इसमें प्रदर्शन कौशल क्या है ? Skill of Demonstration in Hindi, प्रदर्शन कौशल की उपयोगिता (Utility of Demonstration Skill), प्रदर्शन करते समय ध्यातव्य बिन्दु, प्रदर्शन हेतु सामग्री का चयन (Selection of Material for Demonstration) , प्रदर्शन कौशल हेतु सूक्ष्म पाठयोजना आदि को जानेगें।
प्रदर्शन कौशल (Skill of Demonstration)
प्रदर्शन कौशल शिक्षण में एक महत्वपूर्ण कौशल है। प्रदर्शन का अर्थ है-‘करके दिखाना’। शिक्षक अनेक तथ्यों को पहले स्वयं करके छात्रों को दिखाता है। इससे छात्र किसी कार्य को सही रूप में करने की विधि सीखते हैं तथा उन्हें इस बात का भी ज्ञान होता है कि किसी कार्य के क्या परिणाम होते हैं ?
वेब्सटर की इन्टरनेशलन डिक्शनरी में प्रदर्शन की परिभाषा देते हुए कहा गया है, “किसी पदार्थ या उत्पादन के बारे में एक सार्वजनिक प्रदर्शन और उसके मुख्य-मुख्य गुणों, उपयोगिता, कार्यकुशलता आदि पर जोर देना ही प्रदर्शन है।” वैसे तो प्रदर्शन को उन विषयों के शिक्षण में बड़ा महत्त्व स्वीकार किया जाता रहा है जिनमें किसी। कौशल के विकास पर बल देने की प्रमुखता होती है, जैसे, विज्ञान विषय-रसायनशास्त्र, प्राणि-शास्त्र, भौतिकशास्त्र, संगीत, शास्त्रीय संगीत, वाद्य संगीत-गिटार, सितार, तबला, हारमोनियम, गृहविज्ञान, चिकित्साशास्त्र आदि, किन्तु आज शिक्षा के क्षेत्र में हुई वैज्ञानिक प्रगति ने यह सिद्ध कर दिया है कि शिक्षा के सभी क्षेत्रों में प्रदर्शन कौशल विकसित किया जाना अपेक्षित है जैसे हम भाषा शिक्षण की ही बात करें तो हिन्दी, संस्कृत, अंग्रेजी अथवा अन्य कोई भी क्षेत्रीय भाषा पढाते समय विभिन्न वर्गों के अलग-अलग उच्चारण स्थान हेतु बोलते समय जीभ की गतिशीलता आदि का प्रदर्शन किया जा सकता है, क्योंकि प्रदर्शन करते समय छात्र अधिक सचेत होता है तथा उसकी एक से अधिक ज्ञानेन्द्रिया भी सीखने में सहयोग देती हैं जिससे अधिगम अधिक स्थायी तथा तीव्र गति से होता है।
मेक्कल्सकी ने प्रदर्शन के महत्व को स्पष्ट करते हुए कहा है “सीखने वालों के देखे गये अनुभवों को सुने गये अनुभवों से सम्बन्धित करके अध्यापक शिक्षण को अर्थपूर्ण बना सकते हैं।” इस कौशल के अन्तर्गत शिक्षक कार्य का एक उदाहरण छात्रों के सम्मुख क्रियान्वित करके प्रस्तुत करता है और यह आशा करता है कि प्रयोगात्मक कार्य सम्पादन को देखकर वे भी इसी प्रकार कार्य सम्पादन करना सीख जायगे।
प्रदर्शन कौशल की उपयोगिता (Utility of Demonstration Skill) :
1. प्रदर्शन से व्यावहारिक अथवा प्रयोगात्मक शिक्षण सम्भव है।
2. इस कौशल से जानात्मक व मनोगत्यात्मक उद्देश्यों की प्राप्ति सम्भव है।
3. छात्र अवलोकन एवं निरीक्षण करना सीखते हैं।
