पर्यवेक्षण अध्ययन विधि
(Method of Supervised Study)
पर्यवेक्षण अध्ययन शिक्षण की एक ऐसी पद्धति है जिसमें परम्परागत शिक्षण के दोषों को दूर करने का प्रयास किया जाता है। इसमें शिक्षक अध्यापन करने के स्थान पर पथ-प्रदर्शक की भूमिका निभाता है। कुछ विद्वान इसे निर्देशित अध्ययन विधि (Directed Study Method) भी कहते हैं।
क्लॉसमीयर ने पर्यवेक्षण अध्ययन की परिभाषा देते हए कहा, “पर्यवेक्षण अध्ययन कालांश में छात्र, अध्यापक द्वारा दिये गये कार्य, छात्रों द्वारा की गई क्रियाओं तथा विभिन्न प्रकार की व्यक्तिगत योजनाओं पर कार्य करते हैं, तो अध्यापक प्रत्येक छात्र की सहायता करता है। शैक्षिक कालांश का आधा और कभी-कभी आधे से भी अधिक कालांश पर्यवेक्षण अध्ययन हेतु और शेष वाद-विवाद, व्याख्या आदि के लिए प्रयोग किया जाता है।”
मौरीसन द्वारा दिये गये बोध स्तर के शिक्षण की योजना में भी विद्यार्थी स्वयं अध्ययन करते हैं तथा शिक्षक उनका मार्गदर्शन करता है। सन् 1971 में डेजी मारविल जॉन ने इस पद्धति का सुझाव प्रस्तुत किया। जॉन ने पर्यवेक्षण अध्ययन में विद्यार्थियों की आवश्यकताओं, विभिन्न प्रकार की शिक्षण सामग्री के प्रयोग तथा पाठ्य-पुस्तक के प्रयोग आदि का सुझाव दिया है। इसमें प्रत्येक छात्र को अपनी योग्यतानुसार आगे बढ़ने का पूरा अवसर प्रदान किया जाता है क्योंकि इस अध्ययन में छात्रों को समस्या समाधान हेतु शिक्षक द्वारा प्रेरित किया जाता है एवं निर्देश कम से कम दिये जाते हैं।
पर्यवेक्षण अध्ययन के सोपान
(Steps of Supervised Study)
इस पद्धति के प्रयोग हेतु मुख्यतः चार सोपानों का अनुसरण किया जाता है।
1. अध्ययन कार्य का निर्धारण-इसमें शिक्षक छात्रों के समक्ष प्रकरण की प्रस्तावना का प्रस्तुतीकरण कर प्रकरण के अनेक पक्षों को श्यामपट्ट पर लिखता है तथा उससे सम्बन्धित विभिन्न साहित्यों की जानकारी देता है। अन्त में छात्रों को उस प्रकरण के पक्षों का सामहिक रूप से, वर्गों में विभक्त कर अथवा व्यक्तिगत रूप से अध्ययन करने का कार्य सौंपता है।
2. अध्ययन के लिए निर्देश-कार्य वितरण के बाद छात्रों को अध्यापक के द्वारा सम्बन्धित साहित्य का अध्ययन कैसे किया जाये, यह साहित्य कहाँ-कहाँ उपलब्ध होगा तथा छात्रों को प्रकरण से सम्बन्धित पक्षों के बारे में क्या लिखना है इसके लिए शिक्षक द्वारा श्यामपट्ट पर निर्देश दिये जाते हैं।
3. शिक्षक द्वारा पर्यवेक्षण-इस सोपान में अध्ययनरत छात्रों के क्रियाकलापों का अवलोकन अध्यापक द्वारा किया जाता है एवं उनकी शंकाओं तथा उनके द्वारा लिखी गई टिप्पणियों पर मार्गदर्शन करता है।
4. श्यामपट्ट सार एवं आवृत्ति कार्य-छात्रों द्वारा अध्ययन तथा कक्षा में चर्चा समाप्त करने के बाद शिक्षक आवृत्ति प्रश्नों को पूछकर श्यामपट्ट पर मुख्य-बिन्दु संक्षेप में लिखता है।
पर्यवेक्षण अध्ययन का प्रतिमान
(Model of Supervised Study)
पर्यवेक्षण अध्ययन हेतु मौरीसन ने जिन सोपानों का अनुसरण किया है, उन्हें पर्यवेक्षण अध्ययन का प्रतिमान’ भी कहते हैं जिसका विस्तृत वर्णन (शिक्षण के स्तर) में ‘मौरीसन का शिक्षण प्रतिमान : ‘बोध स्तर का शिक्षण’ के तहत दिया गया है।
