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उदाहरण सहित दृष्टान्त कौशल | Skill of Illustrations With Examples in Hindi

इसमें उदाहरण सहित दृष्टान्त कौशल, उदाहरण सहित दृष्टान्त कौशल क्या है, Skill of Illustrations in Hindi, उदाहरण सहित दृष्टान्तों की उपयोगिता, उदाहरणों के प्रकार, उदाहरण प्रस्तुत करने की विधियाँ, दृष्टान्त कौशल हेतु सूक्ष्म पाठयोजना,मौखिक अथवा वाचिक उदाहरण ,प्रदर्शनात्मक उदाहरण आदि का अध्ययन करेगें।

 

उदाहरण सहित दृष्टान्त कौशल (Skill of Illustrations )

शिक्षण प्रक्रिया में उदाहरण सहित दृष्टान्त प्रस्तुत करने का कौशल एक महत्त्वपूर्ण काशल है। इस कौशल के माध्यम से शिक्षक पाठ को सरल,रुचिकर तथा सुग्राह्य बनाता है। दृष्टान्तों के माध्यम से अध्यापक अशान्त, जटिल तथा अमूर्त विषय-वस्तु को ज्ञात, सरल तथा मूर्त की ओर ले जाता है। किसी भी सूक्ष्म विषय को समझना अत्यधिक कठिन कार्य है, अतः उदाहरणों के माध्यम से सूक्ष्म विचार को स्थूलता प्रदान की जाती है, इससे किसी भी विषय के सम्प्रत्यय एवं सिद्धान्त का स्पष्टीकरण होता है । इस तरह यह मन्दबुद्धि छात्रों के लिए अधिक उपयोगी हो जाता है, किन्तु प्रतिभा सम्पन्न छात्रों के लिए भी इसकी उपयोगिता कम नहीं है। लेण्डन ने उदाहरण का अर्थ स्पष्ट करते हुए कहा, “उदाहरणों में न केवल स्पष्ट करने की क्षमता होती है अपितु यह ज्ञान को स्थायी भाव प्रदान करने में भी सहायक है।”

 

उदाहरण सहित दृष्टान्तों की उपयोगिता :

1. विषयवस्तु को सुग्राह्य, रुचिकर तथा आकर्षक बनाने में सहायता प्रदान करते हैं।

2. छात्रों की कल्पना शक्ति को प्रेरित करते हैं जिससे पाठ्यवस्तु अपने सम्पूर्ण विस्तार में हृदयंगम हो जाती है।

3. उत्सूकता के जागरण द्वारा पाठयवस्त को रोचक एवं आकर्षक बनाकर उसमें छात्रों के ध्यान को स्थिर रखते हैं।

4. इसमें शिक्षण- सूत्रों का अनुसरण किया जाता है, अत: यह अधिक मनोवैज्ञानिक है ।

5. अधिकाधिक ज्ञानेन्द्रियों के सहयोग से छात्र पाठ को दृढता से ग्रहण कर लेता है।

6. कक्षा में मनोरंजक वातावरण उत्पन्न करने में सहायक होते हैं तथा छात्रों की थकान को दूर कर उनमें ज्ञान ग्रहण के प्रति एक नया उत्साह जागृत करते हैं।

7. छात्रों में निरीक्षण, परीक्षण, तुलना और निर्णय की क्षमता का विकास होता है ।

8. पाठ में आये जटिल तथ्यों अथवा कठिन शब्दों को उदाहरणों द्वारा सरलतम ढंग से स्पष्ट किया जा सकता है।

9. उदाहरण शिक्षक के समय व शक्ति को बचाते हैं, क्योंकि इनके प्रयोग से अध्यापक को विस्तृत व्याख्या नहीं करनी पड़ती।

10. ये छात्रों के अनुभवों को विकसित करने में सहायक होते हैं।

11. ये ज्ञान के क्षेत्र को विस्तृत करते हैं, क्योंकि इनमें अनेक प्रकार की वस्तुएँ देखने को मिलती हैं अथवा विभिन्न रोचक अनुभव सुनने को मिलते हैं।

12. छात्र पाठ के प्रति एकाग्रचित्त हो जाते हैं।

13. छात्रों द्वारा प्राप्त ज्ञान में स्थायित्व आता है।

 

उदाहरणों के प्रकार :

वैसे शिक्षक शिक्षण करते समय अनेकानेक विधियों तथा प्रविधियों का प्रयोग करते हैं, किन्तु इनके प्रयोग को सार्थक बनाने में उदाहरणों का अपना विशिष्ट स्थान है । शिक्षण में प्रयुक्त किये जाने वाले उदाहरणों को मुख्यतः दो भागों में बाँटा जा सकता है :

