलत उत्तर चुनकर देता है तो उसका निदानात्मक परीक्षण करने के लिए उससे अन्य फ्रेम पढ़वाये जाते हैं। सही उत्तर के चयनोपरान्त वह अगले फ्रेम पर पहँच जाता है। इसे निम्नलिखित रेखाचित्र से समझा जा सकता है:
शाखीय अभिक्रम एक पुस्तक के रूप में अथवा किसी मशीन के रूप में भी प्रस्तुत किया जा सकता है। इस प्रकार की पुस्तकें ‘प्रयास पाठ्य-पुस्तकें’ (Scrambled Text Books) कहलाती हैं, क्योंकि इन पुस्तकों के पृष्ठ साधारण तारतम्यता में नहीं होते। शाखीय अभिक्रम परम्परागत ट्यूटोरियल पद्धति पर आधारित हैं, जिसमें अन्त:क्रिया सम्बन्धों पर विशेष ध्यान दिया जाता है। इसमें वही छात्र अनुक्रिया करता है जिसके लिए अध्यापक कहता है तथा छात्र जो कुछ करता है उसके आधार पर अध्यापक उसके व्यवहार को परिमार्जित करता है।
प्रेसी ने प्रश्नों के उत्तरों के अभ्यास के द्वारा, स्विनर ने पुनर्बलन के द्वारा अपेक्षित व्यवहार परिवर्तन लाने का प्रयास किया परन्तु क्राउडर ने अनुदेशन को प्रभावशाली बनाने हेतु निदान तथा उपचार पर अधिक बल दिया।
शाखीय अभिक्रम के मूल सिद्धान्त (Basic Theories of Branching Program) :
शाखीय अभिक्रम के निम्नलिखित मुख्य सिद्धान्त हैं :
1. शाखीय अभिक्रम के प्रश्नों का उद्देश्य छात्रों का निदान करना होता है, परीक्षण करना नहीं। निदान के तुरन्त बाद विशिष्ट उपचार प्रदान किया जाता है जिससे छात्रों की कमजोरियों को दूर किया जा सके।
2. छात्रों द्वारा की गई त्रुटिपूर्ण अनुक्रियायें अधिगम में बाधक नहीं होतीं अपितु छात्रों को अध्ययन के निर्देशन प्रदान करती हैं।
3. इस अभिक्रम में मानव अधिगम के प्रतिमान को प्रत्यक्ष रूप में सरलता से प्रयुक्त किया जा सकता है।
4. प्रश्नों के उत्तरों को बहुविकल्पात्मक रूप में छात्रों के समक्ष प्रस्तुत किया जाता है, अतः उन्हें सही अनुक्रिया के चयन में सहायता मिलती है।
5. इस अभिक्रम में अधिगम की प्रक्रिया की अपेक्षा अधिगम उत्पादन को अधिक महत्त्व दिया जाता है।
शाखीय अभिक्रम की विशेषताएँ (Characteristics of Branching Program) :
1. प्रत्येक छात्र को अपनी आवश्यकतानुसार विभिन्न पदों पर होकर अन्तिम व्यवहार तक पहुँचने की स्वतन्त्रता होती है।
2. छात्रों को अपनी गलत अनुक्रियाओं के आधार पर व्यक्तिगत कठिनाइयों की जानकारी होती है और उनकी कमजोरियों के लिए उपचारात्मक अनुदेशन की भी व्यवस्था की जाती है। इसमें एक अनुवर्ग (Tutorial) शिक्षण प्रणाली की भाँति कार्य किया जाता है।
3. इस अभिक्रम में रेखीय अभिक्रम की तुलना में प्रत्येक फर्म में शिक्षण सामग्री की मात्रा अधिक होती है।
4. अनक्रिया तथा उसके क्रम पर छात्र का नियन्त्रण होता है. छात्र को अपने अनुसार अनुक्रिया करने का अधिकार है।
5. इसका प्रयोग उच्च शिक्षण उद्देश्यों की प्राप्ति के लिए किया जाता है।
6. इनमें पृष्ठपोषण तुरन्त दिया जाता है, अत: छात्र मनोवैज्ञानिक तथा सामाजिक दोनों ही दृष्टि से अभिप्रेरित होता है।
7. इस अभिक्रम में छात्रों को अपनी व्यक्तिगत विभिन्नताओं के अनुसार अध्ययन का अवसर दिया जाता है।
शाखीय अभिक्रम की सीमाएँ (Limitations of Branching Program) :
1. शाखीय अभिक्रम का निर्माण किया जाना कठिन कार्य है।
2. छात्र जब गलत अनुक्रिया करता है, तब उसे उसी सूचना को दोहराना पड़ता है, जिससे छात्र की कमजोरी के सुधार की सम्भावना कम हो जाती है।
3. इस अभिक्रम में पृष्ठों की संख्या अधिक होने से यह महँगा हो जाता है तथा अध्ययन के समय छात्रों को पृष्ठों के क्रम का अनुसरण नहीं करना होता, उन्हें कभी और आगे कभी पीछे के पष्ठों को उलटकर अध्ययन करना होता है, अत: छात्र इसमें कम रुचि लेते हैं तथा वे अध्ययन में कठिनाई अनुभव करते हैं।
4. यह अभिक्रम बड़ी कक्षाओं के लिए ही उपयोगी है।
5. यह मेधावी छात्रों के लिए ही अधिक लाभदायक है।
6. इसके द्वारा कछ चयनित प्रकरणों को ही पढ़ाया जा सकता है, पूरी पुस्तक पढ़ाया जाना सम्भव नहीं।
7. कई बार छात्र दिये गये विकल्पों में सही विकल्प का चयन अनुभव के आधार पर भी करता है।
8. इस अभिक्रम को कम्प्यूटर तथा शिक्षण मशीन पर नहीं दिया जा सकता।
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