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मॉरिसन शिक्षण प्रतिमान : बोध स्तर का शिक्षण

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मॉरिसन शिक्षण प्रतिमान : बोध स्तर का शिक्षण

बोध स्तर, स्मृति तथा चिन्तन स्तरों के बीच की कड़ी है। इसे स्मृति स्तर के विचारहीन Thoughtless) एवं चिन्तन स्तर के विचारयुक्त (Thoughtful) शिक्षण के मध्य का शिक्षण स्तर कहा जा सकता है। इसमें शिक्षक के द्वारा छात्रों को नियमों को पहचानने, समझने, उनका विभिन्न परिस्थितियों में प्रयोग करने, विषय के गूढ़ भावों तथा तथ्यों को समझने की क्षमता उत्पन्न की जाती है। अमेरिकन कॉलेज डिक्शनरी में अवबोध को इस प्रकार पारिभाषित किया गया है, “अर्थ ग्रहण करना, विचार को ग्रहण करना, समझना, किसी वस्तु से पूर्ण परिचित होना, किसी वस्तु की विशेषता अथवा प्रकृति से परिचित होना, भाषा में किसी शब्द के अर्थ प्रयुक्त संदर्भ में समझना, किसी तथ्य को स्पष्ट रूप से जानना तथा प्रहण करना।”

बोध स्तर के शिक्षण में शिक्षक का यह प्रयास होता है कि वह छात्रों को बौद्धिक व्यवहार को विकसित करने के लिए अधिक से अधिक अवसर प्रदान करे। इसमें शिक्षक तथा छात्र दोनों सक्रिय होते हैं तथा शिक्षक छात्रों के सामने तथ्यों व सिद्धान्तों के सम्बन्ध तथा सामान्य सिद्धान्तों के वर्णन से बोध को प्रस्तुत करता है। शिक्षक अपने निर्देशों को बोध स्तर तक लाने का प्रयत्न करता है।

बिग्गी (Bigge) ने बोध स्तर के शिक्षण को इस प्रकार पारिभाषित किया है, “बोध स्तर का शिक्षण वह शिक्षण है जो कि छात्रों में सामान्य एवं विशेष अर्थात सिद्धान्तों एवं तथ्यों में सम्बन्ध का ज्ञान कराने का प्रयत्न करता है और उन उपयोगों का विकास करता है, जिनमें सिद्धान्तों का प्रयोग किया जा सकता है।”

 

बोध स्तर के शिक्षण का प्रतिमान

बोध स्तर के शिक्षण का प्रतिमान मौरीसन द्वारा दिया गया है। इसका प्रारूप यहाँ प्रस्तुत किया जा रहा है:

1. उद्देश्य- बोध स्तर के शिक्षण का मुख्य उद्देश्य रटने की अपेक्षा समझने पर बल देना है। इसमें शिक्षक विषयवस्तु पर छात्रों का स्वामित्व हो सके; इस ओर विशेष ध्यान देता।

2. संरचना- बोध स्तर की शिक्षण व्यवस्था में मौरीसन द्वारा मुख्य पाँच सोपानों का उल्लेख किया गया है :

(अ) अन्वेषण- इस सोपान में शिक्षक छात्र से प्रश्न पूछकर, उसके पूर्वज्ञान का परीक्षण कर, पाठ्यवस्तु का विश्लेषण करता है तथा उस आधार पर नवीन ज्ञान प्रस्तुत करता है।

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(ब) प्रस्तुतीकरण-यह शिक्षण का सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण सोपान है। इसमें पाठ्यवस्तु को शिक्षक छोटी-छोटी इकाइयों में विभाजित कर क्रमबद्ध रूप में छात्रों के समक्ष प्रस्तुत करता है । इसके साथ-साथ शिक्षक छात्रों का समय-समय पर यह मूल्यांकन करता है कि छात्रों को कोनसी विषयवस्तु समझ में नहीं आई एवं विषयवस्तु को उस समय तक दोहरवाता है जब तक कि अधिकांश छात्रों की समझ में न आ जाये।

(स) आत्मीकरण (Assimilation)-इस सोपान में निम्नलिखित क्रियाओं को सम्मिलित किया जाता है :

(i) आत्मीकरण का लक्ष्य पाठ्यवस्तु की गहनता पर बल देना है।

(ii) इसमें विद्यार्थी प्रयोगशाला अथवा पुस्तकालय में जाकर स्वयं कार्य करते हैं, आत्मीकरण के लिए ही कक्षा कार्य एवं गृहकार्य दिये जाते हैं,

(iii) विषयवस्तु के स्पष्टीकरण हेतु सामान्यीकरण का अवसर भी छात्रों को दिया जाता है,

(iv) इसमें छात्र व शिक्षक दोनों ही क्रियाशील रहते हैं, जिसमें शिक्षक का मुख्य कार्य निर्देशन देना तथा उनकी क्रियाओं का पर्यवेक्षण (Supervision) करना होता है,

(V) कालांश के अन्त में पाठ्यवस्तु के स्वामित्व का परीक्षण किया जाता है। यदि छात्र इसमें असफल रहते हैं, तो आत्मीकरण के लिए पुनः अवसर दिया जाता है एवं पर्यवेक्षण में भी सतर्कता रखी जाती है।

 

(द) व्यवस्था (Organization)-इसमें छात्र स्वामित्व की गई वस्तु को बिना किसी सहायता के लिखता है। इसमें शिक्षक नियंत्रक-निर्देशक होता है। गणित व व्याकरण इत्यादि विषयों में इस सोपान की आवश्यकता नहीं होती।

(य) वर्णन (Recitation)-इस कालांश में छात्र सीखी गई विषय-वस्तु को मौखिक रूप में कक्षा में सभी के सामने प्रस्तुत करता है।

