विद्यालय में वित्तीय संसाधनों का प्रबन्धन

विद्यालय में वित्तीय संसाधनों का प्रबन्धन | शैक्षिक प्रशासक के गुण व कार्य | Administrators in Hindi

विद्यालय में वित्तीय संसाधनों का प्रबन्धन (MANAGING FINANCIAL RESOURCES IN SCHOOLS)

किसी संस्था अथवा संगठन के संचालन के लिए वित्तीय स्रोतों की आवश्यकता होती है। तभी कोई संस्था समुचित रूप से संचालित की जा सकती है। इसी प्रकार शिक्षा के लिए विद्यालय में वित्तीय संसाधनों का प्रबन्धन संचालन हेतु किया जाता है। यदि व्यापक रूप से ध्यान दिया जाये तो शिक्षा संस्थाओं के लिए वित्तीय प्रबन्धन की आवश्यकता के प्रमुख चार क्षेत्र है-

  1. सामान्य शिक्षा सेवा के संचालन हेतु
  2. शिक्षा सुविधाओं के विस्तार हेतु,
  3. शिक्षा सेवाओं के विस्तार के लिए, तथा
  4. शिक्षा अवसरों की असमानताओं को दूर करने के लिए।

 

 

शिक्षा के वित्तीय प्रबन्धन के स्रोत तथा साधन (Financial Resources and Material of Education)

शिक्षा के वित्तीय प्रबन्धन में निम्नलिखित स्रोतों तथा साधनों का उपयोग किया जाता है-

1. भूमि अनुदान तथा अन्य आय द्वारा,

2. समाज द्वारा अनुदान,

3. छात्रों की फीस द्वारा,

4. राज्य कोष तथा सहायता अथवा राज्य के अनुदान, तथा।

5. अन्य समाज सेवी संस्थाओं द्वारा वित्तीय सहायता जैसे-विश्व बैंक, यूनेस्को आदि।

 

 

भारत में विद्यालयों के प्रकार (Types of Schools in  India)

 शिक्षा के वित्तीय प्रबन्धन के आधार पर देश के विद्यालयों का निम्न चार वर्षों में बाँट सकते-

  1. राजकीय तथा केन्द्रीय विद्यालय,
  2. अनुदान प्राप्त विद्यालय,
  3. अनुदान रहित गैर सरकारी विद्यालय जो किसी परीक्षा लेने वाले संगठन से मान्यता प्राप्त होते हैं,
  4. निजी व्यक्तियों के समूह द्वारा स्थापित विद्यालय।

 

 

विद्यालय का बजट (Budget of School)

विद्यालय का बजट बनाने में, आमतौर से व्यय सम्बन्धी वर्गीकरण निम्न प्रकार होता है-

1. वेतन एवं भत्ते-शिक्षकों, विभिन्न कर्मचारियों, प्रधानाध्यापक, पुस्तकालय, अध्यक्ष इत्यादि,

2. पुस्तकालय,

3. दृश्य-श्रव्य सामग्री,

4. उपकरण तथा फर्नीचर,

5. स्वारथ्य सेवाएँ,

6. विद्यालय की बस अथवा अन्य आवागमन के साधन,

7. विद्यालय भवन,

8. बिजली तथा पानी के बिल,

9. खेल के मैदानों का रख-रखाव,

10, खेलकूद के सामान का क्रय एवं रखरखाव,

11. विद्यालय के सामान तथा भवन इत्यादि का बीमा, किराया तथा रख-रखाव,

12. उधार के लिए धन पर ब्याज,

13. मध्यान्ह भोजन,

14. सहगामी क्रियाएँ,

15. परीक्षा व्यय,

16. छात्रवृत्तियाँ,

17. विविध व्यय तथा अन्य निर्धारित मद।

 

 

विद्यालय बजट का प्रबन्धन (Management of the Budget of the School)

