अध्यापक शिक्षा के लिए शिक्षण प्रतिमान में हम लोग हिल्दा तबा का शिक्षण प्रतिमान,Taba’s Model of Teaching, हिल्दा तबा का पाठ्यक्रम प्रतिमान, Hilda Taba Curriculum Model आदि को समझने का प्रयास करेगें।
अध्यापक शिक्षा के लिए शिक्षण प्रतिमान (Teaching Models for Teacher Education)
हिल्दा तबा का शिक्षण प्रतिमान(Taba’s Model of Teaching)
इस प्रतिमान को आगमन प्रतिमान (An Inductive Model of Teaching) भी कहा जाता है जिसे जॉयस एवं वेल ने अपनी पुस्तक में सूचना प्रक्रिया प्रतिमानों के अन्तर्गत रखा है। इस शिक्षण प्रतिमान के प्रवर्तक हिल्दा तबा हैं जिन्होंने सेन्ट्रल कोस्टा विद्यालय में किये गये प्रयोगों के आधार पर इसका विकास किया है । इसका विकास अध्यापक शिक्षा के लिए किया गया है जिससे छात्र अध्यापक अधिगम की समस्या का विश्लेषण कर उसका निदान तथा उपचार कर सकें। इस प्रतिमान में विशेषतः तथ्यों एवं सूचनाओं का संग्रह किया जाता है. अत: सामाजिक विज्ञान विषयों के शिक्षण में यह अधिक लाभकारी है।
इस प्रतिमान हेतु हिल्दा तबा ने तीन शिक्षण व्यूह (Teaching Strategies) बताये हैं:
(1) सम्प्रत्यय का निर्माण करना (Concept formation),
(2) आँकड़ों की व्याख्या करना (Interpretation of Data); एवं
(3) सिद्धान्तों का प्रयोग करना (The Application of principles)
(1) उद्देश्य अथवा केन्द्रबिन्दु- इस शिक्षण प्रतिमान का मुख्य उद्देश्य मानसिक क्रियाओं का विकास करना तथा सिद्धान्तों का बोध करने की क्षमता का विकास करना है। चिन्तन प्रक्रिया के सम्बन्ध में हिल्दा तबा का कहना है कि चिन्तन का कार्य प्राणी तथा तथ्यों के मध्य सम्बन्ध स्थापित करना है तथा आगमन प्रतिमान का मुख्य उद्देश्य इसी प्रकार के चिन्तन का विकास करना है।
(2) संरचना- इस शिक्षण प्रतिमान में ऐसी परिस्थितियाँ उत्पन्न की जाती हैं जिनसे मानसिक प्रक्रियाओं का विकास हो सके। इस प्रतिमान की संरचना विशेषत: तीन कौशलों पर निर्भर करती है जिनमें से प्रत्येक के तीन-तीन भाग हैं, इस प्रकार कुल 9 अवयव इसमें पाये जाते हैं :
(1) व्याख्या,
(2) समूहीकरण,
(3) पहचान,
(4) तथ्यों के मध्य सम्बन्ध बनाना,
(5) सम्बन्ध व्याख्या,
(6) निष्कर्ष निरूपण,
(7) उपकल्पना निर्माण,
(8) उपकल्पनाओं की व्याख्या,
(9) उपकल्पनाओं की जाँच।
(3) सामाजिक प्रणाली- इस प्रतिमान में शिक्षक-छात्रों का पारस्परिक सहयोग बना रहता है। शिक्षक शिक्षण की सभी क्रियाओं पर नियन्त्रण करता है, किन्तु कक्षा में सहयोग की भावना रहती है। इसमें छात्र सक्रिय रहते हैं। इसमें लोकतन्त्रात्मक भावनाओं का अनुसरण किया जाता है तथा शिक्षक पथ-प्रदर्शक के रूप में कार्य करता है।
(4)संभरण व्यवस्था- आगमन प्रतिमान की सफलता के लिए पर्याप्त मात्रा में साहित्य तथा उपकरणों की आवश्यकता होती है । अध्यापक को इन उपकरणों का प्रयोग करने में दक्ष होना चाहिए।
(5)मूल्यांकन- इस प्रतिमान में छात्रों के व्यवहार का मूल्यांकन करने हेतु प्रयोगात्मक परीक्षाएँ, निबन्धात्मक तथा वस्तुनिष्ठ प्रश्नों का सहारा लिया जाता है।
