जैन-धर्म-तथा-बौद्ध-धर्म-की-तुलना

जैन धर्म तथा बौद्ध धर्म में अंतर

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जैन धर्म तथा बौद्ध धर्म की तुलना कीजिये- 

जैन धर्म तथा बौद्ध धर्म में इतनी अधिक समानता है कि कुछ विद्वान् उन्हें एक ही धर्म की दो शाखाएँ मानते हैं। Lassen महोदय की धारणा है कि जैनी लोग बौद्धों की एक शाखा है। (Janis had branched off from Buddhism). कुछ अन्य विदेशी विद्वानों ने भी इस मत का समर्थन किया है परन्तु इन विद्वानों के ये मत ठीक नहीं हैं क्योंकि ध्यान से देखने पर इन दोनों धर्मों में समानता के साथ-साथ मौलिक रूप से विषमताएँ भी परिलक्षित होती हैं। लेकिन किन-किन बातों पर इन दोनों धर्मों में समानता तथा विषमता है, इसका वर्णन निम्नलिखित हैं-

समानताएँ 

(1) दोनों धर्मों के प्रवर्तकों में साम्य-

दोनों धर्मों के प्रवर्तक क्षत्रिय राजकुमार थे। दोनों ही राजकुमारों ने 30 वर्ष की अवस्था में सत्य की खोज के लिए गृहत्याग किया था और अपने लक्ष्य की प्राप्ति के लिए दोनों ने ही घोर तपस्या का मार्ग अपनाया।

(2) दोनों का कर्म तथा पुनर्जन्म में विश्वास-

दोनों धर्मों का यह कहना था कि मनुष्य के अच्छे और बुरे कर्मों का प्रभाव उसके वर्तमान तथा भावी जीवन पर पड़ता है। मनुष्य जिस प्रकार का कर्म करता है उसे उसी प्रकार फल भोगना पड़ता है। दोनों ही धर्म पुनर्जन्म में विश्वास करते हैं।

(3) दोनों वेद, ईश्वर एवं वर्ण-

व्यवस्था के विरोधी-दोनों धर्म वेदों को नहीं मानते और वैदिक यज्ञों तथा बलिदानों का विरोध करते हैं। दोनों वैदिक कर्मकाण्डों तथा ब्राह्मण धर्म के वाह्याडम्बरों के विरोधी रहे । एन० एन० घोष के अनुसार-

बौद्ध धर्म और जैन धर्म दोनों सम्प्रदाय ब्राह्मण धर्म के भ्रष्टाचार के विरुद्ध किये गये धार्मिक आन्दोलन हैं।”

महावीर एवं बुद्ध दोनों ही ईश्वर की संज्ञा के विषय में मौन रहे। वे ईश्वर को न तो सवश्रेष्ठ मानते हैं और न सष्टि का कर्ता-धर्ता ही मानते हैं। दोनों धर्मों ने वर्ण-व्यवस्था का भी जोरदार विरोध किया। ये धर्म जाति-पातिक भेद-भावों को नहीं मानते। दोनों धर्मों ने वर्ण-व्यवस्था का भी जोरदार विरोध किया। ये धर्म जाति-पातिक भेद-भावों को नहीं मानते।

(4) दोनों का अन्तिम लक्ष्य मोक्ष या निर्वाण-

दोनो धर्मों का अन्तिम उद्देश्य मोक्ष या निर्वाण प्राप्त करना है और उसे पा लेने पर मनुष्य दुःख एवं जन्म-मरण के चक्कर में छुटकारा पा जाता है।

(5) दोनों का प्रचार जन भाषा में-

महावीर तथा बुद्ध ने अपने धर्मोपदेश साधारण बोलचाल की भाषा में किया। जैन ग्रन्थ प्राकृत भाषा में और बौद्ध-ग्रन्थ पाली भाषा में लिखे गये।

(6) दोनों में सद् आचरण को महत्व दिया गया-

महावीर तथा बुद्ध दोनों ने कर्मकाण्ड का विरोध किया और मोक्ष प्राप्ति के लिए सद् आचरण को आवश्यक बताया।