1. मौखिक अथवा वाचिक उदाहरण :

इस प्रकार के उदाहरणों में मौखिक अभिव्यक्ति के द्वारा शिक्षक विषय को समझाने का प्रयल करता है। प्रायः ऐसे भाव व विषय, जिन्हें स्थूल रूप में दिखाकर स्पष्ट नहीं किया जा सकता, वहाँ मौखिक अथवा वाचिक उदाहरण ही शिक्षक को विषय स्पष्ट करने में सहयोग देते हैं, जैसे-

प्रासंगिक दृष्टान्त- हिन्दी शिक्षण करते समय ‘घर का भेदी लंका ढाये’ इस पंक्ति का अर्थ स्पष्ट करने हेतु रावण के भाई विभीषण की राम से मित्रता की अन्तर्कथा सुनाकर प्रासंगिक घटना के आधार पर इसे समझाया जा सकता है।

तुलनात्मक दृष्टान्त- इस प्रकार के दृष्टान्तों में भी अनेक तरीके अपनाये जाते हैं, जैसे समान भाव द्वारा, विषम भाव द्वारा, पर्यायवाची शब्द, विलोम शब्द आदि । अम्बर का अर्थ स्पष्ट करने के लिए नभ, व्योम, गगन आसमान, आकाश आदि पर्यायवाची प्रस्तुत किये जा सकते हैं। इसी प्रकार भूगोल शिक्षण करते समय पृथ्वी की दैनिक गति की समता लटू के घूमने से की जा सकती है।

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रोचक दृष्टान्त- विषय को स्पष्ट करने हेतु रोचक दृष्टान्तों; जैसे, उदाहरण, कहानी,चुटकले आदि के माध्यम से बालकों को भावात्मक विषयों को सुविधापूर्वक स्पष्ट किया जा सकता है, जैसे, गुरु-दक्षिणा के विषय में पढ़ाते समय एकलव्य द्वारा गुरु द्रोणाचार्य को किस प्रकार गुरु-दक्षिणा दी गई: यह उदाहरण प्रस्तुत किया जा सकता है।

 

मौखिक अथवा वाचिक उदाहरणों का प्रयोग करते समय ध्यान रखने योग्य बिन्दुः

1. उदाहरण पढ़ाये जाने वाले विषय से सम्बद्ध हो,

2. छात्रों के मानसिक स्तर के अनुकूल हो,

3. अध्यापक उदाहरणों का प्रस्तुतिकरण प्रभावशाली ढंग से करें,

4. उदाहरणों में मनोरंजकता का पुट भी हो,

5. उदाहरण सरल भाषा में हों,

6. उदाहरणों का प्रयोग यथास्थान किया जाये,

7. ये विद्यार्थियों के जीवन से जुड़े हों,

8. उदाहरण सत्य व उचित होने चाहिएं,

9. एक वस्तु के लिए जहाँ तक हो सके कई प्रकार के उदाहरण दिये जाएं जिससे वे विविध प्रकार की कल्पना तथा स्मृति वाले छात्रों के लिए भी उपयोगी हो सके

10. साधारणतया व्यक्तिगत उदाहरण नहीं दिये जाने चाहिएँ। अनिवार्य होने पर उसे तृतीय पुरुष की भाषा में बदल देना उचित होता है

11. अगर किसी स्थल पर कहानी का प्रयोग किया जाना है तो इस बात का विशेष ध्यान रखना चाहिए कि कहानी बहुत लम्बी न हो तथा पाठ के विकास में उसका निश्चित महत्त्व हो।

2. प्रदर्शनात्मक उदाहरण :

प्रदर्शनात्मक उदाहरणों के अन्तर्गत ऐसे उदाहरण लिये जाते हैं, जिनके लिए प्रत्यक्ष वस्तु छात्रों के समक्ष प्रस्तुत की जाती है। इन्हें भी मुख्य रूप से दो भागों में बांटा जा सकता है।

(अ) प्रथमवर्ग- इसमें वे उदाहरण रखे जा सकते हैं जिन्हें कक्षा में लाकर दिखाया जा सकता है, जैसे, मूल वस्तु, चित्र, मानचित्र, रेखाचित्र, प्रतिकृति आदि।

