खुला विश्वविद्यालय/मुक्त विश्वविद्यालय(Open University)
स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद से निरन्तर हमारा देश सभी स्तरों पर औपचारिक शिक्षा प्रदान करने में प्रयत्नबद्ध रहा व सतत विकास भी करता गया, किन्तु बढ़ती हुई जनसंख्या समस्या तथा पर्यावरण प्रदषण जैसी समस्याओं ने आज परे देश को झकझोर डाला व हमारे समक्ष अनेकानेक प्रश्न आ खडे हए कि क्या हम सब के लिए औपचारिक शिक्षा व्यवस्था कर सकते है। क्या विद्यालय भवनों का निर्माण विद्यार्थियों के समचित अनुपात को ध्यान में रख कर किया जा सकता है? क्या प्रत्येक विद्यालय व महाविद्यालय में आधुनिकतम शैक्षिक उपकरणों की व्यवस्था की जा सकती है? क्या पिछड़े हुए इलाकों तक इनके माध्यम से शिक्षा पहुँचाई जा सकती है? क्या इस व्यवस्था से पढ़कर निकलने वाले प्रत्येक विद्यार्थी को आगे जाकर व्यवसाय मिल सकता है? यदि यह सब सम्भव नहीं तो क्यों हम इस औपचारिक शिक्षा व्यवस्था के पीछे दौड़ रहे है? क्यों न हम ऐसी शिक्षा व्यवस्था करें, जिसमें ऐसे छात्र जो आर्थिक दृष्टि से बहुत संपन्न नहीं हैं अथवा जिनकी पारिवारिक परिस्थितियाँ नियमित छात्र के रूप में शिक्षा प्राप्त करने की अनुमात नहीं देती, वे भी सहज सगम व सरलत ढंग से शिक्षा प्राप्त कर सकें।
उपर्युक्त विवरण से ज्ञात होता है कि औपचारिक व्यवस्था निर्धारित लक्ष्यों को प्राप्त करने में असफल रही है एवं विद्यालय तथा विशेषतः उच्चतर शिक्षा के क्षेत्र में जो मूल्यों का ह्रास निरन्तर होता जा रहा है, उससे निकट भविष्य में शिक्षा के क्षेत्र में भयावह स्थिति उत्पन्न हो सकती है। आज जो छात्र औपचारिक शिक्षा के माध्यम से अध्ययन कर रहे है। उन्हें संस्थाओं द्वारा ऐसी शिक्षा दी जा रही है जो उनके लिए रुचिकर तथा व्यवहारिक नहीं है। नवीन चुनौतियों का सामना करने की योग्यता भी प्रदान करने में असमर्थ है अत: आज एक ही विकल्प है, कि हम खुले मस्तिष्क से खुली शिक्षा को अधिकाधिक प्रयोग व व्यवहार में लाएँ।
पाश्चात्य शिक्षा शास्त्रियों ईवान इलिच, एबर्ट रीमर, गुडमैन, काजोल, जॉनहाल्ट तथा बकमैन आदि ने वर्तमान शिक्षा तथा विद्यालय प्रणाली की असफलताओं को लेकर इनके विरुद्ध कदम उठाए व शिक्षा जगत में हलचल मचा दी। इसी पाठ में पूर्व में वर्णित पाश्चात्य विद्वानों की पुस्तकों तथा एबर्ट रीमर की ‘स्कूल इज डैड’ नामक पुस्तक ने नूतन विचारधारा को जन्म दिया। ईवान इलिच का मानना है कि हम अपनी शिक्षा व्यवस्था को विद्यालय रहित कर सकते है। क्योंकि विद्यालय अर्थहीन हो गये हैं। उनकी दृष्टि में विद्यालय जेल के समान हैं जहाँ बालकों पर सब कुछ थोपा जाता है। अध्यापकों का क्षेत्र भी पाठ्यक्रम तथा विद्यालय के क्षेत्र तक सीमित है। इसे सम्पूर्ण मानव जीवन से सम्बद्ध करना आवश्यक है।
