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साम्राज्य निर्माता के रूप में लॉर्ड क्लाइव

क्लाइव को भारत में ब्रिटिश राज्य का संस्थापक क्यों माना जाता है?

क्लाइव का इतिहास में महत्वपूर्ण स्थान है। भारत में ईस्ट इंडिया कम्पनी जो  एक व्यापारिक संस्था मात्र थी उसे क्लाइव ने राजनैतिक संस्था में परिवर्तित करके ब्रिटिश साम्राज्य की स्थापना का सूत्रपात किया। उसके महान कार्यों के कारण उसे भारत में ब्रिटिश साम्राज्य का संस्थापक कहा जाता है। अल्फ्रेड लॉयल के शब्दों में-“अंगरेज लोग भारत में ब्रिटिश राज्य की स्थापना के लिए इस (क्लाइव) साहसी और अजेय व्यक्ति के ऋणी है।” बक के अनुसार-उसने भारत में ब्रिटिश राज्य की गहरी नींव डाली। उसने स्वयं कठिनाइयों झेलकर आने वाले शासकों के लिए स्पष्ट मार्ग का निर्माण किया, जिस पर चलकार प्रतिभा वाले उत्तराधिकारी भी अपनी मंजिल पर पहुँच सके।” क्लाइव दृढ़ निश्चयी तथा संकल्प वाला व्यक्ति था। उसे ब्रिटिश साम्राज्य का संस्थापक उसके निम्नलिखित कार्यों के आधार पर कहते हैं-

(1) अकोट का घेरा-

कर्नाटक के तृतीय युद्ध में फ्रांसीसियों की विजय से अंगरेजों की स्थिति बिगड़ जाने पर रॉबर्ट क्लाइव ने बुद्धिमत्ता से अकार्ट का घेरा डालकर फ्रांसीसियों की योजना पर पानी फेर दिया तथा अंगरजी साम्राज्य की नींव डाली।

(2) प्लासी का युद्ध-

सन् 1757 ई० के प्लासी के युद्ध में क्लाइव ने सिराजुद्दौला को हराकर भावी अंग्रेजी साम्राज्य की नीव डाली। उसने मीरजाफर को नाममात्र का नवाब बनाकर सम्पूर्ण शक्ति अपने हाथों में ले ली।

(3) शाहआलम से संधि-

सन् 1765 ई० में क्लाइव ने मुगल सम्राट शाहआलम से संधि की, जिसके अनुसार बंगाल, बिहार, उड़ीसा की मालगुजारी वसूल करने का अधिकार अंगरेजों को मिल गया। इस संधि से अगरजा की स्थिति और भी दृढ़ हो गयी। प्रो० दत्त के शब्दों में-“1765 ई० की संधि ने कम्पनी को बंगाल का वस्तुतः स्वामी। बना दिया था।” क्लाइव ने अपने महत्वपूर्ण कार्यों से एक ऐसे शक्तिशाली और स्थायी ब्रिटिश साम्राज्य की नींव रखी जिसका उपयोग आन वाली पीढ़ियों ने स्वच्छंदता से किया।

डॉ० विसेंट स्मिथ ने लिखा है-“क्लाइव ने जिस योग्यता और दृढ़ता का परिचय भारत में ब्रिटिश राज्य की नींव डालने में दिया उसके लिए वह ब्रिटिश जनता के मध्य सदैव के लिए स्मरण किया जायेगा।”

क्लाइव को भारत में ब्रिटिश साम्राज्य का संस्थापक कहे जाने के चार कारण

(1) उसकी अर्काट के घेरे की योजना ने फ्रांसीसियों की हार निश्चित कर दी,

(2) प्लासी युद्ध में सफलता प्राप्त करके भारत में अंगरेजी साम्राज्य की नींव डाली,

(3) फ्रांसीसियों की बस्ती चन्द्रनगर पर अधिकार करके बंगाल से फ्रांसीसी प्रभाव को समाप्त किया,

(4) चिन्सुरा के डचों को परास्त किया।

क्लाइव ईस्ट इण्डिया कम्पनी में एक क्लर्क था, पर वह अत्यन्त योग्य  कुछ समय बाद वह कम्पनी की सेना में भर्ती हो गया। सैनिक के रूप में उसने बड़ी ख्याति अर्जित की। कर्नाटक के युद्ध में अर्काट का घेरा डाल कर उसने अपनी विलक्षण बुद्धि एवं दूरदर्शिता का परिचय दिया। इसके बाद उसने प्लासी के युद्ध में बंगाल के नवाब को हराया और कम्पनी को इस प्रान्त का स्वामी बना दिया। सन् 1757 से 1760 ई० तक वह बगाल का गवनर रहा। इस काल में उसने कम्पना का स्थात का सुदृढ़ बनाया।