(7) दोनों अहिंसा के समर्थक हैं-

महावीर स्वामी व महात्मा बुद्ध दोनों ने हिंसा का विरोध किया और अहिंसा पर जोर दिया।

(8) दोनों को राजाश्रय प्राप्त हुआ-

दोनों धर्मों को क्षत्रिय राजाओं के दरबारों में आश्रय मिला था।

(9) दोनों का धर्म संघ पर जोर-

दोनों प्रवर्तकों ने धर्म-संघ बनाने पर जोर दिया। इन दोनों ने संसार को त्याग कर भिक्षुओं को संघ में सम्मिलित होने के लिए लोगों को प्रोत्साहित किया।

विषमताएँ

(1) अहिंसा सम्बन्धी अन्तर-

बुद्ध जी की अपेक्षा महावीर ने अहिंसा पर अधिक जोर दिया। जैन-मतावलम्बी छोटे-छोटे जीवों की रक्षा का भी प्रयत्न करते हैं। वे नाखून, बाल आदि नहीं कटवाते क्योंकि उनका यह विश्वास है कि ऐसा करने से उनमें निवास करने वाले छोटे-छोटे जीवों की हत्या हो जायगी। वे सूर्यास्त के बाद भोजन या जल ग्रहण नहीं करते। यह केवल हिंसा से बचने के लिए है। परन्तु बौद्ध धर्म के लोग अहिंसा का इतनी सूक्ष्मता से पालन नहीं करते।

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(2) आत्मा सम्बन्धी अन्तर-

बुद्ध जी आत्मा के अस्तित्व के सम्बन्ध में चुप रहे परन्तु महावीर आत्मा के अस्तित्व को मानते हैं। इस प्रकार जैन धर्म आत्मवादी है बौद्ध धर्म अनात्मवादी है।

(3) मोक्ष की प्राप्ति के साधनों तथा आचरण सम्बन्धी अन्तर-

जैनियों ने मोक्ष प्राप्ति का साधन तपस्या, व्रत, उपवास आदि को माना है। परन्तु बौद्ध धर्म कठोर तप व व्रत में विश्वास नहीं करता वरन् मध्यम मार्ग को ही श्रेष्ठतम समझता है। जैन धर्म ने आचरण के तीन नियमों पर जोर दिया जिन्हें त्रिरत्न कहते हैं, जबकि बौद्ध धर्म अष्टांगिक मार्ग पर जोर देता है।

(4) निर्वाण के अर्थ में अन्तर-

जैन धर्म के अनुसार मोक्ष की प्राप्ति मृत्यु के बाद होती है परन्तु बौद्ध धर्म के अनुसार निर्वाण की प्राप्ति इस जीवन में ही हो सकती है।

(5) समाज सम्बन्धी अन्तर-

डॉ० स्मिथ के अनुसार जैन धर्म ने गृहस्थ को अधिक महत्व दिया है और बौद्ध धर्म संघ को बड़ा महत्व देता है।

(6) व्यापकता में अन्तर-

जैन धर्म सदैव एक भारतीय धर्म बना रहा जबकि बौद्ध धर्म एक सक्रिय एवं प्रचारशील धर्म होने के कारण विश्वव्यापी धर्म बन गया।

(7) प्राचीनता में अन्तर-

जैन धर्म अधिक प्राचीन है। जैन धर्म का जन्म वैदिक काल में ही हो गया था। बौद्ध धर्म का उदय 6वीं शताब्दी ई० पू० में हुआ।

(8) जाति-

भेद की मान्यता में अन्तर-बौद्ध धर्म ने जाति भेद को कभी स्वीकार नहीं किया। परन्तु जैन धर्मावलम्बियों के समक्ष जाति का भेद-भाव सदैव उपस्थित रहा।

(9) अन्य विषमताएँ-

(1) जैन धर्म की अपेक्षा बौद्ध धर्म को राजकीय आश्रय अधिक प्राप्त हुआ। अशोक तथा कनिष्क जैसे महान सम्राटों का आश्रय एवं संरक्षण बौद्ध धर्म को प्राप्त हुआ।

(2) दोनों ने विभिन्न भाषाओं का प्रयोग किया। जैनियों ने संस्कृत एवं प्राकृत तथा बौद्ध धर्म ने पाली भाषा का प्रयोग किया।

(3) जैन धर्म की तुलना में बौद्ध धर्म ने संघ व्यवस्था को अधिक महत्व दिया।

भारतीय संस्कृति एवं सभ्यता को बौद्ध धर्म ने कहाँ तक प्रभावित किया है? 