शिक्षा के इस बदलते हए अर्थ और समाज तथा समाज की आवश्यकता के अनुरूप उसे ढालने के विचार से विश्व शिक्षा आयोग ने अपनी रिपोर्ट ‘लर्निंग टु बी’ में इसी बात को स्वीकार किया कि विद्यार्थियों के स्थान की व्यवस्था, समय विभाग चक्र, अध्यापन योजना, साधनों के वितरण, सभी क्षेत्रों में गत्यात्कमकता की तथा विद्यालयों के अधिक लचीलेपन की आवश्यकता है, ताकि वे नयी सामाजिक आवश्यकताओं और तकनीकी विकास के अनुरूप ढाले जा सकें। माध्यमिक व उच्च शिक्षा के क्षेत्र में इसी परिवर्तन को मूर्त रूप देने का एक विचार खुला विद्यालय व खुला विश्वविद्यालय है।
खुला विश्वविद्यालय के उद्देश्य–
खले विश्वविद्यालय के उद्देश्य मूलत: पत्राचार पाठ्यक्रम जो विश्वविद्यालय अनुदान आयोग ने निर्धारित किए हैं, उनके समान हैं-
1. जिन छात्रों के औपचारिक शिक्षा प्राप्ति में अवरोध आ गए हैं, उन्हें शिक्षा प्रदान करना।
2. ऐसे छात्रों को शिक्षा देना, जो भौगोलिक दृष्टि से पिछड़े हुए व दूरस्थ इलाकों में रहते हैं।
3. ऐसे छात्रों को शिक्षा देना, जो अभियोग्यता व अभिप्रेरणा की कमी के कारण शिक्षा पूरी नहीं कर सके।
4. ऐसे छात्रों को शिक्षा देना जो, उच्च शिक्षा प्राप्त करने की न्यूनतम योग्यता भी रखत, हैं, किन्तु उन्हें नियमित रूप से पढ़ाई हेत प्रवेश नहीं मिला अथवा उन्होंने प्रवेश लेने की इच्छा भी नहीं रखी।
5. ऐसे लोगों को शिक्षा सुलभ करवाना, जो किसी व्यवसाय में रत हैं, किन्तु अब आगे पढ़ना चाहते हैं तथा नवीनतम विचारों से अवगत रहने के लिए पुनः प्रशिक्षण के लिए लालायित हैं।
6. उन प्रौढों को शिक्षा देना, जो अपनी युवावस्था में उच्च शिक्षा प्राप्त करने से वंचित रह गये थे।
7. वे, जो विश्वविद्यालय प्रवेश परीक्षा में असफल रहने के कारण विश्वविद्यालय शिक्षा से वंचित रह गये, पर अब नये अवसर को प्राप्त कर उच्च शिक्षा प्राप्त करना चाहते हैं, उन्हें शिक्षा प्रदान करना।
8. मुख्य रूप से ऐसी महिलाएं जिन्होंने युवावस्था में विवाह करने के कारण उच्च शिक्षा प्राप्त नहीं की और अब अपनी प्रौढ़ता अथवा परिवर्तित सामाजिक आर्थिक स्थिति के कारण उच्च शिक्षा प्राप्त करना चाहती हैं, उन्हें प्रवेश देना।
9. ऐसे लोग जो नवीनतम साधनों तथा मद्रित लेख, पत्राचार पाठ्यक्रम, सम्पर्क कार्यक्रम, अध्ययन केन्द्र, जन संचार साधनों से विभिन्न क्षेत्रों में ज्ञानवृद्धि करना चाहते हैं।
10. इस व्यवस्था से नामांकन, प्रवेश की आयु, पाठ्यक्रम चयन, अधिगम विधि, परीक्षा आयोजन और कार्यक्रमों का संचालन आदि में लचीलापन आयेगा।