बजट के स्वीकरण के पश्चात् यह विद्यालय को वापस भेज दिया जाता है और स्वीकृत बजट के अनसार ही विभिन्न मदों में विद्यालय व्यय करते हैं। विद्यालय यदि बड़ा होता है तब लेखा अधिकारी अथवा लेखा लिपिक की सहायता से कार्य करता है। व्यय राज्य सरकार द्वारा निर्धारित वित्तीय नियमों के अनुसार ही करना पड़ता है। इस सम्बन्ध में सरकारी या गैरसरकारी विद्यालयों को, जिन्हें भी सरकार अनुदान देती है, कोई छूट नहीं है। इसलिए प्रधानाध्यापक के लिए अत्यन्त आवश्यक है कि वह लेखांकन के नियमों को बहुत अच्छी तरह जानता हो।

 

 

 

शैक्षिक प्रशासक(EDUCATIONAL ADMINISTRATOR)

पिछले कुछ वर्षों से प्रशासन को अच्छे शासन, सत्ता और नियन्त्रण के प्रयोग, दूसरों से कार्य लेने और व्यवस्था को बनाये रखने के समानान्तर माना जाता रहा है। जीवन की जटिलताओं में वृद्धि तथा जनतान्त्रिक दर्शन में लोगों के विश्वास के साथ ही आज का प्रशासक पुरानी तकनीक को अपर्याप्त और गैर उत्पादक पाता है। नई चुनौतियों का सामना करने हेतु आवश्यक नवीन प्रकार का नेतृत्व प्रदान करने के लिए नये प्रशासक को अपने उत्तरदायित्वों एवं कार्यों को स्पष्ट रूप से समझना चाहिए तथा अपने सहयोगियों में एवं स्वयं में आवश्यक गुणों और योग्यताओं का विकास करना चाहिए।

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प्रशासक के कार्य (Duties of the Administrators)

विभिन्न आधारों के अनुसार प्रशासक के कार्य भी भिन्न भिन्न होते हैं-

 

1. उद्देश्यीकरण के लिए-

शिक्षा के विभिन्न उद्देश्यों की प्राप्ति के लिए एक अच्छे प्रशासक के अग्रांकित कार्य हैं-

  1. शिक्षा के उद्देश्यों एवं लक्ष्यों को परिभाषित करना तथा इसी आधार पर प्रशासन के उद्देश्य निर्धारित करना।
  2. बालकों को सर्वाेत्तम उपलब्ध कराने के लिए वांछित लक्ष्यों एवं उद्देश्यों से शैक्षिक कर्मचारियों को अवगत कराना।
  3. यह प्रयास करना कि शक्षिक कार्यकर्ता शिक्षा के सामान्य एवं विशिष्ट उद्देश्यों को पहचाने और स्वीकार करें तथा समान ढंग से उसकी व्याख्या करें।
  4. उद्देश्यों की प्राप्ति के लिए उपलब्ध साधनों की खोज करना।
  5. सभी कार्यकताओं की सहभागिता को प्राप्त करना तथा उसकी भावनाओं तथा कार्यों को समन्वित करना।

 

2. नियोजन के लिए-

सुनियोजित नियोजन के लिए एक अच्छे प्रशासक को निम्न कार्य करने चाहिए-

  1. अनेक विकल्पों में से सर्वोत्तम का चयन करना एवं कार्यों की रूपरेखा पहले से निर्धारित करना।
  2. साधनों एवं साध्यों को समायोजित करना तथा कार्यों के सम्भावित परिणामों को जानना।
  3. यह स्पष्ट करना कि क्या प्राप्त किया जाना है एवं कैसे?
  4. समाज के मान्यता तन्त्र को प्राप्त करने एवं उसमें सुधार लाने के लिए योजना बनाना।
  5. उपलब्ध संसाधनों के सर्वोत्तम उपयोग के लिए योजना बनाना।
  6. योजनाओं को लचीला बनाना चाहिए जिससे जीवन की सभी क्रियाओं में तीव्र गति से आगे तक होने वाले परिवर्तनों के साथ तेजी से समायोजन हो सके।
  7. योजनाओं को व्यापक बनाना।
  8. योजनाओं का समय-समय पर पुनर्निरीक्षण करना।
  9. शैक्षिक योजनाओं को विस्तृत राष्ट्रीय योजनाओं के अनुरूप बनाना।
  10. योजनाओं का आधार अनुसंधानों को बनाना।
  11. योजनाओं को वास्तविक और व्यावहारिक बनाना।
  12. विद्वानों की सेवाओं का उपयोग करना।
  13. यह प्रयास करना कि शैक्षिक कार्यकर्ता योजनाओं को समझ सकें और उनकी प्रशंसा कर सके।

