प्लेटो का विज्ञानवाद

प्लेटो का विज्ञानवाद क्या है? | Plato’s Scientism in Hindi

विज्ञानवाद(Theory of Ideas)

प्लेटो के दर्शन में सबसे महत्त्वपूर्ण सिद्धान्त प्लेटो का विज्ञानवाद है। कुछ विद्वानों का कहना है कि विज्ञानवाद महात्मा सुकरात का सिद्धान्त है, प्लटो का नहीं। वस्तुतः विज्ञानवाद (प्रत्ययरूप में) के जन्मदाता सुकरात ही हैं, परन्तु प्लेटो ने इसे विकसित कर पूर्ण विज्ञानवाद का सिद्धान्त बनाया। सुकरात के अनुसार प्रत्यय (Concept) केवल विचारों का मापदण्ड कहते हैं। प्लेटो ने सुकरात के मानसिक प्रत्ययों को वास्तविक बनाया। अतः प्रत्यय केवल मानसिक विचार नहीं, वरन् वास्तविक वस्तु हैं। जिनका अस्तित्व मन के बाहर स्वतन्त्र है| इन स्वतन्त्र वस्तुओं का नाम विज्ञान है।

विज्ञानवाद तत्त्व सम्बन्धी सिद्धान्त है जिसके अनुसार विज्ञान मानसिक विचार नहीं, वरन् बाह्य जगत् की वस्तुओं के सारभूत तत्त्व हैं। प्लेटो के अनुसार वास्तविक ज्ञान तो केवल प्रत्ययों या विज्ञानों का ही सम्भव है। प्रत्यय या विज्ञान जो अपरिणामी, सामान्य, नित्य तथा वस्तुओं के सारभूत तत्त्व है, हमारे ज्ञान के एकमात्र विषय है। इन्द्रिय जगत् जिसमें अनित्यता, सन्देह सापेक्षता का साम्राज्य है, हमारे ज्ञान के विषय कदापि नहीं बन सकते। विज्ञान जो नित्य, सार्वभौम और असन्दिग्ध है, ये हमारे ज्ञान के वास्तविक विषय है।

प्रश्न यह है कि प्लेटो अपने विज्ञानवाद की स्थापना कैसे करते हैं, या विज्ञानवाद की सिद्धि के लिए क्या तर्क उपस्थित करते है? प्लेटो विज्ञानवाद की सिद्धि के लिए संवाद सिद्धान्त (Correspondence theory) का सहारा लेते हैं। संवाद सिद्धान्त मानसिक विचार तथा बाह्य वस्तु में संगति या सामञ्जस्य का परिणाम बतलाया जाता है। इसे यथार्थवाद भी कहते हैं, क्योंकि इस सिद्धान्त के अनुसार यथार्थ ज्ञान वही है जिसके अनरुप वस्तु हो। ज्ञान मानसिक है तथा वस्तु बाह्य जगत् में है। यदि दोनों में संगति या संवाद हो तो ज्ञान यथार्थ है। यदि दोनों में असंगति हो। तो ज्ञान अयथार्थ है। उदाहरणार्थ, हमारे मन में एक झील का प्रत्यय है।

यह प्रत्यय यथार्थ तभी होगा जब इसके अनुरूप बाह्य जगत् में एक झील हो। यदि बाह्य जगत् में झील नहीं है तो झील का प्रत्यय अयथार्थ होगा। दूसरे शब्दों में बिम्ब और प्रतिबिम्ब की पारस्परिक संगति ही संवाद है। यह संवाद ही ज्ञान की यथार्थता का द्योतक है। तात्पर्य यह है कि ज्ञान तभी यथार्थ होगा जब विचार के अनुरूप वस्तु भी हो। वस्तु का होना अनिवार्य है। यही प्लेटो का वस्तुवाद (Realism) है। यदि वस्तु की सत्ता नहीं है तो विचार या ज्ञान की यथार्थता सिद्ध नहीं होगी। इस प्रकार प्लेटो के विज्ञान केवल मानसिक विचार ही नहीं वरन् बाह्य वस्तु भी है। यहाँ हम स्पष्टतः देखते हैं कि सुकरात के मानसिक प्रत्यय प्लेटो के विज्ञान बनकर बाह्य वस्तु का रूप भी धारण करते हैं।