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फरवरी सन् 1760 ई० में क्लाइव इंग्लैंड लौट गया तथा उसके स्थान पर बेसिटार्ट कलकत्ता का गवर्नर बनाकर भेजा गया। इस समय बंगाल में शासन का नाम तक नहीं  रह गया था। कम्पनी के कर्मचारी अपने स्वार्थ में अन्धे हो रहे थे और सब प्रकार से धन कमाने में लगे थे। बंगाल की ऐसी शोचनीय परिस्थिति कम्पनी के डायरेक्टरों के लिए चिन्ता का कारण बन गई। अतः उन्होंने बंगाल में शान्ति तथा सुव्यवस्था स्थापित करने के उद्देश्य से लार्ड क्लाइव को दूसरी बार सन् 1765 ई० में बंगाल का गवर्नर बनाकर  भेजा। क्लाइव ने इन दोषों को दूर करने के लिए निम्नलिखित कार्य किये :-

कम्पनी की नौकरियों में सुधार-

(1) क्लाइव ने कम्पनी के कर्मचारियों से एक प्रतिज्ञापत्र लिखवाया कि वे उपहार, भेंट या नजराना नहीं लेंगे। अब नजराने की रकम  बजाय कर्मचारियों के कम्पनी के कोष से जाने लगी।

(2) कम्पनी के कर्मचारियों के निजी व्यापार पर भी क्लाइव ने रोक लगाई। इनका वेतन बहुत कम था, इसलिए उनकी अतिरिक्त आय के लिए क्लाइव ने एक ‘व्यापारिक संघ’ की स्थापना करवाई।

(3) क्लाइव ने कम्पनी के कर्मचारियों के वेतन में वृद्धि कर दी जिससे वे धनोपार्जन के लिए कोई अन्य अनुचित कार्य न करें।

सेना सम्बन्धी सुधार-

(1) उसने सेना को तीन भागों में विभक्त किया, जिसका एक भाग मुंगेर में, दूसरा बाँकीपुर में और तीसरा मरहठों के आक्रमणों से सुरक्षा के लिए इलाहाबाद में रखा।

(2) यद्ध काल में सैनिकों को दोहरा भत्ता मिलता था। मीरजाफर और मीरकासिम शान्ति के समय भी दोहरा भत्ता लेते थे पर क्लाइव ने इस प्रथा को समाप्त कर दिया।

क्लाइव की बैदेशिक नीति-

जब क्लाइवं दूसरी बार गवर्नर बनकर आया, उस समय दिल्ली का बादशाह शाहआलम, बंगाल का नवाब तथा अवध का नवाब बक्सर के यद्ध में अंगरेजो द्वारा पराजित हा चुके थे। अगर क्लाइव चाहता तो दिल्ली पर कम्पनी का प्रभुत्व स्थापित कर उसको समस्त भारत का मालिक बना सकता था परन्तु उसने ऐसा नहीं किया क्योंकि उसने यह देखा कि-

(1) ऐसा करने से यूरोपीय जातियों में अंगरेजों के प्रति ईष्या बढ़ जायगी,

(2) कम्पनी इतने बड़े उत्तरदायित्व को संभाल न सकेगी,

(3) मरहठे कम्पनी से युद्ध करने को उद्यत् हो जायेंगे। अतः उसने बक्सर में पराजित बादशाह एवं नवाब से संधि करने का निश्चय किया।

डूप्ले कौन था? उसने दक्षिण भारत में फ्रांसीसियों का प्रभाव स्थापित करने के लिए क्या नीति अपनायी?

डूप्ले भारत में फ्रांसीसी राज्य का गवर्नर था । वह भारत में 1742 ई० से 1754 इ० तक रहा । डूप्ले एक प्रतिभावान तथा आशावादी स्वभाव वाला व्यक्ति था। उसका विचार था- फ्रासीसियों को व्यापार करने के साथ-साथ राज्य स्थापित करने का भा प्रयत्न करना चाहिए।

(1) डूप्ले ने पांडिचेरी में पूरी किलेबन्दी की।

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(2) 1742 में डूप्ले ने षड्यंत्र रचकर कर्नाटक के नवाब सफदर अली की हत्या  करवाकर गद्दी पर कब्जा कर लिया।