4 करके सीखना (Learning by doing) इस सिद्धान्त के अनुसार विभिन्न उपकरणों का प्रयोग करना सीखते हैं।
5. सीखा हुआ ज्ञान स्थायी रहता है।
6. शिक्षण अधिक प्रभावी होता है।
7. इसमें शिक्षक तथा शिक्षार्थी दोनों सक्रिय रहते हैं।
8. यह विधि सामान्य छात्रों के लिए उपयोगी है।
9. प्रदर्शन करते समय परिचर्या के द्वारा छात्रों की कठिनाइयों का यथासमय निराकरण हो जाता है।
10. इससे छात्रों में जिज्ञासा उत्पन्न होती है।
11. यह छात्रों को प्रत्यक्ष अनुभव प्रदान करने में सहायक है।
12. प्रदर्शन में निष्कर्ष निकालने की विधि में स्थूल से सूक्ष्म की ओर’ सिद्धान्त का अनुसरण किया जाता है।
13. प्रदर्शन में परिणाम के तत्काल ज्ञान से छात्रों को प्रदान किये गये ज्ञान का पुनर्बलन होता है और उन्हें वैज्ञानिक सत्यों के अन्वेषण के लिए प्रेरित और प्रोत्साहित किया जा सकता है।
14. यह सामूहिक रूप से छात्रों को शिक्षा देने का एक सरल साधन है। यह सभी छात्रों के विचारों को लगभग एक ही दिशा में निर्देशित करता है तथा इससे समय की बचत भी होती है।
15. प्रदर्शन आर्थिक दृष्टि से उपयुक्त है। कुछ उपकरण बहुत महँगे होते हैं जिन्हें छात्र व्यक्तिगत रूप से नहीं खरीद सकते, अत: विद्यालय में प्रदर्शन से सभी छात्र लाभान्वित हो सकते हैं।
16. जिन प्रक्रियाओं को व्याख्या द्वारा स्पष्ट करना कठिन होता है, उन्हें प्रदर्शन द्वारा भली प्रकार समझाया जा सकता है।
17. प्रदर्शन द्वारा किसी वस्तु का निर्माण करने के लिए अथवा किसी प्रक्रिया को सम्पन्न करने के लिए वांछित मानक स्थापित हो जाता है।
प्रदर्शन करते समय ध्यातव्य बिन्दुः
1. प्रदर्शन कुशल शिक्षक द्वारा किया जाना चाहिए।
2. प्रदर्शन करते समय उन्हीं परिस्थितियों को स्वाभाविक रूप से बताया जाना चाहिए जिन परिस्थितियों में आगे छात्रों को कार्य करना है।
3. शिक्षा द्वारा प्रदर्शन से पूर्व आगे की जाने वाली गतिविधियों को पूर्व में क्रमबद्ध ढंग से नियोजित कर लेना चाहिए।
4. प्रदर्शन के लिए समय सीमा का निर्धारण कर लेना चाहिए। बहुत देर तक किया जाने वाला प्रदर्शन छात्रों के द्वारा ग्रहण नहीं किया जाता।
5. प्रदर्शन प्रारम्भ करने से पूर्व प्रयुक्त किये जाने वाले उपकरणों तथा सामान्य सिद्धान्तों का ज्ञान छात्रों को दे देना चाहिए तथा प्रदर्शन के अन्त में छात्रों से प्रश्न पूछे जाने चाहिएँ और छात्रों की शंकाओं का समाधान करना चाहिए।
6. प्रदर्शन के मध्य में महत्त्वपूर्ण बिन्दुओं को श्यामपट्ट पर लिखा जाना चाहिए।
7. प्रदर्शन करते समय छात्रों को सक्रिय रखने के लिए कुछ प्रायोगिक कार्य करवाये जाने चाहिएँ। यदि एक बार प्रयोग करने पर भी छात्र वांछित कौशल प्राप्त नहीं कर सके हैं तो उनसे दुबारा प्रयोग करवाया जाये।
