प्रदर्शन नीति(DEMONSTRATION STRATEGY)
शिक्षण के क्षेत्र में प्रदर्शन नीति का काफी महत्व है। इस विधि में छात्र एवं शिक्षक दोनों ही सक्रिय रहते हैं। कक्षा में शिक्षक सैद्धान्तिक भाग का विवेचन करने के साथ इस विधि द्वारा उसका सत्यापन करता है। शिक्षक पढ़ाते समय प्रयोग करता जाता है और छात्र प्रयोग-प्रदर्शन का निरीक्षण करते हुए ज्ञान प्राप्त करते हैं। छात्र आवश्यकतानुसार अपनी शंकाएँ भी शिक्षक के सामने रखते हैं। आज के समय में जब बच्चों को पढाते समय बीच-बीच में प्रदर्शन नीति का प्रयो करते रहना चाहिए जिससे बच्चों में पढने का माहौल बना रहते है और बच्चें बोर भी नहीं होते है। प्रर्दशन नीति विधि का शिक्षण में विशेष ही महत्व है। वर्तमान समय में Demonstration Strategy शिक्षण में बहुत ही कारगर साबित हो रही है।
प्रदर्शन विधि की विशेषताएँ
वैसे तो प्रदर्शन विधि की बहुत विशेताएँ होती है परन्तु यहाँ पर हम कुछ ही विशेषताओं का वर्णन कर रहे है। प्रदर्शन शिक्षण विधि की प्रमुख विशेषताओं का वर्णन नीचे किया जा रहा है-
(1) यह विधि छोटी कक्षाओं के लिए अधिक उपयुक्त है।
(2) प्रयोग प्रदर्शन शिक्षक द्वारा किए जाने से उपकरणों की टूट-फूट कम होती है।
(3) समय कम लगता है।
(4) छात्र स्वयं देखकर सीखते हैं।
(5) बालकों की दृष्टि एवं श्रवण इन्द्रियाँ अधिक सक्रिय रहती हैं।
(6) छात्रों की निरीक्षण, तर्क एवं विचार-शक्ति का विकास होता है।
(7) छात्र इस विधि से सिद्धान्त को स्पष्ट रूप से सुलझ सकते हैं, साथ ही प्राप्त ज्ञान अधिक स्थायी होता है।
(8) उपकरणों की संख्या में कमी होने पर भी शिक्षण प्रभावशाली होता है।
प्रदर्शन विधि के दोष (Demerits)
प्रदर्शन विधि की कई विशेषताओं के आगे इसकी बहुत कम ही है फिर भी जो कुछ भी प्रर्दशन विधि की कमियाँ या दोष है उनका वर्णन नीचे किया जा रहा है-
(1) इस विधि में बालकों को स्वयं प्रयोग के अवसर नहीं मिलते।
(2) कुछ छात्र ठीक प्रकार से प्रयोगों का निरीक्षण नहीं करते।
(3) कभी-कभी शिक्षक द्वारा प्रयोग सफल नहीं होता तो छात्रों के मन में विषय के प्रति अनेक भ्रान्तियाँ उत्पन्न हो जाती हैं।
(4) इस विधि द्वारा विषय-वस्तु के सामान्य ज्ञान का ही प्रदर्शन हो सकता है।
प्रदर्शन विधि में सुधार के लिए सुझाव
ऊपर हम लोग प्रर्दशन विधि की विशेषताओं तथा प्रर्दशन विधि के दोषों की चर्चा कर चुके है अतः अब प्रर्दशन विधि की कमियों को ध्यान में रखते हुए हम लोग प्रर्दशन विधि में क्या और सुधार किया सकता को समझने का प्रयास करते है। प्रर्दशन विधि में क्या-क्या सुधार किया जा सकता, उसका वर्णन नीचे किया जा रहा है-
(1) छात्रों के समक्ष कोई भी प्रदर्शन करने से पूर्व उसका पूर्व अभ्यास शिक्षक को करना चाहिये।
(2) प्रदर्शन के लिए आवश्यक सभी सामग्री प्रदर्शन-मेज पर होनी चाहिये।
(3) प्रदर्शन का उद्देश्य छात्रों के सामने एकदम स्पष्ट कर देना चाहिये।
(4) प्रदर्शन से पूर्व छात्रों को प्रयोग का ज्ञान, सामग्री तथा उपकरणों का पूर्ण ज्ञान होना चाहिये ताकि प्रदर्शन के समय छात्रों को समझने में कठिनाई न हो।
(5) प्रत्येक प्रयोग छात्रों के सामने किया जाये। प्रयोग का स्थान ऐसा हो जहाँ से प्रत्यक छात्र प्रयोग-क्रिया भली-भाँति देख सके।
(6) प्रयोग प्रदर्शन में छात्रों का सहयोग लेना चाहिये। उनकी शंकाओं का समाधान होता रहना चाहिये।
(7) प्रदर्शन के साथ श्यामपट तथा अन्य शिक्षण सहायक सामग्रियों का आवश्यकतानुसार उपयोग शिक्षक को करना चाहिये।
(8) बालकों द्वारा प्रदर्शन के निरीक्षण के आलेख की सत्यता पर बल दिया जाना चाहिये।
(9) प्रयोग पूर्ण होने के बाद उपकरणों को सावधानी से साफ करके उचित स्थान पर रख देना चाहिये।
(10) प्रदर्शन के समय शिक्षक को सरल भाषा का प्रयोग करना चाहिये।
(11) प्रदर्शन के पश्चात् शिक्षक को छात्रों के साथ-साथ निरीक्षण एवं परिणाम सम्बन्धी वार्तालाप करना चाहिये।
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