पर्यवेक्षण अध्ययन हेतु पाठ-योजना
(Lesson Plan for Supervised Study)
पर्यवेक्षण अध्ययन हेतु बिनिंग एवं बिनिंग ने पाँच प्रकार की पाठ योजनाएँ बताई :
1. विशिष्ट अध्यापक योजना,
2. सम्मेलन योजना,
3. सामयिक योजना,
4. विभाजित कालांश योजना,
5. द्विकालांश योजना।
विशिष्ट अध्यापक योजना निदानात्मक शिक्षण हेतु बनाई जाती है जिसमें विशिष्ट अध्यापकों की व्यवस्था अपेक्षित होती है। सम्मेलन योजना का प्रयोग पिछड़े छात्रों को शिक्षण देने के लिए किया जाता है। सामयिक योजना लम्बे समय के लिए तथा लम्बे अन्तराल हेतु बनाई जाती है, जैसे, साप्ताहिक, पाक्षिक व मासिक आदि। विभाजित कालांश योजना में दो अध्यापकों का सहयोग अपेक्षित होता है-प्रथम कालांश सामान्य शिक्षण हेतु तथा द्वितीय कालांश छात्रों के अध्ययन के निरीक्षण हेतु होता है। द्विकालांश योजना में दो कालांशों को मिलाकर एक कालांश बना दिया जाता है जिसमें चार सोपानों-पुनरावृत्ति, कार्य-निर्धारण, शारीरिक व्यायाम तथा निर्धारित कार्य का अध्ययन किया जाता है।
पर्यवेक्षण अध्ययन पर आधारित आदर्श पाठ-योजना
विषय : नागरिकशास्त्र
प्रकरण : राष्ट्रपति के अधिकार
कक्षा: VIII 1.
1. अध्ययन कार्य का निर्धारण :
शिक्षक– श्यामपट्ट पर प्रकरण लिखने के बाद शिक्षक छात्रों को सम्बन्धित साहित्य जैसे, भारत का संविधान, विभिन्न पत्र-पत्रिकाएँ, नागरिकशास्त्र की पुस्तकें, विदेशों में राष्ट्रपति के अधिकारों से सम्बन्धित साहित्य आदि का ज्ञान देगा। इस विषय के विभिन्न पक्ष, जैसे, राष्ट्रपति का स्थान, योग्यताएँ, चयन आदि को संक्षेप में श्यामपट्ट पर लिखकर राष्ट्रपति के अधिकारों को। जानने का कौतूहल छात्रों में उत्पन्न करेगा।
2. अध्ययन के लिए निर्देश :
शिक्षक– छात्रों को विद्यालय पुस्तकालय, सार्वजनिक पुस्तकालय, सूचना केन्द्र, संसद, राज्यों की विधानसभा तथा सरकारी विभागों से सूचना एकत्रित करने का निर्देश देगा।
3. शिक्षक द्वारा पर्यवेक्षण :
शिक्षक-छात्रों द्वारा साहित्य को एकत्रित करते समय शिक्षक उनकी शंकाओं का समय-समय पर निवारण करेगा।
4. श्यामपट्ट सार एवं आवृत्ति कार्य :
पर्यवेक्षण अध्ययन के अन्तिम सोपान में शिक्षक राष्ट्रपति के अधिकारों को श्यामपट्ट पर छात्रों की सहभागिता से लिखेगा, जैसे, विधायी अधिकार, कार्यपालिक अमित न्यायपालिक अधिकार, अध्यादेश जारी करने का अधिकार आदि।
पर्यवेक्षण अध्ययन की विशेषताएँ
(Characteristics of Supervised Study)
1. इसके द्वारा छात्रों में स्वाध्याय की आदत का विकास किया जा सकता है।
2. इसे सभी विषयों के शिक्षण में प्रयुक्त किया जा सकता है।
3. इसमें छात्रों की व्यक्तिगत विभिन्नताओं को ध्यान में रखा जाता है जिससे कम मन्द तथा सामान्य तीनों ही स्तर के छात्र स्वयं को उपेक्षित अनुभव नहीं करते।
4. इसके द्वारा छात्रों में तर्क निरीक्षण तथा अवबोध करने की क्षमता का विकास होता है।
5. इसमें छात्र सक्रिय तथा अनुशासन में रहते हैं।