बौद्ध धर्म का प्रभाव बौद्ध धर्म जन-जीवन को सदियों तक प्रभावित करता रहा। अतएंव प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से भारतीय सभ्यता एवं संस्कृति पर इस धर्म का प्रभाव पड़ना स्वाभाविक एवं अनिवार्य था। इसके प्रभाव निम्नलिखित थे-

(1) धार्मिक प्रभाव-

इस क्रान्तिकारी धर्म के पूर्व ब्राह्मण धर्म बाह्याडम्बरों एवं कर्मकाण्डों से परिपूर्ण था। जनता इस धर्म की जटिलता से उदासीन हो रही थी। धर्म पर ब्राह्मणों का एकाधिकार हो गया था। परन्तु बौद्ध धर्म ने हिन्दुओं को अपने अनैतिक कार्यों से दूर रहने की प्रेरणा दी। यज्ञों तथा बलिदानों की अवहेलना होने लगी और अब पशुओं के जीवन का भी सम्मान किया जाने लगा।

(2) भागवत धर्म की उत्पत्ति-

बौद्ध धर्म की महायान शाखा में पूजन परम्परा को अपनाया गया था। अतः कालान्तर में इसे हिन्दू धर्म ने समेट लिया जिससे भागवत धर्म की उत्पत्ति हुई।

(3) मूर्ति पूजा का आरम्भ-

कहा जाता है कि हिन्दू धर्म में मूर्तिपूजा का प्रारम्भ बौद्ध धर्म के प्रभाव से हुआ है। बौद्ध धर्म के पहले हिन्दू धर्म में मूर्ति-पूजा का प्रचलन नहीं मिलता। बौद्ध की मूर्ति-पूजा और मन्दिर निर्माण का प्रभाव ब्राह्मण धर्म पर भी पड़ा और बाद में मूर्ति-पूजा हिन्दू धर्म का एक आवश्यक अंग बन गया।

(4) धर्म-संघ की स्थापना-

बौद्धों ने धर्म-प्रचार के लिए संघ का संगठन किया। इसी संघ के कारण ही बौद्ध धर्म का देश-विदेश में व्यापक प्रचार हुआ। अतः संघ की आश्चर्यजनक सफलता ने अन्य धर्मावलम्बियों को भी संघ संगठित करने के लिए प्रेरित किया।

(5) समानता तथासहिष्णुता का समर्थन-

जाति-पाँति के भेदभाव का विरोध कर बौद्ध धर्म वालों ने समाज में समानता के सिद्धान्त का प्रतिपादन किया। जातीय सहिष्णुता की भावना के सृजन में इस धर्म ने बड़ा योग दिया। बौद्ध धर्म की उदारता तथा सहिष्णुता की भावना का प्रभाव भारतीय राजाओं पर भी पड़ा।

(6) विदेशों से सम्पर्क-

बौद्ध धर्म का प्रचार विदेशों में भी हुआ। फलस्वरूप भारत के विदेशों से स्थायी एवं घनिष्ठ सम्बन्ध स्थापित हो गये। भारतीय सभ्यता एवं संस्कृति का भी प्रचार विदेशों में हआ।

(7) कला एवं साहित्य पर प्रभाव-

बौद्ध धर्म ने भारतीय कला को व्यापक रूप से प्रभावित किया। इस धर्म के अनुयायियों ने अनेक विहार, स्तूप एवं गुहा मन्दिरों का निर्माण किया जिससे भवन निर्माण कला को प्रोत्साहन मिला। महायान सम्प्रदाय के उदय के पश्चात् महात्मा बुद्ध की अनेक सुन्दर मूर्तियों का निर्माण हुआ जो आज भी सुन्दरता एवं सजीवता के लिए विख्यात हैं। कला की गांधार शैली इसी धर्म की देन है। बौद्ध का पूरा साहित्य पाली भाषा में है इसलिए इस भाषा के साहित्य की खूब उन्नति हुई।

