सिकन्दर बादशाह तथा सिकन्दर के आक्रमण

सिकन्दर बादशाह तथा सिकन्दर के आक्रमण

इस पोस्ट में हम सिकन्दर के आक्रमण का भारत पर क्या प्रभाव पड़ा, सिकन्दर को किसने हराया था, सिकंदर के आक्रमण के समय मगध का शासक कौन था, सिकंदर की मृत्यु कब हुई थी, सिकंदर को महान क्यों कहा जाता था?,सिकन्दर के आक्रमण के उद्देश्य तथा भारत पर उसके प्रभावों का वर्णन, सिकंदर बादशाह की कहानी आदि विषयों पर चर्चा करेगें।

सिकन्दर का परिचय यनान में मकदूनिया नामक एक छोटा-सा राज्य था। इसका शासक फिलिप था। सिकन्दर इसी देश के शासक का महत्वाकांक्षी पुत्र था। सिकन्दर का जन्म 356 ई०पू० में हुआ था। वह वीर, साहसी और महत्वाकांक्षी था। उसके हृदय में विश्व-विजय की आकांक्षा हिलोरें मार रही थीं। अतः उसने अपने पिता की हत्या कर दी और स्वयं सिंहासन पर बैठ गया। राज्य पाते ही सिकन्दर ने एक विशाल सेना संगठित की और विश्व-विजय का मधुर स्वप्न लेकर चल पड़ा। उसने पारसीक (ईरान) साम्राज्य पर आक्रमण किया। यूनानी विजयी हुए। इससे सिकन्दर का उत्साह दूना हो गया। वह नगरों को उजाइता तथा ग्रामों को फूंकता हुआ आगे बढ़ा। मई 327 ई० पू० में सिकन्दर ने हिन्दकश पर्वत पार किया। वह भारत के उत्तरी-पश्चिमी द्वार पर आक्रमण के लिए आ पहुँचा।

सिकन्दर का भारत पर आक्रमण

 सिकन्दर के आक्रमण के समय उत्तर-पश्चिम भारत की राजनैतिक दशा शोचनीय थी। अनेक छोटे-छोटे राज्य थे किन्तु उनमें एकता का अभाव था। वे परस्पर टकरा कर अपनी शक्ति नष्ट कर रहे थे। अतः सिकन्दर का भारत पर विजय का मार्ग खुला था।

अश्यक, नीसा अस्पतिओई-

सिकन्दर ने सर्वप्रथम अश्वक नामक जाति को परास्त किया जिसका दुर्ग अजेय समझा जाता था। सिकन्दर ने दूसरा आक्रमण नीसा गणराज्य पर किया परन्तु नीसा ने तत्काल आत्म-समर्पण कर दिया। इसके बाद उसने मस्सग एवं पुष्पकलावती पर अधिकार कर लिया। फिर उसने अस्पसिओई नामक जाति को परास्त किया।

 

सिकन्दर के आक्रमण के उद्देश्य

भारत में प्रवेश तथा तक्षशिला में सिकन्दर का स्वागत-

इस प्रकार से सीमा के भूभाग जीतकर और यहाँ की रक्षा के लिए यूनानी सेना छोड़कर उसने ई० पू० 326 में ओहिन्द के पास सिन्धु नदी पार की। वहाँ पर तक्षशिला का राज्य था। यहाँ का राजा आम्भी कायर था। अतः उसने विदेशी आक्रमणकारी के सामने आत्मसपर्पण कर दिया। उसने तक्षशिला में सिकन्दर का भव्य स्वागत किया और उसे बहुमूल्य उपहार और उसकी सहायता के लिए बहुत से सैनिक दिये।

पोरस से युद्ध-

आम्भी का आतिथ्य ग्रहण कर तथा उससे सेना और रसद लेकर सिकन्दर पूर्व की ओर बढ़ा और वितस्ता (झेलम) के किनारे जा पहुँचा । यहाँ पर पुरु का राज्य झेलम व चिनाब नदियों के बीच में स्थित था। अतः सिकन्दर अब पोरस के राज्य की सीमा पर पहुँच गया। सिकन्दर ने पुरु के पास उसकी अधीनता स्वीकार करने का संदेश भिजवाया। पुरु स्वाभिमानी और वीर था। उसने कहला भेजा, “पुरु सिकन्दर से मिलेगा अवश्य, किन्तु रणभूमि में ।” यह संदेश सुनकर सिकन्दर दहल गया। दिन में झेलम पार करने का साहस सिकन्दर को न हुआ!

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एक दिन अँधेरी रात के समय जब मूसलाधार वर्षा हो रही थी तब सिकन्दर ने अपनी सेना के साथ झेलम पार कर लिया। शत्रुओं का मुकाबला करने के लिए पुरु ने अपने पुत्र को भेजा परन्तु वह पराजित हुआ और मारा गया। इसके बाद पोरस स्वयं एक विशाल सेना लेकर युद्ध-भूमि में आया परन्तु पिछली रात की अमंगलकारी वर्षा के कारण युद्ध में पोरस की पराजय हुई और उसे बन्दी बनाकर सिकन्दर के समक्ष पेश किया गया।

सिकन्दर ने बन्दी पोरस से पूछा “तुम्हारे साथ कैसा व्यवहार किया जाना चाहिये?” वीर पोरस ने उत्तर दिया कि ‘मेरे साथ वही बर्ताव करो जो एक राजा दूसरे राजा के साथ करता है।” सिकन्दर इस स्वदेशाभिमानी नरेश के व्यक्तित्व से इतना प्रभावित हुआ कि उसने उसका राज्य लौटा दिया।

