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भारत में फ्रांसीसियों की असफलता के कारण

भारत में अंग्रेजों की सफलता तथा फ्रांसीसियों की असफलता के कारण

भारत में अंग्रेज और फ्रांसीसी कम्पनियों के हित एक-दूसरे के विरोधी थे । दोनो कम्पनिया भारत के व्यापार पर अपना एकाधिकार स्थापित करना चाहती थी । इसलिए उनमें संघर्ष होना अवश्यम्भावी था। लगभग 20 वर्ष तक उनमें युद्ध चलता रहा। कर्नाटक के तृतीय युद्ध में फ्रांसीसियों की पराजय हो गई, इस पराजय से भारत में फ्रांसीसियों का प्रभाव समाप्त हो गया और अंग्रेजों का भारत में साम्राज्य स्थापित करन का मार्ग साफ हो गया, अंग्रेजों की विजय और फ्रांसीसियों की हार के अनेक कारण थे, जिनमें से प्रमुख निम्नलिखित थे-

(1) सरकारी नियन्त्रण एवं उदासीनता-

अंग्रेजी कम्पनी स्वतन्त्र संस्था थी। इसकी स्थिति मजबूत थी। इसके कार्यों में सरकारी हस्तक्षेप नहीं होता था। इसके विपरीत फ्रांसीसी कम्पनी सरकार का एक विभाग मात्र थी। अतः इसे सरकार के नियन्त्रण में काम करना पड़ता था । फ्रांसीसी सरकार इसके प्रति उदासीन थी। इससे फ्रांसीसी कम्पनी  की स्थिति कमजोर थी।

(2) अंग्रेजों का व्यापार अधिक समृद्ध था-

फ्रांसीसी कम्पनी की तुलना में अंग्रेजी कम्पनी की आर्थिक स्थिति बहुत अच्छी थी । अंग्रेजों ने युद्ध के समय में भी अपने व्यापार की उपेक्षा नहीं की। दूसरी और फ्रांसीसियों ने व्यापार की और अधिक ध्यान नहीं दिया। उन्होंने व्यापार से अधिक महत्व राजनीतिक समस्याओं को दिया । इस नीति के कारण युद्धों के समय उन्हें सदैव आर्थिक कठिनाइयों का सामना करना पड़ा।

(3) अंग्रेजों की श्रेष्ठ समुद्री शक्ति-

फ्रांसीसियों की तुलना में अंग्रेजों का जहाजी बेड़ा बहुत शक्तिशाली था। अतः जिन मार्गों द्वारा फ्रांसीसियों को रसद पहुँचा करती, वे उन मागों को ही काट दिया करते, उनकी बस्तियों पर आक्रमण कर देते और उनके विरुद्ध बिना किसी कठिनाई के सैनिक तैयारियाँ कर सकते थे । फ्रांसीसियों के पास बड़े बड़े जहाजों और समुद्री युद्ध के शस्त्रास्त्रों का अभाव था, अतः लैली को विवश होकर अपने घेरे उठा लेने पड़े।

(4) फ्रांसीसियों की धार्मिक कट्टरता-

फ्रांसीसी लोग असहिष्णु थे । उनका एक उद्देश्य भारत में इसाई धर्म का प्रचार करना भी था । वे बहुत कट्टर थे और हिन्दुओं के साथ उनका व्यवहार सहिष्णुतापूर्ण न था। इस कारण उन्हें साधारण जनता का सहयोग प्राप्त न हो सका।

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(5) यूरोप में फ्रांस की पराजय-

यूरोपीय देशों में वही भारत पर प्रभुता स्थापित  कर सकता था जिसका यूरोप में भी प्रभुत्व हो  इसीलिए यूरोप में फ्रांसीसियों की पराजय से भारत में उनकी स्थिति कमजोर हो गई थी।