(3) डूप्ले ने मारीशस से लाबूदीने को अंग्रेजों पर आक्रमण करने के लिए भारत बुलाया।

(4) वह विशाल सेना के साथ भारत पहुँचा तथा उसने 1746 में पद्रास पर आधकार कर लिया।

(5) ओडियार नामक स्थान पर डूप्ले की सेना ने नवाब अनवरुद्दीन की सेना को  पराजित किया।

(6) डूप्ले ने नवाब मुजफ्फरजंग तथा चांदा साहब के साथ गुप्त सन्धियाँ की तथा  सैनिक सहायता का वचन दिया।

(7) डूप्ले, मुजफ्फरजंग तथा चाँदा साहब की संयुक्त सेनाओं ने अनवरुद्दीन को 1749 में अक्तूबर में पराजित किया।

(8) कनाटक पर चांदा साहब का अधिकार हो गया अतः डूप्ले को उनसे 80 गांव जागीर में प्राप्त हुए।

(9) इप्ले ने नासिरजंग के विरोधियों से साठ-गांठ करके मछलीपत्तम् पर अपना अधिकार कर लिया।

उपयुक्त वर्णन से प्रमाणित होता है, कि पहल डूप्ले ने भारतीय राज्यों के साथ दोस्ती की नीति अपनायी परन्तु बाद में उन्हें अपना आश्रित बना डाला।

कर्नाटक में अपना प्रभुत्व स्थापित करने के लिए अंग्रेजों तथा फ्रांसीसियों के मध्य जो संघर्ष हुआ, उसका संक्षेप में वर्णन

प्रथम कर्नाटक युद्ध-

सन् 1744 ई० म भारत में अंग्रेजों तथा फ्रांसीसियों के बीच युद्ध छिड़ जाने पर तत्कालीन फ्रांसीसी गवनर डूप्ले ने मारीशस में नियक्त लाबर्टीने को भारत में अंगरेजों पर आक्रमण के लिए बुलाया। उसने एक विशाल बेड़े के साथ भारत आकर मद्रास पर अधिकार कर लिया। कर्नाटक के नवाब अनवरुद्दीन द्वारा मद्रास पर अधिकार करने का प्रयल करने पर नवाब आर फ्रासासियों के मध्य संघर्ष प्रारम्भ हो गया जिसमें नवाब को पराजय मिली। तत्पश्चात् डूप्ल ने फोर्ट सेन्ट डेविड नामक किले पर अधिकार करने का असफल प्रयास किया। प्रत्युत्तर में अंग्रेजों ने पांडिचेरी जीतने का असफल प्रयास किया। सन् 1748 ई० में एलाशपल साधक अनुसार फ्रांसीसियों और अंगरेजों के बीच युद्ध बद हो गया। मद्रास अगरजा को तथा अमेरिका में लगे फ्रांसीसियो को मिला।

दूसरा कर्नाटक युद्ध-

सन् 1748 ई० में हैदराबाद के निजाम आसफशाह की मृत्यु के बाद नासिरजंग और मुजफ्फरजंग में दक्षिण की सूबेदारी के लिए संघर्ष प्रारम्भ हो गया। डूप्ले ने अवसर का लाभ उठाकर पूर्व निजाम के दामाद, चाँद साहब और मुजफ्फरजंग के साथ गुप्त संधि कर उन्हें सैनिक सहायता देने का वचन दिया। अंगरेजों ने नासिरजंग को मदद देनी शुरू कर दी। फलस्वरूप डूप्ले, चाँद साहब और मुजफ्फरजंग की संयुक्त सेनाओं ने अनवरुद्दीन पर आक्रमण कर दिया। इस युद्ध में नवाब अनवरुद्दीन मारा गया उसका पुत्र त्रिचनापल्ली भाग गया। कर्नाटक के अधिकांश भाग पर चाद साहब का अधिकार हो गया। डूप्ले ने हैदराबाद में फ्रांसीसी प्रभाव स्थायी बनाये रखने के लिए एक विश्वस्त अधिकारी बुस्सी के नेतृत्व में एक सेना रखी।

सन् 1752 ई० तक अंगरेजों ने फ्रांसीसियों से दक्षिण के अनेक प्रदेश छीन लिये। उनके पास केवल जिजी और पांडिचेरी ही शेष रह गये। डूप्ले की अनेक असफलताओं के कारण फ्रांस सरकार ने सन् 1754ई० में उसे वापस बुला लिया और उसके स्थान पर गोडल्यू भारत आया । उसने अंगरेजों से संधि करके दोनों पक्षों के मध्य युद्ध विराम कर दिया।

 

 

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