विज्ञान क्या है तथा इनकी उत्पत्ति कैसे होती है? प्लेटो के अनुसार विज्ञान व्यक्ति नहीं जाति का रूप है, विशेष पदार्थ नहीं, वरन् सामान्य है। इन्हें वर्गगत प्रत्यय (Class concept) भी कहा गया है। उदाहरणार्थ, सुन्दर वस्तुएँ व्यक्ति हैं, परन्तु सौन्दर्य जातिरूप विज्ञान है। प्लेटो के अनुसार विज्ञान वस्तु के साररूप हैं। किसी वर्ग के विभिन्न व्यक्तियों का सार ही उस वर्ग का विज्ञान है। उदाहरणार्थ, सौन्दर्य विज्ञान है, जो सुन्दर वस्तुओं का सार है। रमणी का मुख सुन्दर है, चाँदनी रात सुन्द है, प्रकृति के दृश्य सुन्दर है। अतः सुन्दर वस्तुएँ अनेक हैं। इन सभी सुन्दर वस्तुओं से हम उनके सारे सौन्दर्य’ को पृथक् कर लेते हैं तथा सौन्दर्य विज्ञान का निर्माण करते है। सार को पृथक् करने की क्रिया के लिये तुलना की आवश्यकता है।

रमणी के मुख, चाँदनी रात तथा प्रकृति के दृश्य आदि सभी में तुलना करते हैं। इस तुलना के आधार पर हम सबमें एक सामान्य तथा सार गुण सौन्दर्य का पता लगाते हैं। यह बुद्धि का कार्य है, इन्द्रियों का नहीं। इन्द्रियों से हमें अलग-अलग सुन्दर वस्तुओं का ज्ञान प्राप्त हो सकता है, परन्तु साररूप सौन्दर्य की उपलब्धि तो हमें सत्र बुद्धि से ही हो सकती है। बुद्धि किसी वर्ग या जाति के विभिन्न व्यक्तियों में समय तथा वैषम्य का निश्चय करती है। साम्य समान गुण है तथा वैषम्य विशेष गुण बद्धि सामान्य गुणों को ग्रहण करती है तथा विशेष गुणों को छोड़ देती है। उस न के सभी व्यक्तियों का सार ही उस वर्ग का सामान्य, जाति या विज्ञान है। उदाहरणार्थ, सौन्दर्य विज्ञान सभी सुन्दर वस्तुओं का सार है जिसका निर्माण समान गणों के ग्रहण तथा विशेष गुणों के त्याग से होता है।

जिस प्रकार सौन्दर्य विज्ञान है उसी प्रकार न्याय, श्वेत, अश्व आदि सभी विज्ञान हैं। अब प्रश्न यह है कि इन विज्ञानों के अनुरूप बाह्य वस्तु है या नहीं? यदि इनके अनुरूप कोई बाह्य वस्तु नहीं। है तो केवल काल्पनिक या मानसिक प्रत्यय होंगे। प्लटो के अनुसार सौन्दर्य विज्ञान केवल काल्पनिक नहीं, वास्तविक भी है| तात्पर्य यह है कि ये विज्ञान बाह्य जगत् में वस्तु रूप में भी स्थित हैं। सौन्दर्य विज्ञान है, बाह्य वस्तु है तथा समस्त सुन्दर वस्तुओं से भिन्न है। यह सौन्दर्य विज्ञान सभी सुन्दर वस्तुओं से भिन्न होते हुए भी सभी सुन्दर वस्तुओं का प्रतिनिधित्व करता है। वस्तुतः वह सौन्दर्य परमार्थ सौन्दर्य है तथा सभी सुन्दर वस्तुएँ उसका आभास मात्र है। भौतिक जगत् में तो केवल वस्तु है, परन्तु पारमार्थिक जगत् विज्ञानों से भरा है। भौतिक जगत् में जितनी भी वस्तुएँ हैं परमार्थिक जगत् में उतने ही विज्ञान हैं, क्योंकि विज्ञान तो वस्तु के कारण है।