(6) फ्रांसीसी अधिकारियों का अधिक योग्य न होना-

ईस्ट इण्डिया कम्पनी के भारतीय उच्चाधिकारी उच्चकोटि के राजनीतिज्ञ और कुशल शासक थे । फ्रांसीसी कम्पनी के इप्ले. बसी, लैली आदि में यद्यपि अनेक गुण थे, फिर भी वे सफल राजनीतिज्ञ नहीं कहे जा सकते । उनमें क्लाइव और लारस जैसे कुशल संगठनकत्तओिं के समान। कार्यक्षमता का अभाव था । इसके अतिरिक्त फ्रासासा अफसरा में बहुधा द्वेष भाव, प्रतिद्वन्दिता और स्वार्थ रहता था। इससे उनकी योजनाओं में सम्मिलित बल नहीं होता था।

(7) अंग्रेजों का श्रेष्ठ सैनिक संगठन-

अंग्रेजों का सैनिक संगठन भी उच्चकोटि का था, उनके सैनिक रणविद्याकुशल, अनुशासित और शस्त्र-सुसज्जित रहते थे । फ्रांसीसियों में न तो इतनी रण-कुशलता ही थी और न अनुशासन एवं संगठन ही  आर्थिक संकट के कारण उनके पास अस्त्र-शस्त्र एवं रसद का भी अभाव रहता था।

(8) बंगाल से अंग्रेजों को लाभ-

बंगाल पर अंग्रेजों का अधिकार स्थापित हो जाने स फ्रासीसियों को बड़ी हानि पहुँची । बंगाल प्रान्त कृषि तथा उद्योग-धन्धों का दृष्टि से बड़ा समृद्ध प्रान्त था जहाँ से अंग्रेजों को पर्याप्त धन प्राप्त होने लगा। इस आथिक सहायता से उनको फ्रांसीसियों के विरुद्ध युद्ध करने में बड़ी सुविधा हा गई, जबाक फ्रांसीसियों को इस प्रकार की कोई सुविधा न मिल सकी।

(9) डूप्ले का वापस बुलाया जाना-

फ्रांसीसी सरकार ने डूप्ले के विचारों का सम्मान न करके ऐसे समय में उसे वापस बुला लिया जबकि भारत में उसकी बहुत अधिक आवश्यकता थी । यदि वह कुछ समय भारत में और रहता तथा फ्रांसीसी सरकार से उसको सहायता मिली होती, तो यह सम्भव था कि वह भारतीय राजाओं को अपने पक्ष  में करके अंग्रेजों को भारत से निकाल दिता।

(10) अन्य कारण-

उपरोक्त कारणों के अतिरिक्त फ्रांसीसियों की पराजय के एक अन्य कारण थे- फ्रांसीसी सरकार की अन्तर्राष्ट्रीय नीति में भी भारत की परिस्थितियों पर अच्छा प्रभाव नहीं पड़ा । लैली ने बुसी को हैदराबाद से हटाकर बड़ी भूल की  बुसी के वहाँ से हटने का परिणाम यह हुआ कि हैदराबाद से फ्रांसीसियों का प्रभाव समाप्त हो  गया। इन सभी कारणों से फ्रांसीसी पराजित हुए और उनका भारत में पतन हो गया ।

15वीं और 16वीं शताब्दी में कौन-कौन सी विदेशी शक्तियाँ भारत आयीं और उनके क्या उद्देश्य थे?