(6)उपयोग- इस प्रतिमान का प्रयोग सामाजिक विषयों के शिक्षण हेतु उपयोगी है। यह दूरदर्शन अनुदेशन, प्रत्यय निर्माण तथा शिक्षण की भूमिका के निर्वाह में महत्त्वपूर्ण योगदान देता है। इसमें शिक्षण कौशल, प्रश्नोत्तर तथा चिन्तन कार्य द्वारा शिक्षण को प्रभावशाली बनाया जाता है। इसकी सहायता से छात्रों में सृजनात्मकता तथा उत्पादक चिन्तन की क्षमता का विकास किया जा सकता है।
हिल्दा तबा का पाठ्यक्रम प्रतिमान(Hilda Taba Curriculum Model)
इन सोपानों को हम निम्न प्रकार स्पष्ट कर सकते हैं-
1. प्रथम सोपान-उद्देश्यों का निर्धारण (Identification of Objectives) – हिल्दा टाबा के प्रथम सोपान के अन्तर्गत शिक्षा के उद्देश्यों की दृष्टि से पाठ्यक्रम का मूल्यांकन किया जाता है। इसमें ज्ञानात्मक, भावनात्मक क्रियात्मक, सृजनात्मक एवं प्रत्यक्षीकरण उद्देश्यों से सम्बन्धित प्रमाणों को एकत्रित करके शैक्षिक उद्देश्यों का निर्धारण किया जाता है। एक आधार बनाया जाता है।
2. द्वितीय सोपान-शिक्षा अधिगम क्रियाओं के लिए प्रमाण (Evidence on Teaching Learning Operations)- द्वितीय सोपान शैक्षिक अधिगम का प्रमाण प्रस्तुत करता है। इस सोपान के अन्तर्गत समुचित शिक्षण विधियों, प्रविधियों पाठ्य सामग्री को प्रयुक्त करके अधिगम के लिए परिस्थितियाँ उत्पन्न की जाती हैं तथा अधिगम-अनुभवों हेतु प्रमाण एकत्रित किए जाते हैं।
3. तृतीय सोपान-अधिगम को प्रभावित करने वाले घटकों के लिए प्रमाण (Evidence on Factors Affecting Learning)- इसके अन्तर्गत अधिगम को प्रभावित करने वाले घटकों के लिए प्रमाण एकत्रित किए जाते हैं। ये प्रमाण पाठ्यक्रम निर्धारण में सहयोग देते हैं। उदाहरणार्थ- पुनर्बलन एवं अभिप्रेरणा से छात्र अधिक सीखते हैं अभ्यास अधिगम को स्थायी बनाता है दृश्य-श्रव्य सामग्री का प्रयोग बालकों के अधिगम को प्रभावित करता है।
4. चतुर्थ सोपान-उद्देश्यों से सम्बन्धित छात्रों के व्यवहार के लिए प्रमाण (Evidence on Pupil Behaviour Pertaining Objectives )- चतुर्थ सोपान अथवा अन्तिम सोपान के अन्तर्गत पाठ्यक्रम की सार्थकता एवं उपादेयता की पुष्टि की जाँच की जाती है। यह जाँच उद्देश्यों की दृष्टि से की जाती है। अतः परीक्षण का स्वरूप उद्देश्य केन्द्रित है अतः व्यवहार परिवर्तन के लिए प्रमाणों का संकलन किया जाता है। इन प्रमाणों के आधार पर पाठ्यक्रम का सुधार एवं विकास किया जाता है। हिल्दा टाबा ने इन्हीं सोपानों के आधार पर पाठ्यक्रम के प्रारूप हेतु चार अवस्थाओं का भी उल्लेख किया है। इन अवस्थाओं एवं सोपानों में बहुत अधिक समीपता भी है, ये चार अवस्थाएँ निम्नलिखित हैं-
1. मूल्यांकन हेतु आवश्यक प्रदत्तों के स्वरूप का निर्धारण करना एवं उसे एकत्र करना।
2. आवश्यक यन्त्रों एवं प्रक्रिया का चयन करना अथवा उनके स्वरूप को निर्मित करना एवं निर्धारित करना ।
3. आवश्यक परिवर्तन से सम्बन्धित परिकल्पना के विकास हेतु प्रदत्तों का विश्लेषण एवं अर्थापन करना ।
4. परिकल्पना को कार्य रूप में परिवर्तित करना । अतः इस प्रतिमान में अवस्थाओं अथवा सोपानों का अनुसरण करते हुए प्रमाणों के आधार पर पाठ्यक्रम का विकास एवं सुधार किया जाता है। पाठ्यक्रम विकास हेतु यह प्रतिमान बहुत उपयोगी माना जाता है।