(8) धार्मिक उदारता एवं सहिष्णुता-

बौद्ध धर्म ने हमें उपदेश दिया कि सब धर्मों के साथ उदारता एवं सहिष्णुता का व्यवहार करना चाहिए।

(9) दर्शन पर प्रभाव-

बौद्ध दार्शनिकों ने शून्यवाद एवं विज्ञानवाद को जन्म दिया। इन्होंने हिन्दू दार्शनिकों को प्रभावित किया।

(10) नैतिक आचरण की अभिवृद्धि-

महात्मा बुद्ध ने जनता को नैतिकता का पाठ पढ़ाया। इससे नैतिक आचरण की अभिवृद्धि हुई और समाज में दया एवं त्याग का प्रचार हुआ|

बौद्ध धर्म के उत्थान के कारण

 बौद्ध धर्म का प्रचार न केवल भारत में हुआ वरन् चीन, जापान, श्रीलंका, बर्मा, जावा आदि देशों में यह लोकप्रिय धर्म बन गया। बौद्ध धर्म के इस व्यापक प्रचार एवं लोकप्रियता के निम्नलिखित कारण थे :-

(1) वैदिक धर्म में कर्मकाण्ड की जटिलता-

वैदिक धर्म की सरलता अब समाप्त दो चकी थी। उसके यज्ञों तथा बलिदानों में जटिलता आ गयी थी। अतः पुरोहितशाही तथा जाति-व्यवस्था से जकड़े हुए ब्राह्मण-धर्म से छुटकारा पाने के लिए जनता बेचैन थी। ऐसी दशा में लोगों का बौद्ध धर्म की ओर झुकना स्वाभाविक था। क्या राजा, क्या रंक सभी ने इस धर्म को अपनाना शुरू कर दिया।

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(2)महात्मा बुद्ध का प्रभावशाली व्यक्तित्व-

महात्मा बुद्ध का व्यक्तित्व असाधारण शा। उनके असाधारण त्याग एवं उच्च विचारों ने सभी को प्रभावित किया। वे जो कहते थे उसका स्वयं पालन करते थे; साथ ही बुद्ध अपने दिव्य ज्ञान से वैदिक धर्म की प्रचलित परम्पराओं का तीव्र खण्डन भी करते थे।

(3) राजाओं द्वारा प्रोत्साहन एवं आश्रय-

बौद्ध धर्म की उन्नति का एक बहुत बड़ा कारण महान् सम्राटों का इस धर्म में योगदान था। शाक्य, लिच्छवी, मल्ल, कोलय तथा मोरिय आदि गणराज्यों से सहायता पाकर महात्मा बुद्ध को अपने धर्म-प्रचार में सुगमता हुई होगी। मगध सम्राट बिम्बसार, कोशल नरेश प्रसेनजित, अशोक, कनिष्क आदि सम्राटो का राजाश्रय पाकर बौद्ध-धर्म चारों ओर फैल गया।

(4) प्रभावशाली संगठन एवं प्रचारकों की लगन-

महात्मा बुद्ध ने अपने धर्म के प्रचारार्थ संघों का निर्माण किया। उनकी मृत्यु के बाद इन सुव्यवस्थित संघों द्वारा जिनमें उत्साही एवं निःस्वार्थ-परायण भिक्षु एवं भिक्षुणियाँ थीं, प्रचार का काम योग्यता आर सफलता के साथ होता रहा।

(5) जाति-पाँत का न होना-

बौद्ध धर्म की सफलता का कारण एक यह भी था कि इसका द्वार सभी जाति के लोगों के लिए खुला था और इस धर्म में सभी समान समझे

(6) लोक भाषा का प्रयोग-

बौद्ध धर्म की सफलता एवं उन्नति का एक प्रमुख कारण जन-भाषा का प्रयोग भी है। भगवान बद्ध ने अपने उपदेशों के लिए जन-साधारण की भाषा पाली का प्रयोग किया। अतः साधारण-से-साधारण व्यक्ति भी धर्म का ज्ञान पाने में समर्थ हो सका था।