11. अनुसन्धान और ज्ञान के विकास और विस्तार के अवसर प्रदान करना।
खुला विश्वविद्यालय के लाभ-
1. हर स्तर पर औपचारिक शिक्षा के विस्तार में सहायक।
2. व्यक्ति के ज्ञान व कौशल में सतत नवीनता लाना।
3. अवकाश के क्षणों का सदुपयोग करवाने में सहायक।
4. स्व-अधिगम को प्रोत्साहन।
5. छात्रों को किसी भी स्थान पर रहते हए शिक्षा प्राप्त करने का अवसर प्रदान करना।
6. व्यक्ति में जीवन पर्यन्त अधिगम कौशल उत्पन्न करना।
7. एक ही समय में अधिकाधिक छात्रों को शिक्षा प्रदान करना।
8. कम व्यय पर उन्नत शिक्षा प्रदान करना।
9. शिक्षा में नवीन तकनीकी विधियों का अधिकाधिक उपयोग करना।
10. दूरस्थ शिक्षा तकनीकी माध्यम से देश विदेश के विभिन्न भागों की जानकारी प्राप्त करना।
11. परम्परागत शैक्षणिक संस्थाओं में नवीन शिक्षण विधियों के प्रयोग के प्रति जागरूकता उत्पन्न करना।
12. व्यक्तिगत परीक्षा पद्धति (Private Examination) के तहत शिक्षा उपाधि प्राप्त करने वाले छात्रों को उपाधि के साथ-साथ नवीनतम शिक्षा प्रदान करने में खुले विश्वविद्यालय बहुत उपयोगी हैं।
13. पत्राचार पाठ्यक्रम पद्धति खुले विश्वविद्यालयों में अधिक प्रभावशाली ढंग से चलाई जा रही है, क्योंकि इसमें पाठों के साथ दृश्य-श्रव्य उपकरणों का प्रयोग भी किया जाता है।
राष्ट्रीय खुला विद्यालय(National Open University) –
1979 में केन्द्रीय माध्यमिक शिक्षा बोर्ड, दिल्ली द्वारा देश में अपनी तरह का पहला ‘मुक्त विद्यालय’ दिल्ली में खोला गया। भारत सरकार ने नवम्बर 1979 में एक प्रायोजना प्रतिवेदन के द्वारा शिक्षा विभाग, मानव संसाधन विकास मंत्रालय के प्रशासकीय नियन्त्रण के भीतर एक स्वायत्तशासी निकाय और पंजीकृत समिति के रूप में राष्ट्रीय खुला विद्यालय की स्थापना का निर्णय लिया और मुक्त विद्यालय को इसमें मिला दिया। 1990 में भारत सरकार के एक प्रस्ताव के आधार पर राष्ट्रीय खुला विद्यालय को अपनी सेत्/माध्यमिक/उच्च माध्यमिक परीक्षाएँ आयोजित करने तथा प्रमाण-पत्र जारी करने का अधिकार दिया गया।
आज ये विद्यालय देश में माध्यमिक तथा उच्चतर माध्यमिक स्तर तक शिक्षा प्रदान करने में अपना महत्त्वपूर्ण योगदान दे रहे हैं।
आन्ध्र प्रदेश खुला विश्वविद्यालय, हैदराबाद
देश में सर्वप्रथम खुला विश्वविद्यालय आन्ध्र प्रदेश में 26 अगस्त 1982 को स्थापित किया गया। इस विश्वविद्यालय में तीन स्नातक स्तर के पाठ्यक्रम बी.ए., बी.कॉम., बी.एस.सी. छात्रों के लिए रखे गए। इन पाठ्यक्रमों के लिए कोई भी औपचारिक शैक्षणिक योग्यता निर्धारित नहीं की गई। कोई भी व्यक्ति स्नातक पाठ्यक्रमों में प्रवेश ले सकता है यदि वह विश्वविद्यालय द्वारा ली गई प्रारम्भिक प्रवेश परीक्षा उत्तीर्ण कर लेता है। यदि किसी छात्र ने इण्टरमीडिएट परीक्षा उत्तीर्ण कर ली है तो वह बिना प्रारम्भिक प्रवेश परीक्षा में बैठे उक्त कक्षाओं में प्रवेश ले सकता है लेकिन बी.एस.सी. में प्रवेश लेने के लिए इण्टरमीडिएट परीक्षा को ऐच्छिक विज्ञान विषयों के साथ उत्तीर्ण करना आवश्यक है।