6. इस पद्धति के द्वारा छात्रों को विषय भली-भाँति स्पष्ट हो जाता है. अतः प्रश्नों के उत्तर लिखने में सुविधा रहती है।
7. विषय से सम्बन्धित अधिकाधिक साहित्य की जानकारी सुविधा से हो जाती है तथा वे पुस्तकालय और प्रयोगशाला आदि में पढ़ने और कार्य करने हेतु प्रेरित होते हैं।
8. छात्र स्वयं समस्याओं का अध्ययन करते हुए समाधान तक पहुँचते हैं. फलस्वरूप उनमें मानसिक सन्तोष रहता है।
9. इस पद्धति का मुख्य उद्देश्य विषय-वस्तु पर स्वामित्व कराना होता है, अतः शिक्षक छात्र का इस दृष्टि से परीक्षण करता है। यदि छात्र इस परीक्षा को पास नहीं कर पाते तो शिक्षक उसे अध्ययन का अवसर देकर पुनः परीक्षा लेता है। यह प्रक्रिया उद्देश्य प्राप्ति तक चलती है।
10. इसके द्वारा किसी विषय को कैसे पढ़ा जाये, इस बात की जानकारी छात्रों को मिलती है।
पर्यवेक्षण अध्ययन की सीमाएँ
(Limitations of Supervised Study)
1. जिन विद्यालयों में सम्बन्धित साहित्य की प्रतियाँ निकालने का प्रावधान नहीं होता वहाँ छात्रों का समय सम्बन्धित साहित्य की खोज में ही नष्ट हो जाता है।
2. इस विधि में अधिक समय लगता है. अतः पाठयक्रम निर्धारित अवधि में पूर्ण नहीं हो सकता।
3. कक्षा में कुशाग्र बुद्धि छात्र विषय को शीघ्रता से समझ लेते हैं, अतः उन्हें अपना साथियों की प्रतीक्षा चर्चा करने के लिए करनी पड़ती है।
4. इसके लिए दक्ष, परिश्रमी एवं प्रशिक्षित अध्यापकों की आवश्यकता होता है जिसका हमारे विद्यालयों में प्रायः अभाव पाया जाता है क्योंकि अध्यापक कार्यभार से दबे हुए रहते हैं।
5. विद्यालयों की आर्थिक स्थिति ठीक न होने के कारण पर्याप्त साहित्य, पत्र-पत्रिकाएँ व अन्य सामग्री उपलब्ध नहीं हो पाती।
6. इसमें छात्रों के स्वाभाविक व्यवहार के विकास की उपेक्षा की जाती है तथा विषय-वस्तु के स्वामित्व को महत्त्व दिया जाता है।
7. इस विधि में अधिकांश छात्र समस्या समाधान हेतु अध्यापकों पर निर्भर रहते हैं।
8. यह उच्च स्तर पर ही अधिक उपयोगी है।
9. इसमें छात्रों के ज्ञानात्मक पक्ष के विकास पर बल दिया जाता है तथा भावात्मक व क्रियात्मक पक्ष उपेक्षित रहते हैं।
10. इसमें छात्रों को दी जाने वाली मनोवैज्ञानिक तथा सामाजिक अभिप्रेरणा का अभाव रहता है।
11. इसके द्वारा कुछ विषय जैसे गणित आदि पढ़ाया जाना अधिक प्रभावी नहीं होता।
पर्यवेक्षण अध्ययन को प्रभावशाली बनाने हेतु सुझाव
1. कक्षा में वितरित किया जाने वाला सम्बन्धित साहित्य स्पष्ट, सरल, छात्रों के स्तरानुकूल तथा वर्तनी और विषय-वस्तु की दृष्टि से शुद्ध होना चाहिए।
2. छात्रों को आकाँक्षा स्तर को ऊँचा उठाने के लिए मनोवैज्ञानिक ढंग से अभिप्रेरित करना चाहिए।
3. इसमें बोध स्तर के सभी सोपानों का अनुसरण उचित ढंग से किया जाना चाहिए।
4. इसके लिए प्रकरणों का चयन करते समय उनसे सम्बन्धित साहित्य की उपलब्धता का भी ध्यान रखना चाहिए।
5. समस्या निर्धारण छात्रों की मानसिक योग्यतानुसार किया जाना चाहिए व उन्हें गृहकार्य भी अलग-अलग रूप में दिया जाना चाहिए। ।
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