(7) दूसरे धर्म का विरोध न करना-

बौद्ध धर्म के प्रचारक दूसरे धर्मों की आलोचना या निन्दा नहीं करते थे वरन् यह उपदेश देते थे कि यदि दूसरे धर्मों में कोई अच्छाई हो तो उसे ग्रहण कर लेना चाहिए। अन्य धर्मों के प्रति ऐसे उदार तथा सहिष्णुता-पूर्ण विचारों से लोग बहुत ही प्रभावित हुए और इस धर्म की ओर झुक गये।

(8) नालन्दा विश्वविद्यालय द्वारा प्रचार-

बौद्ध धर्म के प्रचार में इस विश्वविद्यालय ने भी बड़ी सहायता प्रदान की। इस विद्यालय में दूर-दूर से विद्यार्थी बौद्ध-ग्रन्थों तथा अन्य शिक्षाओं का अध्ययन करने आते थे। विश्वविद्यालय के आचार्यों के व्यक्तित्व एवं प्रखर ज्ञान से प्रभावित होकर विदेशी छात्र भी अपने देशों में बौद्ध धर्म की शिक्षाओं का प्रचार करते थे।

(9) उन्नत तथा समृद्ध साहित्य-

बौद्ध विद्वानों ने विशाल साहित्य का सृजन किया। बौद्ध-साहित्य अधिकांशतः पाली भाषा में लिखा गया। नागार्जुन एवं अश्वघोष के नाम इस क्षेत्र में उल्लेखनीय हैं। इसके अतिरिक्त विदेशी भाषाओं जैसे, चीनी, सिंहली में भी बौद्ध साहित्य लिखा गया । अतः इस विशाल एवं समृद्ध साहित्य का अध्ययन करने के लिए दर-दर से ज्ञान-पिपासु आते थे।

(10) प्रबल प्रतिद्वन्दिता का अभाव-

इस धर्म को प्रारम्भ में धर्म-प्रचार में किसी प्रतिद्वन्द्वी का सामना नहीं करना पड़ा। ब्राह्मण धर्म में प्रचार की प्रवृत्ति नहीं थी यदि कोई प्रबल प्रतिद्वन्द्वी रहा होता तो शायद यह धर्म इतनी उन्नति न कर पाता।

(11) सरल शिक्षाएँ-

बौद्ध धर्म ने मध्यम मार्ग का अनुसरण किया। इसके सिद्धान्त ब्राह्मण तथा जैन धर्मों की तरह उतने जटिल नहीं थे, जिन पर आचरण करना कठिन प्रतीत होता है। बौद्ध धर्म ने शील तथा आचरण पर अधिक जोर दिया और दार्शनिक वाद-विवादों से उदासीन रहा। इस कारण यह जनता में शीघ्र लोकप्रिय हो गया।

 बौद्ध धर्म की अवनति के क्या कारण थे?

जितनी तेजी से बौद्ध धर्म का उत्थान हुआ उतनी ही तेजी से भारत में इसका ह्रास भी हुआ। इसके पतन के निम्नलिखित कारण थे- “

(1) ब्राह्मण धर्म का पुनरुत्थान-

कनिष्क की मृत्यु के बाद हिन्दू धर्म ने फिर से जोर पकड़ा। शंकराचार्य, कुमारिलभट्ट तथा अन्य हिन्दू आचार्यों ने हिन्दू धर्म का पुनरुत्थान किया । बौद्ध-धर्म की नींव हिल गई और इसका प्रभाव कम हो गया।

(2) राजाश्रय की समाप्ति-

अशोक और कनिष्क के बाद बौद्ध धर्म को राजाओं की ओर से सहायता एवं प्रोत्साहन मिलना बन्द हो गया। शुंगवंश के शासकों ने ब्राह्मण धर्म अपनाया। इससे बौद्ध धर्म के प्रचार में बड़ी भारी रुकावट पैदा हो गई।