विज्ञान की सिद्धि प्लेटो के अनुसार विज्ञान ही विश्व के मूल कारण हैं अर्थात् विश्व की सभी वस्तुओं की उत्पत्ति विज्ञान से होती है। अरस्तू के अनुसार प्लेटो ने अपने विज्ञानवाद की सिद्ध के लिए पाँच प्रकार के तर्कों का उपयोग किया है जो निम्नलिखित हैं:-

१. विज्ञानमूलक तर्क (The argument of the sciences)

२. अभेदमूलक तर्क (The argument of the one and many)

३. अभावमूलक तक (The argument of the knowledge of things that are no more)

४. सम्बन्धमूलक तर्क (The argument of relation)

५. तृतीय मनुष्यमूलक तर्क (The argument implying the fallacy of third man)

 

१. विज्ञानमूलक तर्कः

ज्ञान और विज्ञान का अस्तित्व है, अतः उनका कोई विषय अवश्य होना चाहिए। भौतक जगत में अनित्यता है, अर्थात् संसार की सभी वस्तुएँ अनित्य हैं; क्योंकि ये विशेष हैं। अतः विशेष वस्तु इनका विषय नहीं हो सकती। उन विज्ञानों का विषय तो नित्य तथा अपरिणामी होना चाहिये। इस प्रकार इनके विषय नित्य अपरिणामी विज्ञान (Idea) हैं। इन विज्ञानों की नित्यता स्वतःसिद्ध है| यदि इनकी नित्यता को हम स्वतःसिद्ध न मानें तो किसी भी प्रकार का ज्ञान सम्भव नहीं; क्योंकि ज्ञान की नित्यता अतिभौतिक विज्ञान जगत् की देन है। परन्तु इससे यह निष्कर्ष नहीं निकलता कि इन्द्रिय जगत् का ज्ञान बिल्कुल अनावश्यक है। फीडो में प्लेटो का स्पष्टतः कहना है कि इन्द्रियानुभव के बिना विज्ञान का संस्मरण (Reminiscence) नहीं हो सकता।

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२. अभेदमूलक तर्कः

संसार में अनेक मनुष्य और संसार में अनेक पशु हैं। परन्तु संसार का कोई विशेष मनुष्य या पशु सामान्य मनुष्य या पशु नहीं हो सकता। इस प्रकार सामान्य विशेषों से भिन्न है, जाति व्यक्ति से पृथक् है। इन्द्रिय जगत् की सभी वस्तुएँ विशेष हैं; अतः इनसे परे पारमार्थिक जगत् की सत्ता अवश्य है जहाँ सामान्य रहते हैं। जगत् के सभी विशेषों या व्यक्तियों की सत्ता सामान्यों के कारण ही है। सजातियों में एकता तथा विजातीय वस्तुओं में भेद के कारण विज्ञान माने गये हैं।

 

३. अभावमूलक तकः

सामान्य विशेषों का सार होते हुए भी विशेषों से भिन्न हैं। जब हम सामान्य (मनुष्य) का चिन्तन करते हैं तो इसका विषय मनुष्य जाति या सामान्य ही है। इस पर विशेष मनुष्यों (व्यक्तिरूप) के अभाव का कोई प्रभाव नहीं पड़ता। तात्पर्य यह है कि हम मनुष्य जाति के विषय में चिन्तन कर सकते हैं।

 