(ब) द्वितीय वर्ग-इसमें उन उदाहरणों को लिया जा सकता है, जिनमें छात्रों को उन विशेष स्थलों पर ले जाकर उनका परिचय दिया जाये जैसे, प्राकृतिक दृश्य, ऐतिहासिक स्थल, संग्रहालय, औद्योगिक संस्थान आदि । यहाँ दोनों वर्गों का एक-एक उदाहरण प्रस्तुत किया जा रहा है :

 

प्रथम वर्ग:

चित्र द्वारा- ‘ह्रदय की रक्त शुद्धिकरण में भूमिका’ इस विषय को पढ़ाते समय निम्नलिखित चित्र प्रस्तुत किया जाना चाहिए :

1. अशुद्ध रक्त निम्न व उच्च महाशिरा के द्वारा दायें अलिन्द में और दायें अलिन्द से दायें निलय में आता है।

दृष्टान्त कौशल

2. दायें निलय से अशुद्ध रक्त फुफ्फुसीय धमनी में जाता है जिसके दो भाग हो जाते है। एक-एक धमनी एक-एक फेफड़े में चली जाती है और कोशिकाओं में बंट जाती है। रक्त की लाल कणिकाओं का हीमोग्लोबिन वायु कोष्टिकाओं की पतली दीवारों में से ऑक्सीजन को अपने में खींच लेता है और कार्बन-डाई-ऑक्साइड को अपने में से। निकालकर वायु कोष्ठिकाओं में भेज देता है। ऑक्सीजन की प्राप्ति के फलस्वरूप रक्त चमकीला, लाल व शुद्ध हो जाता है।

 

द्वितीय वर्ग :

ऐतिहासिक स्थलों का भ्रमण- जैसे ताजमहल के विषय में पढ़ाने के बाद उसकी विस्तृत जानकारी प्रदान करने हेतु ऐतिहासिक इमारत के दर्शनार्थ शैक्षिक भ्रमण के लिए छात्रों को ले। जाया जा सकता है जिससे छात्र उसकी स्थिति तथा कला को प्रत्यक्ष रूप में देख सके।

प्रदर्शनात्मक उदाहरणों के प्रयोग करते समय ध्यान देने योग्य बिन्दु :

प्रथम वर्ग की दृष्टि से:

1. उदाहरणों का प्रदर्शन कक्षा के मध्यवर्ती स्थान से होना चाहिए जिससे सभी छात्र सुविधापूर्वक देख सकें,

2. प्रदर्शन बहुत त्वरित गति में न किया जाए,

3. उदाहरण ऐसे हों जिनमें अनेक इन्द्रियों का प्रयोग हो,

4. प्रयोजन की दृष्टि से आवश्यकता समाप्त होते ही उन्हें हटा दिया जाए,

5. बिना निश्चित प्रयोजन के उपकरणों का प्रयोग न किया जाए,

6. उदाहरण की व्याख्या छात्रों के सहयोग से की जाए,

7. यदि कक्षा के सामने उदाहरण बनाकर दिखाना हो तो उसका पहले से ही पर्याप्त अभ्यास कर लेना चाहिए,

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8. कक्षा में प्रयुक्त किया जाने वाला उपकरण पूर्व में भली-भांति जाँच लिया जाना चाहिए।

 

द्वितीय वर्ग की दृष्टि से :

1. छात्रों को उन्हीं वस्तुओं को दिखाना चाहिए जिनकी चर्चा कक्षा में हो चुकी हो,

2. जिन्हें देखने की जिज्ञासा हो,

3. जिनको समझने की योग्यता हो,

4. बीच-बीच में महत्त्वपूर्ण बिन्दुओं को स्पष्ट किया जाए,

5. छात्रों को मुख्य बिन्दुओं को डायरी में लिखने के लिए कहा जाए

6. भ्रमण में शिक्षक का व्यवहार छात्रों के साथ मित्रवत हो,

7. भ्रमण के समय प्राप्त कुछ ऐसी वस्तुएं जैसे विशेष प्रकार की मिट्टी, वनस्पति आदि को  छात्रों को संग्रहीत करने हेतु प्रेरित किया जाए।

8. महत्त्वपूर्ण तथा स्मरणीय स्थलों का छायांकन भी करवाया जा सकता है,

9. भ्रमण से लौटने के बाद छात्रों को यात्रा से सम्बन्धित अनुभवों को लिखने के लिए कहा जाए। इसे निबन्ध लेखन, कविता लेखन, कहानी लेखन आदि प्रतियोगिताओं के रूप में भी विद्यालय में आयोजित किया जा सकता है।