(3) सामाजिक व्यवस्था (Social System)-बोध स्तर के शिक्षण में सामाजिक व्यवस्था विभिन्न सोपानों में परिवर्तित होती रहती है। प्रस्तुतिकरण की अवस्था में छात्र अधिक सक्रिय होकर नियंत्रक का कार्य भी करता है और आत्मीकरण की अवस्था में शिक्षक का कार्य छात्रों को प्रेरित करना व छात्रों का कार्य विषय को आत्मसात् करना होता है।

(4) मूल्यांकन प्रणाली (Support System)-बोध स्तर के शिक्षण में मौखिक व लिखित दोनों ही परीक्षाओं को छात्रों की उपलब्धि को जानने के लिए महत्त्व दिया जाता है। लिखित परीक्षा में वस्तुनिष्ठ प्रश्न (बहुविकल्पात्मक प्रश्न, हाँ व नहीं सम्बन्धी प्रश्न), लघूत्तरात्मक प्रश्न तथा निबन्धात्मक प्रश्न, इन तीनों ही तरह के प्रश्नों को सम्मिलित किया जाता है।

बोध स्तर के शिक्षण का मुख्य मनोवैज्ञानिक आधार हरबर्ट का आत्मबोध (Apperception) का सिद्धान्त है। हरबर्ट की पंचपदी इस प्रकार निर्मित की गई है कि वह छात्रों के व्यक्तिगत तथ्यों को ग्रहण करता है तथा इन तथ्यों का प्रयोग सामान्यीकरण या सिद्धान्तों के विकास में करता है और फिर इन सामान्यीकरणों का प्रयोग अन्य तथ्यों के सीखने के लिए करता है।

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बोध स्तर के शिक्षण में आवश्यक तत्त्व (Essential Elements of Understanding Level in Teaching):

1. सम्बन्ध ज्ञान (Seeing Relationship)- किन्हीं दो अथवा अधिक वस्तुओं, प्राणियों के आपसी सम्बन्धों का ज्ञान होना अवबोध की एक क्रिया है। शिक्षण अधिगम की क्रिया में अवबोध जितना महत्त्वपूर्ण होगा, विषय उतना ही स्पष्ट होगा। मनोवैज्ञानिकों द्वारा दिया गया अधिगम (सीखने का) का उद्दीपक अनुक्रिया सिद्धान्त भी (Stimulus Response Theory) स्मृति तथा अवबोध को साथ लेकर चलते हैं, अत: छात्र के व्यवहार में परिवर्तन लाने हेतु अधिगम की क्रिया तथा सिद्धान्तों में भी परिवर्तन लाना आवश्यक होता है।

2. उपकरण का प्रयोग (Tool use for a fact)-शिक्षक को शिक्षण प्रारम्भ करने से पर्व यह भली-भांति देख लेना चाहिये, कि उद्देश्य प्राप्ति के लिए कौनसा उपकरण सर्वाधिक उपयुक्त रहेगा। जैसे, दृश्य अभिलेख (वीडियो रिकॉर्डिंग) किस प्रकार की जाती है, इसके विषय में यदि छात्रों को ज्ञान देना है, तो हमें छात्रों के समक्ष वीडियो कैसेट रिकॉर्डर उपकरण को छात्रों के समक्ष प्रस्तुत कर उसकी संरचना के बारे में जानकारी देते हुए उसके प्रयोग के बारे में व्यावहारिक ज्ञान देना होगा।

3. समन्वय (Co-ordination)-अवबोध की क्रिया में शिक्षण अधिगम (Teaching Learning) तभी सफल होगा जबकि सम्बन्ध ज्ञान तथा उपकरणों के प्रयोग का समन्वय करवाया जायेगा, जिससे छात्रों में ज्ञान के साथ-साथ कौशल का भी विकास हो सके।

 

बोध स्तर के शिक्षण की आलोचना

(1) इसमें मानव व्यवहार की उपेक्षा होती है तथा पाठ्य-सामग्री पर बल दिया जाता है।

(2) इसमें छात्रों को प्रत्यक्ष रूप से मनोवैज्ञानिक प्रेरणा नहीं दी जाती, अपितु विषयवस्तु में शिक्षक की तल्लीनता को ही छात्रों को अभिप्रेरित करने का आधार माना जाता है।

(3) इसमें ज्ञानात्मक पक्ष सबल तथा भावात्मक और क्रियात्मक पक्ष निर्बल रहते हैं।

(4) इसमें शुद्ध अधिगम (True Learning) पर ही बल दिया जाता है।

 

बोध स्तर के शिक्षण को प्रभावशाली बनाने के लिए सुझाव

मौरीसन द्वारा बोध स्तर के शिक्षण को प्रभावशाली बनाने के लिए निम्नलिखित सुझाव दिये गये हैं :

(1) शिक्षक का व्यक्तित्व प्रभावशाली होना चाहिए।

(2) शिक्षक को पाठ्य-वस्तु में तल्लीन होते हुए, समय-समय पर छात्रों को मनोवैज्ञानिक ढंग से अभिप्रेरित भी करना चाहिए।

(3) स्मृति स्तर के बाद ही बोध स्तर की शिक्षा दी जानी चाहिए।

(4) बोध स्तर के सभी सोपानों का अनुसरण क्रमबद्ध ढंग से किया जाना चाहिए।

(5) एक सोपान के सफल हो जाने पर ही दूसरे सोपान का अनुसरण करना चाहिये।

(6) शिक्षण व्यवस्था को ध्यान में रखते हुए छात्रों की समस्या का समाधान किया जाना चाहिए।

 

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