४. सम्बन्धमूलक तर्कः

विज्ञान विश्व के नित्य साँचे हैं। ये विश्व के मूल बिम्ब हैं तथा विश्व के सभी पदार्थ इनके प्रतिबिम्ब माने गये हैं। विश्व के सभी पदार्थ बिल्कुल इनके समान नहीं; परन्तु वे विज्ञानों का ही अनुकरण करते हैं, क्योंकि विज्ञान पूर्ण आदर्श माने गये है। दो सांसारिक वस्तुओं को हम एक ही नाम से संजित कर सकते हैं यदि उनमें समरूपता (Likeness) हो या समानता (Similarity) हो, या एक दूसरे का प्रतिरूप (copy) हो। संचार के नित्य साँचे विज्ञान सांसारिक वस्तुओं के समान भी हैं तथा असमान भी हैं।

५. तृतीय मनुष्यमूलक तर्कः

यह तर्क अभेदमूलक तर्क का ही दूसरा रूप है| अभेदमूलक तर्क में सामान्य की सत्ता पृथक् मानी गयी है। तृतीय मनुष्यमूलक तर्क इस प्रकार है: जब वस्तुओं को एक नाम से अभिहित किया जाता है और वे वस्तुएँ इतनी व्यापक नहीं हैं जितना कि उनका नाम है, इसका अर्थ है कि वे सभी विशिष्ट वस्तएँ एक सामान्य सत्ता से सम्बन्ध रखती हैं और वह सामान्य सत्ता प्लेटो का विज्ञान है।

प्रोफेसर जेलर ने विज्ञान का महत्व बतलाते हुए अरस्तू के उपरोक्त पाँच तकों को तीन दृष्टि से व्यक्त किया है। सत्ता की दृष्टि से, उद्देश्य की दृष्टि से तथा स्वरूप की दृष्टि से कुछ और दार्शनिकों ने दो और दृष्टिकोण बतलाए हैं, ज्ञान की दृष्टि से तथा रहस्य की दृष्टि से कुल मिलाकर पाँच दृष्टिकोणों से विज्ञान का महत्व बतलाया गया है जो निम्नलिखित है:-

 

१. सत्ता की दृष्टि से (Ontologically) : सत्ता की दृष्टि से विज्ञान की। सत्ता है। विज्ञान वस्तुओं का सार होते हुए भी वस्तुओं से पृथक है। विज्ञान नित्य है तथा वस्तु अनित्य वस्तुएँ तो विज्ञान के प्रतिरूप हैं तथा विज्ञान ही वस्तु के स्वरूप है।

 

२. उद्देश्य की दृष्टि से (Teleologically) : उद्देश्य की दृष्टि से विज्ञान नित्य साँचे हैं। इन्हीं की सहायता से ईश्वर (Demi-urge) इन्द्रिय जगत् के पदार्थों की सृष्टि करता है। विज्ञान ही मूल बिम्ब हैं तथा सम्पूर्ण जागतिक पदार्थ विज्ञान के प्रतिबिम्ब हैं। वस्तुएँ विज्ञान की ओर नित्य अग्रसर हो रही हैं। यही विकास है। यह विकास अपूर्ण में पूर्ण की ओर है। पूर्णता तथा नित्यता की प्राप्ति ही विकास का उद्देश्य है। यह विकास यांत्रिक नहीं, वरन् प्रयोजनपूर्ण है।

 

३. स्वरूप की दृष्टि से (Logically): स्वरूप की दृष्टि से विज्ञान सामान्य हैं। ये विभिन्न वस्तुओं के सार हैं। ये जातिरूप हैं जिनका निर्माण विभिन्न व्यक्तियों के समान गुणों के ग्रहण तथा विशेष गुणों के त्याग से होता है। अतः विज्ञान का कार्य सजातियों को एकत्र करना तथा विजातियों से इनका भेद करना है।

 