 

3. व्यवस्थापन के लिए-

सुनियोजित व्यवस्थापन के लिए एक अच्छे प्रशासक के निम्न कार्य होते हैं-

  1. संगठन की संरचना, परिस्थितियों तथा सम्बन्धों की रूपरेखा को निर्धारित करना।
  2. कानून और परम्परा के आधार पर कर्मचारियों की स्थिति की परिभाषित करना।
  3. कर्तव्यों एवं उत्तरदायित्वों का वितरण करना।
  4. कार्य, संप्रेषण, प्रक्रिया और मूल्यांकन द्वारा उद्देश्यों की उपलब्धि की ओर समूह के व्यवहार को सुनिश्चित करना।
  5. मधुर सम्बन्धों प्रोत्साहन, स्व-अभिव्यक्ति आर स्व-निर्देश द्वारा समूह की सुरक्षा और स्थायीपन को सुनिश्चित करना।
  6. सभी कर्मचारियों के स्थायी सहयोग को प्राप्त करना।
  7. व्यक्तिगत सम्बन्ध क्रियाशील भागीदारी और व्यक्ति की उत्तरदायित्व में हिस्सेदारी द्वारा संगठन को जनतान्त्रिक बनाना।
  8. समूह अन्तर्किया और समूह का ध्यान रखने द्वारा व्यक्तिगत और समूह सन्तुष्टि को सुनिश्चित करना।
  9. उद्देश्यों की प्राप्ति के लिए प्रभावशीलता और दक्षता का उन्नयन करना।
  10. कर्मचारियों के प्रति मित्रता, सम्मान और विश्वास को बनाये रखना।

 

4. परिचालन के लिए-

  1. कर्मचारियों को उनके कार्यों के लिए निर्देशित करना।
  2. क्रियाओं एवं उद्देश्यों में सम्बन्ध को ज्ञात करना।
  3. कर्मचारियों की शक्ति एवं प्रयासों को निर्देशित करना।
  4. प्रयासों की दिशा को शासित करने वाले सभी कारकों जैसे परिस्थिति, उपकरण, वित्त, ज्ञान और कौशल को समन्वित करना।
  5. समय, शक्ति और धन के संभवतम कम व्यय द्वारा संभवतम सर्वोत्तम कार्य को पूरा कराना।
  6. प्रत्येक कर्मचारी के ज्ञान, व्यक्तित्व और गरिमा के लिए सम्मान रखना चाहिए और व्यक्तिगत विभिन्नताओं के लिए अनुमति देना।
  7. सभी भौतिक, सामाजिक और आर्थिक शक्तियों का समायोजन करना।
  8. पाठ्यचर्चा, विधियों, नियमों, परिनियमों, वातावरण और परिवेश को समन्वित करना।
  9. समस्याओं के समाधान के लिए सामूहिक विचार-विमर्श करना।
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5. मूल्यांकन के लिए-

  1. विद्यालय की विभिन्न गतिविधियों का मूल्यांकन करना।
  2. कमजोर बिन्दुओं को ढूंढकर उनको दूर करना।
  3. मूल्यांकन कार्य द्वारा कर्मचारियों में सुधार लाना, मनोवैज्ञानिक सन्तुष्टि लाना और मानव सम्बन्धों में सुधार लाना।
  4. कर्मचारियों को स्वमूल्यांकन और आत्म सुधार हेतु प्रोत्साहित करना।
  5. मूल्यांकन को निरन्तर, व्यवस्थित, वस्तुनिष्ठ और पूर्ण बनाना।

 

 

 

प्रशासक के गुण (Qualities of the Administrator)