स्नातक पाठ्यक्रम में तीन स्तर निर्धारित किए गए हैं-
1. आधार पाठ्यक्रम
2. कोर पाठ्यक्रम
3. विशिष्ट या प्रायोगिक पाठ्यक्रम।
पाठ्यक्रमों व पाठों का निर्माण विशेषज्ञ समिति द्वारा किया जाता है। पाठ सामग्री की तैयारी विषय सम्पादक, कतिपय पाठ्यक्रम लेखक, एक भाषा सम्पादक एवं एक संयोजक के दल द्वारा तैयार किया जाता है। संयोजक पूर्णकालिक कर्मचारी होता है। जबकि शिक्षक और पाठ्यक्रम लेखक विश्वविद्यालय से वेतन प्राप्त करने वाले अथवा अन्य किसी संस्था के अध्यापक हो सकते हैं। मुद्रित सामग्री के अतिरिक्त रेडियो प्रसारण व वीडियो हेतु पाठों का निर्माण किया जाता है।
खुले विश्वविद्यालय के पाठों के प्रसारण हेत आकाशवाणी ने समय दिया हआ है। आन्ध्रप्रदेश के प्रत्येक जिले में एक-एक अध्ययन केन्द्र स्थापित किया गया है एवं हैदराबाद तथा सिकन्दराबाद शहर में छ: अध्ययन केन्द्र विभिन्न महाविद्यालयों में चलाए जा रहे हैं। जिनमें सप्ताह में अन्य दिनों में शाम को व रविवार को दिन में कार्य किया जाता है। इनमें विश्वविद्यालय द्वारा अंशकालीन अध्यापकों की नियुक्ति की जाती है जिनके कार्यों का परिवीक्षण/पर्यवेक्षण/संयोजन महाविद्यालय के प्राचार्य द्वारा किया जाता है। संयोजक व सलाहकार अपने क्षेत्रों में छात्रों के लिए कार्यक्रमों की योजना बनाते हैं। सलाहकार का मुख्य कार्य छात्रों की विषय से सम्बन्धित शंकाओं का समाधान करना होता है। प्रत्यक्ष अन्त:क्रिया के लिए वर्ष के मध्य में विश्वविद्यालय सेमीनार व तदर्थ व्याख्यान विश्वविद्यालय से बाहर के व्याख्याताओं द्वारा करवाए जाते हैं।
मूल्यांकन के दो भाग हैं- प्रथम भाग में छात्रों द्वारा सलाहकार के पास गृह कार्य भेजता होता है जिनका मूल्यांकन किया जाता है। दूसरे भाग में वर्ष के अन्त में विश्वविद्यालय द्वारा नियमित परीक्षा आयोजित की जाती है।
जहाँ तक संगठनात्मक संरचना का प्रश्न है आन्ध्रप्रदेश खुला विश्वविद्यालय में वहाँ के राज्यपाल ‘एक्स ऑफिसिओ चान्सलर’ हैं। उसमें एक कार्यकारिणी परिषद् भी है, जिसमें समस्त कार्यपालिक शक्तियाँ निहित है जिसका अध्यक्ष कुलपति होता है। शेैक्षणिक परिषद को। विश्वविद्यालय में शैक्षणिक योजना बोर्ड के नाम से जाना जाता है जो शेक्षणिक मामलों में नीति। निर्धारण से सम्बन्धित कार्य करती है । कुलपति शैक्षणिक और प्रशासनिक कार्यों में प्रधान व्यक्ति होता