४. ज्ञान की दृष्टि से (Epistemologically) : ज्ञान का ही ज्ञान के विषय हैं। प्लेटो के अनुसार ज्ञान तथा ज्ञान का विषय नित्य और अपरिणामी होना चाहिए। इन्द्रियों से तो केवल अनित्य संवेदन ही प्राप्त होते है विज्ञान ही इन्हें (संवेदनों को) ससम्बद्ध कर निश्चित तथा सार्वभौम बनात हा अतः विज्ञान ही ज्ञान के यथार्थ विषय हैं। विज्ञान ही सजातीय वस्तुओं के सार है। अतः सजातीय वस्तु के साम्य तथा विजातीय के वैषम्य का ज्ञान विज्ञान से ही होता है।

 

५. रहस्य की दृष्टि से (Mystically) : रहस्य की दृष्टि से विज्ञान शिवतत्व (Idea of good) की अभिव्यक्ति है। प्लेटो के अनुसार विज्ञान तो वस्तु के सार हैं, परन्तु विभिन्न विज्ञानों के भी साररूप विज्ञान हैं। इस प्रकार विज्ञानों की एक तारतम्यक श्रेणी है| श्रेणी में सबसे ऊँचा परम शुभ विज्ञान (Idea of good) है, अत: नीचे के सभी विज्ञान उस परम शिव या शुभ प्रत्यय की अभिव्यक्ति हैं।

 

विज्ञान की विशेषताएँ(Characteristics of Ideas)

उपरोक्त विवरण से स्पष्ट है कि विज्ञान ही विश्व के मूल हैं, सभी पदार्थों के साररूप हैं। विज्ञान नित्य, शाश्वत, अपरिणामी, सामान्य, सार्वभौम, निरपेक्ष, स्वतंत्र, पारमार्थिक तत्व है। इनकी निम्नलिखित विशेषताएं हैं:-

१. विज्ञान द्रव्य (Substance) हैं। साधारणतः हम गुण के आधार (गुणी) को द्रव्य कहते हैं। उदाहरणार्थ, लोहा द्रव्य है, क्योंकि काठिन्य और कालिमा इसके गुण है। ये गुण निराधार नहीं रह सकते। अतः इनके आधार या आश्रय को द्रव्य कहा जाता है। परन्तु दार्शनिक दृष्टि से द्रव्य की एक विशेष परिभाषा है| द्रव्य वह है जिसकी सत्ता स्वतंत्र हो, अर्थात् द्रव्य का अस्तित्व किसी अन्य पर आश्रित नहीं रहता। द्रव्य अपने अस्तित्व का स्वयं आधार होता है। इसी अर्थ में द्रव्य को स्वयंभ (Self caused) कहते हैं, क्योंकि द्रव्य का कारण कोई और नहीं होता। ईश्वरवादियों के अनुसार ईश्वर द्रव्य है, क्योंकि वह स्वयं निराधार, अकारण होते हुए भी सबका आधार तथा कारण है। इसी विशेष अर्थ में प्लेटो के विज्ञान द्रव्य हैं; क्योंकि विज्ञान सबका कारण होते हुए भी स्वयं अकारण है। विज्ञान वस्तुओं के आधार हैं परन्तु स्वयं निराधार हैं, विशेष सामान्य पर आश्रित हैं, परन्तु सामान्य स्वयं निराश्रित है; क्योंकि स्वयंभू हैं।

२. विज्ञान सामान्य (Universal) है या जातिरूप है, विशेष पदार्थ या शक्तिरूप नहीं अश्वत्व सामान्य है, जाति है जो अश्व विशेष या व्यक्ति से पृथक है। जाति की सत्ता व्यक्ति से भिन्न है। अश्वत्व कोई रक्त, पीत या श्वेत वर्ण का अश्व नहीं। यह तो अश्व सामान्य है।