8. प्रदर्शन-कक्ष में छात्रों की व्यवस्था समुचित हो, ताकि सभी छात्र प्रदर्शन को भली’भाँति देख सकें। इसलिए प्रदर्शन की मेज ऊँची हो तथा छात्रों के बैठने की व्यवस्था अर्द्ध-गोलाकार होनी चाहिए।
9. प्रदर्शनकर्ता (शिक्षक) का सन्तुलित व्यक्तित्व प्रदर्शन के लिए वरदान है। यदि वह तनाव-रहित होकर बाधाओं का सामना करता है तथा पर्याप्त साधन सम्पन्नता तथा लचीलापन लिए प्रदर्शन करता है तो छात्रों में अधिक आत्मविश्वास उत्पन्न हो सकता है।
10. शिक्षक के अच्छे प्रदर्शन हेतु पूर्व अभ्यास कर लेना चाहिए।
11. प्रदर्शन की गति बहुत तीव्र नहीं होनी चाहिए। कई बार शिक्षक प्रदर्शन करते समय सोचता है कि यह पुराना विषय है, क्योंकि शिक्षक उसका प्रदर्शन अलग-अलग सत्रों में कर चुका है, किन्तु उसे हमेशा याद रखना चाहिए कि यह उपस्थित छात्र-समूह इस प्रदर्शन को पहली बार देख रहा है।
12. प्रदर्शन को अनावश्यक रूप से जटिल नहीं बनाना चाहिएँ ।।
13. अपने प्रदर्शन की सफलता के मूल्यांकनार्थ छात्रों से बीच-बीच में प्रश्न पूछे जाने चाहिए।
प्रदर्शन हेतु सामग्री का चयन (Selection of Material for Demonstration) :
1. प्रदर्शन हेतु शिक्षण सामग्री का चयन छात्रों के मानसिक स्तर के अनकल होना चाहिये जो प्रेरणास्पद भी हो।
2. प्रदर्शित की जाने वाली वस्तु या प्रयोग का पाठय-वस्तु से सीधा सम्बन्ध होना चाहिए।
3. प्रदर्शित की जाने वाली सामग्री आसानी से प्राप्त होनी चाहिए।
4. अध्यापक को उस विशिष्ट सामग्री की पूर्ण जानकारी होनी चाहिए।
प्रदर्शन कौशल की सीमाएँ (Limitations of Demonstration Skill) :
1. प्रदर्शन छात्रों में अनुकरण करने की आदत का विकास करता है, परिणामतः यह कौशल छात्रों में मौलिक चिन्तन को उत्पन्न होने में अवरोध पैदा करता है।
2 पाठ प्रदर्शन की परिस्थितियाँ छात्रों द्वारा कार्य करने की परिस्थितियों से सर्वथा भिन्न होती हैं।
3. केवल प्रदर्शन से छात्रों में कुशलता का विकास सम्भव नहीं,छात्रों द्वारा भी प्रयोग करवाया जाना अपेक्षित है।
4. प्रायः समयाभाव के कारण प्रदर्शन इतनी शीघ्रता से किया जाता है कि उसके विभिन्न सोपानों को साधारण छात्र ग्रहण नहीं कर पाता।
5. जब किसी एक शिक्षण पाठ में बहुत से प्रदर्शन करने हों तो छात्रों के लिए अनेक मूलभूत सिद्धान्तों एवं वैज्ञानिक कौशलों को समझ पाना मुश्किल हो जाता है।
प्रदर्शन कौशल हेतु सूक्ष्म पाठयोजना
विषय : गृहविज्ञान
कक्षा : आठवीं
प्रकरण : टमाटर सूप परोसने की विभिन्न विधियाँ
समय : 10 मिनट
(छात्राध्यापिका तैयार टमाटर सप किस प्रकार परोसा जाये-इसकी विधियों का प्रदर्शन करेगी)
प्रदर्शन कौशल हेतु निरीक्षण सूची
प्रदर्शन कौशल हेतु मूल्यांकन सूची
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