है। कुलपति की नियुक्ति के लिए एक समिति गठित की जाती है और जिन नामों की। समिति संस्तुति करती है उनमें से किसी एक को कुलाधिपति नियुक्त करते हैं कुलपति की। नियुक्ति सामान्यत: तीन वर्ष के लिए की जाती है जो बढ़ाई भी जा सकती है। इसमें निदेशक के पद का भी प्रावधान है जो दूसरे विश्वविद्यालय में ‘प्रो वाइस चान्सलर’ के पद के समकक्ष है। इसके अलावा रजिस्ट्रार, वित्त अधिकारी, डीन व विभागाध्यक्ष के पदों का प्रावधान भी है। इन मामलों में आन्ध्रप्रदेश खुला विश्वविद्यालय के अधिनियम के प्रावधान राज्य के अन्य अधिनियमों के समान हैं।
इन्दिरा गांधी राष्ट्रीय मुक्त विश्वविद्यालय
इन्दिरा गांधी राष्ट्रीय मुक्त विश्वविद्यालय की स्थापना सितम्बर 1985 में की गई इसका मुख्यालय दिल्ली में है। देश के लगभग सोलह राज्यों में इसके क्षेत्रीय केन्द्र हैं तथा कश्मीर से कन्याकुमारी तक तथा अहमदाबाद से इम्फाल तक के क्षेत्र में लगभग 230 अध्ययन केन्द्र हैं। ये अध्ययन केन्द्र पारम्परिक विश्वविद्यालयों, सरकारी तथा मान्यता प्राप्त गैर सरकारी महाविद्यालयों में स्थापित किए गए हैं। राजस्थान राज्य में लगभग ग्यारह अध्ययन केन्द्र हैं।
अध्ययन विषय- इस विश्वविद्यालय में डिप्लोमा व सर्टिफिकेट कोर्स चलते हैं यथा बी.ए.. बी.काम.,बी.एस.सी., डिप्लोमा इन कम्प्यूटर इन ऑफिस मेनेजमेंट, क्रियेटिव राइटिंग इन इंग्लिश, मास्टर्स इन बिजनेस एडमिनिस्ट्रेशन (एमबी.ए), डिप्लोमा इन फाइनेन्शियल मैनेजमेंट, डिप्लोमा इन ह्यमन रिसोर्स मैनेजमेंट, डिप्लोमा इन मार्केटिंग मैनेजमेंट, डिप्लोमा इन ऑपरेशन मैनेजमैंट, पुस्तकालय व सूचना विज्ञान में बेचलर डिग्री,दूर शिक्षा में डिप्लोमा, ग्रामीण विकास में डिप्लोमा, उच्च शिक्षा में स्नातकोत्तर डिप्लोमा, भोजन व पोषण में सर्टिफिकेट, सर्टिफिकेट इन गाइडेन्स (स्कूल अध्यापकों केलिए), हिन्दी में सृजनात्मक लेखन में डिप्लोमा इत्यादि। आज इस विश्वविद्यालय में पंजीकृत छात्रों की संख्या लगभग 2 लाख तक पहुंच गई।
शिक्षण पद्धति- इस विश्वविद्यालय में बहुमाध्यम पद्धति का प्रयोग प्रारम्भ किया है । इस पद्धति के अन्तर्गत छपी हुई पाठ्य सामग्री विद्यार्थी के घर भेजी जाती है। अध्ययन केन्द्र पर टेपरिकार्डर, वी.सी.आर. तथा टेलीविजन के साथ अत्याधुनिक उपकरणों की सुविधा है जहाँ छात्र को दृश्य-श्रव्य माध्यम से पढ़ने समझने की प्रेरणा मिलती है कुछ निश्चित दिन और निश्चित समय पर अध्ययन केन्द्र पर अध्यापक (एकेडेमिक काउन्सलर) उपस्थित होता है । जिससे छात्र विचार-विमर्श कर अपनी अध्ययन सम्बन्धी कठिनाइयाँ दूर कर सकते हैं। आज टेलीटोचिगवा टेली कॉन्फ्रेंसिंग की सुविधा भी विश्वविद्यालय में उपलब्ध है। इण्टरनेट से जड़े होने के कारण इसमें आधुनिकतम तकनीकों का प्रयोग किया जा रहा है।