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३. विज्ञान वस्तु नहीं (Not things), विचार (Thoughts) है। मनुष्यत्व या मनुष्य सामान्य कोई लाल, काला, गोरा मनुष्य नहीं, यह तो मनुष्य मात्र का विचार है। परन्तु विचार होते हुए भी यह न तो किसी व्यक्ति का विचार है और न ईश्वर का ही। व्यक्ति तो किसी विशेष विचार का आधार हो सकता है, परन्तु ये विचार तो सामान्य हैं। हमारे विशेष विचार तो सामान्य विचार की प्रतिलिपि (Copy) है। विज्ञान ईश्वर के भी विचार नहीं। कभी-कभी आलंकारिक भाषा में विज्ञानों को देवी विचार कह दिया जाता है, परन्तु यह तो केवल काव्यात्मक भाषा है। इससे ईश्वर विज्ञान का कारण सिद्ध नहीं होता।

४. प्रत्येक विज्ञान एक इकाई (Unit) है। यह अनेकता में एकता है। मनुष्य अनेक हैं, परन्तु उनका विज्ञान मनुष्यत्व एक है। किसी वर्ग के विभिन्न सदस्यों के सार से हम उस वर्ग के विज्ञान का निर्माण करते है। उस वर्ग के सदस्य अनेक हैं, परन्तु उनका सार एक है।

५. विज्ञान नित्य, कूटस्थ (Immutable) है। व्यक्ति मरता-जीता है, वृद्धि-ह्रास, उपचय-अपचय को प्राप्त होता है, परन्तु विज्ञान तो उत्पत्ति और विनाश के परे हैं। इनका जन्म-मरण नहीं होता। अतः ये नित्य माने गये हैं। विज्ञान तो परिभाषारूप हैं। किसी वर्ग के परिभाष्य व्यक्ति बदल सकते हैं, परन्तु उस वर्ग की परिभाषा तो अपरिवर्तनशील है, अतः नित्य है। सुन्दर वस्तुओं का जन्म-मरण होता है; परन्तु सौन्दर्य विज्ञान का नहीं।

६. विज्ञान सभी वस्तुओं के सार (Essence) हैं। किसी वस्तु के सामान्य और सार गुण को ही परिभाषा कहते हैं। उदाहरणार्थ, ‘बौद्धिक प्राणी होना’ मनुष्य की परिभाषा है; क्योंकि बौद्धिक होना ही मनुष्य का सामान्य और सार गुण है। मनुष्य काले और गोरे हो सकते हैं। काला और गोरा होना मनुष्य का आकस्मिक गुण है, परन्तु बौद्धिक होना (चिन्तन करना) आवश्यक गुण है। यही आवश्यक सार गुण है तथा सार गण ही विज्ञान है। अत: विज्ञान परिभाषारूप है।

७. विज्ञान पूर्ण (Perfect) है। पूर्णता ही विज्ञान की वास्तविक सत्ता है। मनुष्य, विज्ञान ही पूर्ण मनष्य है; सामान्य मनुष्य है। संसार के सभी पदार्थ विज्ञान की ओर अभिमुख हैं, जो वस्तु विज्ञान के जितनी निकट है वह उतनी ही सत् है तथा जो दर्शन जितनी ही दूर है वह असत् है। इस प्रकार विज्ञान पूर्णता के द्योतक हैं; क्योंकि आदर्शरूप हैं, प्रत्येक वस्तु इसी पूर्णता की ओर अग्रसर होती जा रही है।

८. विज्ञान देश और काल के परे (Outside space and time) है। विज्ञान यदि किसी देश या स्थान में स्थित होते तो अवश्य ही दिखलायी पड़ते। यदि इन्द्रियों से ये दिखलायी नहीं पड़ते तो मनुष्य इन्हें कोई सूक्ष्म-दर्शन यन्त्र से देखता। परन्तु ये यदि दिखलायी पड़ते तो विशेष वस्तु ही होते; क्योंकि विशेष वस्तु ही इन्द्रियगोचर होती है। विज्ञान काल के भी परे हैं, क्योंकि जन्य वस्तु ही कालिक होती है। जो अजन्य है, वह कालिक नहीं हो सकता। कालिक नहीं होने से विज्ञान नित्य तथा शाश्वत है।