(3) बौद्ध भिक्षुओं का नैतिक पतन

-इस धर्म के पतन का एक प्रमुख कारण भिक्षुओं के चरित्र का भ्रष्ट होना भी था। राजकीय सहायता से बौद्ध-विहार तथा मठ समृद्धशाली बन गये थे जिसके कारण भिक्षुओं का त्याग एवं तपस्या का जीवन नष्ट हो गया और वे विलास-प्रिय बन गये। इस कारण बौद्ध धर्म की लोकप्रियता घटने लगी। वज्रयान और हीनयान के नाम विशेष रूप से उल्लेखनीय हैं। दो सम्प्रदायों में विभक्त हो जाने के कारण इस धर्म को बहुत बड़ा धक्का पहुंचा।

(4) संघ में स्त्रियों का प्रवेश-

बौद्ध संघ में स्त्रियों के प्रवेश के बड़े घातक परिणाम हुए। युवकों तथा युवतियों का भिक्षु तथा भिक्षुणी के रूप में एक साथ निवास करने से विहार तथा मठ व्यभिचार एवं विषय-वासनाओं के अड्डे बन गये जिससे बौद्ध धर्म को बड़ा आघात पहुँचा।

(5) अनैतिक परम्पराओं का समावेश-

बौद्ध धर्म की कतिपय शाखाओं में दूषित परम्पराओं को स्थान मिला । वज्रयान सम्प्रदाय के अनुयायी सुरा, सुन्दरी, हठयोग तथा तन्त्र-मन्त्र को प्रमुख स्थान देने लगे। इस प्रकार अनैतिकता के प्रवेश से बौद्ध धर्म की जड़ें खोखली हो गईं।

(6) ब्राह्मण धर्म में समन्वय की शक्ति –

ब्राह्मण धर्म ने बौद्ध धर्म के उच्च सिद्धान्तों को अपना लिया तथा भगवान बुद्ध को ईश्वर का अवतार मान लिया गया। इससे बौद्ध धर्म के प्रति लोगों का आकर्षण समाप्त होता गया और ब्राह्मण धर्म के अनुयायियों की संख्या में वृद्धि होती गई।

प्रभावशाली धर्माचार्यों व दार्शनों का अभाव-पाचवीं शताब्दी के पश्चात् इस धर्म में प्रभावशाली धर्माचार्यों व महान् दार्शनिकों का आविर्भाव नहीं हुआ जो इस धर्म में नवजीवन का संचार करते। फलतः उसमें व्याप्त दोषों एवं अनैतिकता का उन्मूलन न हो सका जिससे इस धर्म को बड़ा धक्का पहुँचा।

(8) आन्तरिक मतभेद एवं सम्प्रदायों का जन्म-

इस धर्म के पतन का एक प्रमुख कारण यह भी था कि बौद्ध धर्म विभिन्न सम्प्रदायों एवं वर्गों में बँट गया। इन सम्प्रदायों में हीनयान, महायान एवं वज्रयान के नाम विशेष रूप से उल्लेखनीय हैं। सम्प्रदायों में विभक्त हो जाने के कारण इस धर्म को बहुत बड़ा धक्का पहुँचा।

9) राजाओं द्वारा बहिष्कार-

महत्वाकांक्षी एवं साम्राज्यवादी सम्राटों ने महात्मा बुद्ध के अहिंसा के सिद्धातों का बहिष्कार कर दिया और ब्राह्मण धर्म का आलिंगन किया जिसमें बलि, अश्वमेध यज्ञ आदि की व्यवस्था थी।

(10) मुसलमानों का आक्रमण-

मुसलमानों के आक्रमण भी बौद्ध धर्म के पतन में सहायक सिद्ध हुए। उन्होंने बौद्धों के विहारों, स्तूपों व मन्दिरों को नष्ट कर दिया और बौद्ध मतावलम्बियों को इस्लाम धर्म स्वीकार करने के लिए बाध्य किया। मठों में विपुल धनराशि उपलब्ध थी जिसे पाने के लिए बौद्ध मठों को नष्ट किया गया।

(11) हूणों का आक्रमण-

हूणों के आक्रमण से बौद्ध धर्म को गहरा धक्का लगा। इन्होंने बौद्धों के स्मारकों को नष्ट कर दिया और इस धर्म को पतन की ओर उन्मुख कर दिया।

 

 

 

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