एक कुशल प्रशासक में विभिन्न गुणों का समावेश होना चाहिए-

1. शारीरिक गुण (Physical Qualities)-

  1. क्रियाशील, चुस्त एवं सुदृढ़,
  2. देखने में आकर्षक,
  3. अच्छा शारीरिक व्यक्तित्व,
  4. सुरुचिपूर्ण वेशभूषा,
  5. स्पष्ट एवं गम्भीर आवाज,
  6. स्वाभाविक एवं उत्तम शिष्टाचार,
  7. नियमित आदतें,
  8. स्वस्थ एवं फुर्तीला, तथा
  9. गम्भीर व्यवहार एवं जीवन शैली।

 

2. बौद्धिक गुण (Intellectual Qualities)-

  1. सहकर्मियों के समक्ष योजनाओं की व्याख्या करने की योग्यता,
  2. अनुसन्धान की अभिवृत्ति.
  3. उपलब्धि की क्षमता,
  4. अपनी भूमिका की जानकारी एवं विषयों का वृहद ज्ञान,
  5. स्पष्ट अभिव्यक्त्ति एवं व्यक्तिगत मतभेदों की सूझ,
  6. विकासशील मस्तिष्क,
  7. व्यावहारिक निष्पादन का कौशल, व्यवस्थित एवं नियोजित कार्य की क्षमता,
  8. अत्यधिक बुद्धिमान,
  9. सूत्रपात की योग्यता,
  10. बालकों द्वारा उनकी अभिवृद्धि से सम्बन्धित ज्ञान,
  11. सामाजिक समस्याओं एव मानवीय पक्षों का जाना,
  12. आधुनिकतम शैक्षिक सिद्धांतों और व्यवहार में दखल,
  13. संप्रेषण क्षमता।

 

3. संवेगात्मक गुण (Emotional Qualities)-

  1. संवेगात्मक स्थिरता,
  2. चिन्ता, तनाव एवं द्वन्द्व से मुक्त,
  3. प्रसन्नचित्त,
  4. दूसरों के संवेगों एवं भावनाओं को समझने की क्षमता,
  5. कठिनाइयों और निराशाओं में न घबराने वाला,
  6. आशावादी, प्रेरणा से ओत-प्रोत।

 

4. व्यक्तिगत गुण (Personal Qualities)

  1. व्यवहारकुशल, सरल, शक्तिपूर्ण, निष्पक्ष एवं समर्पित,
  2. रचनात्मक, साहसी एवं आत्मविश्वास से परिपूर्ण,
  3. कार्य के साथ तादात्मीकरण करने वाला,
  4. प्रोत्साहक एवं प्रेरणादायक एवं दूसरों के व्यक्तित्व का सम्मान करने वाला,
  5. अनुभवी एवं समन्वित व्यक्तित्व,
  6. अहंकार से मुक्त,
  7. प्रगतिशील,
  8. विश्वसनीय,
  9. दूसरों की कमियों के प्रति सहिष्णु,
  10. नवीन प्रवृत्तियों को अपनाने वाला।

 

5. सामाजिक गुण (Social Qualities)-

  1. सामाजिक प्रगति के लिए समर्पित हो,
  2. मानवीय सम्बन्धों में विश्वास रखने वाला,
  3. सभी को सहयोग देने वाला,
  4. सामाजिक कार्यों में रुचि एवं समाज सेवा की भावना,
  5. सामाजिक साध्यों के लिए कार्य,
  6. जनतान्त्रिक नेतृत्व के गुण,
  7. दूसरों की क्षमताओं और गुणों को समझने वाला,
  8. दूसरों के दृष्टिकोण के प्रति सम्मान,
  9. सामाजिक साध्यों के लिए कार्य,
  10. सहानुभूति से ओत-प्रोत।

 

6. नैतिक गुण (Moral Qualities)-

  1. सही गलत में भेद करने की योग्यता,
  2. जनतान्त्रिक मान्यताओं में विश्वास,
  3. उच्च चरित्र,
  4. श्रेष्ठतम आदर्श,
  5. त्रुटियों की स्वीकारोक्ति,
  6. स्व-नियंत्रण,
  7. आत्म-सम्मान,
  8. अन्तिम मान्यताओं का ज्ञान।

 

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