९. विज्ञान बौद्धिक (Rational) हैं; क्योंकि बुद्धि के द्वारा ही इनकी उपलब्धि होती है। इन्द्रियों के द्वारा केवल विशेष पदार्थों का ही ज्ञान हो सकता है। पदार्थों के सामान्य तथा सार गुण का पता बुद्धि लगाती है। सार गुण का पता लगाने के लिए सजातियों के समान गुणों को एकत्र करना पड़ता है तथा असमान गुणों का निराकरण करना पड़ता है। समान गुणों का निश्चय करने में हमें विभिन्न व्यक्तियों की तुलना करनी पड़ती है। यह कार्य बौद्धिक है।

१०. प्लेटो के विज्ञान ऐन्द्रिक तथा भौतिक जगत् के निवासी न होकर विज्ञान जगत् के निवासी हैं। यह विज्ञान जगत् अतीन्द्रिय (Transcendental) है। भौतिक जगत् के सभी पदार्थ देश-काल से अवच्छिन्न होते हैं, परन्तु विज्ञान जगत् देश-काल से अनवच्छिन्न है। अतीन्द्रिय जगत् इन्द्रिय जगत् से सर्वथा भिन्न है। अतः प्लेटो के विज्ञान भी भौतिक वस्तुओं से सर्वथा भिन्न हैं। यही विज्ञान और वस्तु का पार्थक्य प्लेटो का द्वैतवाद है।

११. विज्ञान तथा वस्तु में द्वैत होते हुए भी दोनों सम्बन्ध है। परन्तु यह सम्बन्ध निश्चित नहीं। प्लेटो का कहना है कि विज्ञान बिम्ब है तथा वस्तु प्रतिबिम्ब (Copy) है। कभी-कभी प्लेटो वस्तु को विज्ञान का अंश बतलाते हैं तथा कहते हैं कि वस्तु विज्ञान के सहभागी (Participants) हैं। परन्तु ये दोनों प्रायः विरोधी बातें हैं। प्रतिलिपि या प्रतिच्छाया सहभागी नहीं बन सकती। अतः दोनों का सम्बन्ध स्पष्ट नहीं।

१२. विज्ञान की तारतम्यक श्रेणी (Hierarchy of Ideas) प्लेटो के अनुसार विभिन्न वस्तुओं का सार ही उनका विज्ञान है। अतः संसार में जितने भी सजातीय पदार्थ हैं उतने ही विज्ञान हैं, क्योंकि विज्ञान ही उनके सार है। परन्तु विभिन्न विज्ञानों में कुछ सामान्य तथा सार हैं जो उन विज्ञानों में सामान्य विज्ञान हा तात्पर्य यह है। कि विज्ञानों की श्रेणी है। निम्नतम से लेकर श्रेष्ठतम विज्ञानों की एक श्रृंखला है। श्रेष्ठतम विज्ञान परम शुभ (Idea of highest good) है। उदाहरणार्थ, विभिन्न गायों में सामान्य गोत्व है तथा विभिन्न अश्वों में अश्वत्व सामान्य है परन्तु गोत्व और अश्वत्व में पशुत्व सामान्य है। इसी प्रकार विभिन्न मनुष्यों में मनुष्यत्व सामान्य है।

मनुष्यत्व और पशुत्व में भी प्राणीत्व सामान्य है। इस प्रकार सामान्य की निम्न से उच्च-उच्चतर-उच्चतम की श्रृंखला बनती जाती है। इस प्रकार प्रत्येक विज्ञान अपने से उच्च विज्ञान से सम्बन्धित है। निम्न विज्ञान उच्च विज्ञान में समाहित है तथा उच्च विज्ञान निम्न विज्ञान का नियमन करते हैं। यही प्लेटो का विकासवाद है। इस विकास के चरम शिखर पर सर्वोच्च विज्ञान परम शुभ (Highest good) है। यह पूर्ण आदर्श विज्ञान है।

 

 

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