पद्धति- प्रत्येक छात्र को शिक्षण सत्र में तीन गृहकार्य (होम एसाइनमेंट) करने होते हैं। दो गृह कार्य शिक्षक जाँचता है और एक कम्प्यूटर द्वारा जाँचा जाता है।।
प्रवेश योग्यता – इस विश्वविद्यालय में कई डिग्रियों व डिप्लोमा को अनिवार्य शैक्षणिक योग्यता से मुक्त रखा गया है जैसे बी.ए. व बी.कॉम की डिग्री के लिए वह छात्र तो प्रवेश ले ही सकता है जो दस जमा दो पास है साथ ही वह छात्र भी प्रवेश ले सकता है जो दस जमा दो पास नहीं है। लेकिन एक शर्त है कि उसकी उम्र 20 वर्ष हो साथ ही वह प्रवेश के लिए निर्धारित प्रवेश परीक्षा पास करे। इसी प्रकार सृजनात्मक लेखन में डिप्लोमा के लिए कोई निर्धारित शैक्षणिक योग्यता नहीं रखी गई है। भारतीय विश्वविद्यालयों में सहयोग –
इन्दिरा गाँधी राष्ट्रीय मुक्त विश्वविद्यालय ने अन्य खुले विश्वविद्यालयों के साथ सहयोग का जाल बिछा रखा है ताकि पाठ्यक्रमों को आधुनिक रूप दिया जा सके, साथ ही देश में अन्य मुक्त विश्वविद्यालयों के साथ पाठ्यक्रमों का आदान-प्रदान हो सके। इस सम्बन्ध में आन्ध्र प्रदेश मुक्त विश्वविद्यालय व राजस्थान के कोटा स्थित खुला विश्वविद्यालय के साथ सहयोग किया जा रहा है। कोटा खुला विश्वविद्यालय ने इस विश्वविद्यालय से बी.ए., बी.कॉम, तथा डिप्लोमा इन मैनेजमेंट पाठ्यक्रम लिए हैं। ऐसा करने से साधनों की बचत होती है और बचे हुए साधनों का उपयोग दूसरे पाठ्यक्रमों के विकास में किया जा सकता है। इस विश्वविद्यालय ने एक प्रत्यायन परिषद् (एक्रेडिटेशन काउन्सिल) बनाई है। जो किसी भी विश्वविद्यालय द्वारा उत्पादित पाठ्यक्रम की जाँच करेगी व उपयोगी होने पर अन्य विश्वविद्यालयों से उसके उपयोग की सिफारिश करेगी।
भारतीय भाषाओं में पाठ्यक्रम- इस विश्वविद्यालय में कुछ पाठ्यक्रम-अंग्रेजी में हैं उनका हिन्दी रूपान्तरण तैयार किया जा रहा है। कुछ पाठ्यक्रम हिन्दी व अंग्रेजी में हैं। इस बात का प्रयास किया जा रहा है कि ये पाठ्यक्रम भारत की अन्य भाषाओं में भी उपलब्ध हों। इसके लिए राज्य सरकार व वहाँ की भाषा अकादमियों से सम्पर्क किया गया है, कि वे पाठयक्रम को राज्य विशेष की भाषा में अनुवाद करने व प्रकाशन का बीड़ा उठाएं। गुजरात व महाराष्ट्र राज्य में अनुवाद का कार्य आरम्भ हो चुका है। इस कार्य में वहां की सरकारों का सहयोग मिल रहा है। बी.ए., बी.कॉम के पाठ्यक्रम में भाषा पाठ्यक्रम के अन्तर्गत यह विश्वविद्यालय अंग्रेजी, हिन्दी, तमिल, तेलगू, मलयालम, कन्नड, असमिया व उड़िया भाषा लेने की स्वतन्त्रता देता है।
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