उदाहरण प्रस्तुत करने की विधियाँ :

किसी भी पाठ में उदाहरण कब व कैसे प्रस्तुत किये जाएँ यह एक विचारणीय बिन्दु है। इन्हें मुख्य रूप से दो रूपों में प्रस्तुत किया जा सकता है ।

 

1. आगमन विधि (Inductive Method) (उदाहरणों से नियम की ओर) :

इस विधि में सर्वप्रथम विद्यार्थियों के समक्ष विषय स्पष्ट करने के लिए उदाहरणों को प्रस्तत किया जाता है तथा विद्यार्थी स्वयं ही नियम को स्पष्ट कर बता देता है। इस प्रकार इस में यह बहुत उपयोगी विधि है। उपागम में मौलिक चिन्तन एवं मनन पर बल दिया जाता है। किसी भी भाषा के व्याकरण शिक्षण में यह बहुत उपयोगी विधि हैं।

 

2. निगमन विधि (Deductive Method) (नियम से उदाहरणों की ओर):

इस विधि में सर्वप्रथम नियम विद्यार्थियों को समझा दिये जाते हैं तथा बाद में इस नियम को स्पष्ट करने हेतु उदाहरणों का प्रयोग किया जाता है। इस विधि का प्रयोग विज्ञान, गणित, सामाजिक विज्ञान तथा भाषा शिक्षण में प्रायः किया जाता है। इसमें अध्यापक को अधिक मेहनत नहीं करनी पड़ती तथा पाठयक्रम को शीघता से पूरा किया जा सकता है, परन्तु इसमें छात्र को सोचने एवं तर्क करने का अवसर कम मिलता है। वह केवल अनुसरण करता है, अतः मौलिक चिन्तन की क्षमता का विकास नहीं होता। विषय की प्रकृति को देखते हुए इन दोनों विधियों का प्रयोग शिक्षण में किया जाता है। कई बार एक साथ दोनों विधियों का प्रयोग भी किया जाता। है, इसे ‘आगमन-निगमन विधि’ कहते हैं।

 

दृष्टान्त कौशल हेतु सूक्ष्म पाठयोजना :

विषय : हिन्दी

कक्षा : सातवीं

प्रकरण : स्वर सन्धि (गुण सन्धि)

समय : 10 मिनट

(क्रमश: कतिपय वाक्यों को प्रस्तुत करता हुआ छात्राध्यापक समान उदाहरणों के माध्यम से गुण सन्धि के नियमों को समझाने का प्रयत्न करेगा)

1. वाक्य : रमेश प्रात:काल घूमने जाता है।

शिक्षक-प्रातः काल कौन घूमने जाता है ?

छात्र-रमेश शिक्षक-रमेश शब्द का सन्धि-विच्छेद करो।

छात्र- रमा+ईश

शिक्षक-इस सन्धि में किन वर्गों का मेल हुआ है ?

छात्र- आ+ई

शिक्षक- इन दोनों वर्गों के मेल से कौन सा वर्ण बन गया ?

छात्र- ए

 

2. वाक्य : सज्जनों का जीवन परोपकार के लिए होता है।

शिक्षक- सज्जनों का जीवन किसके लिए होता है?

छात्र- परोपकार शिक्षक-इस सन्धि में किस-किस वर्ण का मेल हुआ है ?

छात्र-आ+उ

शिक्षक-इन दोनों स्वरों के मेल से कौनसा स्वर बनेगा?

छात्र-ओ

 

3. वाक्य : महर्षि तपोवन में रहते हैं।

शिक्षक-तपोवन में कौन रहते हैं ?

छात्र- महर्षि

शिक्षक-‘महर्षि’ शब्द का सन्धि-विच्छेद करो।

छात्र- महा + ऋषि

शिक्षक- इन दोनों शब्दों में किस-किस वर्ण का मेल हुआ है ?

छात्र- आ + ऋ

शिक्षक-इन दोनों स्वरों के मिलने पर कौनसा स्वर बनेगा ?

छात्र- अर् उपर्युक्त उदाहरणों के आधार पर शिक्षक नियम प्रस्तुत करता है।

 

नियम:

‘यदि अ या आ के आगे इ या ई, उ याअथवा ऋ आये, तब उन दोनों स्वरों के मेल में क्रमशः ए, ओ, अर् हो जाता है, इसे गुण सन्धि कहते हैं।

उदाहरण सहित दृष्टान्त कौशल की निरीक्षण सूची

दृष्टान्त कौशल

 

 

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