(1) पुर्तगाली-

भारत में सबसे पहले आने वाली विदेशी शक्तियों में पुर्तगाली थे । सन् 1502 ई० में वास्को-डि-गामा ने भारत आकर कोचीन के राजा से मित्रता कर अरब सागर पर अपना प्रभत्व स्थापित किया। उन्होन कालीकट आर कनूर म अपना व्यापारिक कठिया स्थापित की, क्रमशः आल्पीडा आर अलबुकक इन बस्तियों के गवर्नर, बनकर भारत आये। पुर्तगालियों के भारत आगमन का प्रमुख उद्देश्य भारत में पुर्तगाली शक्ति को सुदृढ़  बनाकर भारत के व्यापार पर एकाधिकार स्थापित करना था। वे भारत में इसाई धर्म का प्रचार भी करना चाहते थे।

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(2) डथ-

पुर्तगालियों के पश्चात् डच भारत आये | इन्होंने सन् 1602 ई० में ‘डच ईस्ट इंडिया कम्पनी’ की स्थापना की जिसने 21 वर्षों के लिए पूर्व से व्यापार करने, युद्ध छेड़ना तथा संधि करने, भूमि प्राप्त करने तथा दुर्ग बनाने का अधिकार प्राप्त कर लिया। ये साहसी तथा महत्वाकांक्षी थे तथा इनके पास प्रचुर साधन था । यह भारत में राजनैतिक सत्ता स्थापित करने तथा भारत में व्यापार करने के लिए आये थे।

(3) अंग्रेज-

अंग्रेजों ने सन् 1600 ई० में ‘ईस्ट इण्डिया कम्पनी’ की स्थापना की। और वे भारत से व्यापार करने लगे। कैप्टन हॉकिन्स तथा सर टॉमस रो में मुगल सम्राट जहाँगीर से भारत में व्यापार की अनुमति प्राप्त कर ली थी । अगरेजों ने इचों और। फ्रांसीसियों को भारत से हटाकर यहाँ के व्यापार पर एकाधिकार स्थापित किया । उनके भारत आगमन का प्रमुख उद्देश्य भारत में अपना प्रभुत्व स्थापित करना तथा यहाँ के व्यापार पर अपना एकाधिकार स्थापित करना था । वे भारत में अंग्रेजी शिक्षा, पाश्चात्य संस्कृति तथा ईसाई धर्म का प्रचार भी करना चाहते थे।

(4) फ्रांसीसी-

सन् 1664 ई० में ‘फ्रेंच इस्ट इंडिया कम्पनी’ की स्थापना हुयी। इन्होंने सूरत, मछलीपत्तम, चन्द्रनगर में व्यापारिक कोठियों स्थापित की। सन् 1706 ई० में फ्रांसीसी बस्तियों के गवर्नर जनरल फ्रेको मार्टिन की मृत्यु के पश्चात् फ्रांसीसी कम्पनी दर्दिन का शिकार हो गयी। लिनो और ड्यूमा क शासन काल में कम्पनी ने पनः प्रतिमा अर्जित की। सन् 1721 ई० में मारीशस सन् 1725 इ० में माही और सन् 1739 ई० में कारोमडण्त तट पर कालीकस फ्रांसीसियों का हो गया। फ्रांसीसी भारत से व्यापार करने के इच्छुक थे। भारत में फ्रांसीसी साम्राज्य की स्थापना का स्वप्न डूप्ले ने देखा जो सन् 1742 ई० में पांडिचेरी का गवर्नर बना।

ऐतिहासिक घटनाएँ एवं तिथियाँ

1498 ई-  वास्को-डि-गामा का भारत आगमन

1499 ई-  वास्को-डि-गामा का पुर्तगाल वापस जाना

1502 ई-  वास्को-डि-गामा का पुनः भारत आना

1510 ई-  पुर्तगालियों का गोवा पर अधिकार

1600 ई-  ईस्ट इण्डिया कम्पनी की स्थापना

1605 ई-  डचो द्वारा पुर्तगालियों का पराजित होना

1615 ई-  सर टामस रो का मुगल दरबार में आना

1658 ई-  पुर्तगालियों से श्रीलंका का हाथ से निकल जाना

1674 ई-  मद्रास नगर की स्थापना (फोर्ट सेंट जार्ज)

1674 ई-  पाण्डिचेरी की नींव

1739 ई-  मराठों द्वारा बेसिन तथा सालसिट पर अधिकार

 

इन्हें भी देखे-

 

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