छोटा पोरस, आब्रिज और कठ-

पोरस को परास्त करने के बाद सिकन्दर ने उसके भतीजे छोटा पोरस को अपने अधीन किया, फिर आद्रिजों की राजधानी पिंप्रय पर अपना प्रभुत्व स्थापित किया और उसके बाद रावी नदी तथा व्यास के प्रदेश में रहने वाली कठ जाति को परास्त किया।

सिकन्दर की सेना का व्यास नदी के आगे बढ़ने से इन्कार-कठों पर विजय प्राप्त करने के पश्चात् सिकन्दर व्यास नदी के तट पर पहुँचा। वहाँ पर उसकी सेना ने आगे बढ़ने से इन्कार कर दिया। इसके कारण ये थे :-

(1) व्यास के पर्व में नन्दों का विशालसाम्राज्य था जिसकी शक्ति तथा समृद्धि के बारे में सिकन्दर के सैनिकों ने बहुत सुना था।

(2) अनवरत संग्राम के कारण सैनिक थके-माँदे थे।

(3) स्वदेश छोड़े हुए उन्हें काफी समय बीत गया था। अतः उन्हें अपने सगे-सम्बन्धियों की याद सता रही थी। अतः व्यास नदी के तट से सिकन्दर को स्वदेश लौटने का निश्चय करना पड़ा।

सिकन्दर की वापसी-

326 ई० पू० के जुलाई मास में सिकन्दर झेलम पहुँचा और वहाँ से जल-मार्ग द्वारा वह आगे बढ़ा। मार्ग में उसकी शिवि एवं अगलसी जाति से मुठभेड़ हुई और उन्हें परास्त किया।

 मालव और क्षुद्रक-

जब सिकन्दर झेलम के उस स्थान पर पहुंचा जहाँ रावी आकर मिलती है तो उसे सबसे प्रचण्ड सामना मालव और क्षुद्रक गणराज्यों से करना पड़ा। युद्ध में काफी रक्तपात हुआ, सिकन्दर स्वयं भी घायल हआ परन्तु अन्त में उसी की विजय हुई।

इसके बाद सिकन्दर को सिन्धु नदी की निचली घाटी के निवासियों के साथ लड़ाई करनी पड़ी। सिन्धु प्रदेश को जीतने के बाद सिकन्दर ने पटल या पत्तल को परास्त किया।

यात्रा का अन्त-

325 ई० पू० में सितम्बर के महीने में सिकन्दर ने भारत की भूमि से विदा ले ली और अपने घर को प्रस्थान कर दिया। अन्त में 323 ई० पू० में जब वह बेबीलोन पहुंचा तो एकाएक उसका देहान्त हो गया।

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सिकन्दर के आक्रमण का भारत पर प्रभाव

राजनैतिक प्रभाव-

(1) इसका महत्वपूर्ण परिणाम यह हुआ कि भारत के उत्तर-पश्चिम भाग में सिकन्दर द्वारा उपनिवेश तथा नगरों की स्थापना हुई।

(2) इस आक्रमण ने भारतीयों को यह पाठ पढ़ाया कि उनका सैन्य-संगठन और कौशल दोषपूर्ण है और यह भी सुझाव दिया कि उचित रूप से शिक्षित सेना अल्पसंख्यक होते हुए भी विजयी हो सकती है।

(3) पश्चिमोत्तर प्रदेश के अनेक राज्यों की स्वाधीनता छीनकर सिकन्दर ने चन्द्रगुप्त के लिए उत्तर-पश्चिम भारत को राजनैतिक एकता के सूत्र में बाँधने का मार्ग दिखाया, जिसका अभी तक अभाव था।

(4) सिकन्दर के आक्रमण ने भारतीयों को राजनैतिक एकता का पाठ पढ़ाया।

(5) सिकन्दर की आक्रमण-तिथि ने भारत में भी तिथि-क्रम का सूत्रपात कर दिया। और तब से हमारा इतिहास तिथि-क्रमानुसार लिखा जाने लगा।

(2) व्यापार तथा वाणिज्य-सिकन्दर के आक्रमण के फलस्वरूप स्थल और जल के व्यापारिक मार्ग खुल गये जिससे भारत और पश्चिम के देशों में पहले की अपेक्षा अत्यन्त घनिष्ठ व्यापारिक सम्बन्ध स्थापित हो गया।

सांस्कृतिक प्रभाव

(1) मुद्रा-निर्माण विधि पर प्रभाव-मुद्रा-निर्माण विधि पर यूनानियों का गहरा प्रभाव पड़ा। भारतीयों ने यूनानी मुद्रा की तौल, आकार आदि का अनुकरण किया। परिणाम यह हुआ कि भारत में सर्वत्र यूनानी ढंग की अच्छी आकृति वाले सिक्के ढलने लगे।

(2) मूर्ति कला की गांधार शैली का प्रादुर्भाव-भारतीय मूर्ति-निर्माण कला पर भी यूनानियों का प्रभाव पड़ा जिसके फलस्वरूप कालान्तर में कला के क्षेत्र में एक नवीन शैली का अभ्युदय हुआ जो गान्धार शैली के नाम से विख्यात है।

(3) भारतीय ज्योतिष तथा दर्शन पर प्रभाव-ज्योतिष के क्षेत्र में भारतीयों ने यूनानियों से बहुत कुछ सीखा तथा भारतीय दर्शन की छाप यूनानी दार्शनिक पैथागोरस के विचारों पर पड़ी।

(4) साहित्य एवं धार्मिक प्रभाव टार्न, एरियन तथा वेबर जैसे विद्वानों का यह विचार है कि साहित्य के क्षेत्र में भी यूनानियों ने भारतीयों को प्रभावित किया। कुछ विद्वानों का मत है कि भारतीय धर्म पर भी यूनानियों का प्रभाव पड़ा परन्तु ये मत ठोस प्रमाणों पर आधारित नहीं हैं।

 

 

 

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