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डलहौजी की हड़प नीति पर प्रकाश डालिए

लार्ड डलहौजी का परिचय

लार्ड हार्डिंग के पश्चात सन् 1848 ई० में डलहौजी भारत का गवर्नर-जनरल बनकर आया। वह घोर साम्राज्यवादी गवर्नर-जनरल था। देशी राज्यों का अन्त कर भारत में अंग्रेजों का एक छत्र राज्य स्थापित करने की उसकी उत्कृष्ट अभिलाषा थी। उसने अपनी साम्राज्यवादी नीति सफलीभूत बनाने के लिए निम्नलिखित दो नीतियों को अपनाया(1) युद्ध की नीति और (2) अपहरण की नीति।

युद्ध की नीति

युद्ध-नीति के द्वारा डलहौजी ने निम्नलिखित राज्यों को अंग्रेजी साम्राज्य में मिलाया।

 

(1) पंजाब-

सन् 1848 ई० के दूसरे युद्ध में सिक्खों को पराजित करने के बाद डलहौजी ने मार्च, 1849 ई० में पंजाब को अंग्रेजी राज्य में मिला लिया। महाराजा दिलीपसिंह को पेन्शन दे दी गई। पंजाब की विजय से पश्चिम में अंग्रेजी राज्य सुरक्षित बन गया।

(2) सिक्किम-

पंजाब के बाद सिक्किम भी डलहौजी की साम्राज्यवादी नीति का शिकार हुआ। युद्ध में वहाँ का राजा परास्त हुआ और सिक्किम को सन् 1849 ई० में अंग्रेजी राज्य में मिला लिया गया।

(3) ब्रह्मा-

सन् 1852 ई० में ब्रह्मा का द्वितीय युद्ध हुआ। इस युद्ध में डलहौजी को परी सफलता मिली और दक्षिणी ब्रह्मा अंग्रेजों के अधिकार में आ गया। ब्रह्मा का निचला भाग और ‘पीग’ प्रान्त अंग्रेजी राज्य में सम्मिलित कर लिये गये। इससे अंग्रेजी राज्य की पूर्वी सीमा सुरक्षित हो गई।

राज्यापहरण की नीति या गोद निषेध सिद्धान्त

लार्ड डलहौजी साम्राज्यवादी नीति से ओत-प्रोत था। वह देशी राज्यों का अस्तित्व मिटा देना चाहता था और अंग्रेजी साम्राज्य का विस्तार करना चाहता था। अतः इस लक्ष्य को पूरा करने के लिए उसने एक नीति का अवलम्बन किया जो गोद-निषेध सिद्धान्त के नाम से प्रसिद्ध है। इस नीति का अर्थ था “कि कोई भी देशी नरेश ब्रिटिश सरकार की आज्ञा के बिना किसी लड़के को गोद नही ले सकता था। अतः अंग्रेजों की स्वीकृति के बिना गोद लिया हुआ पुत्र देशी नरेश के राज्य का उत्तराधिकारी नहीं हो सकता था।” लार्ड डलहौजी की इस नीति के निम्नलिखित सात देशी राज्य शिकार बने-

(1) सतारा-

सन् 1848 ई० में सतारा के निस्संतान राजा की मृत्यु हो गई। मृत्यु के पहले उसने एक बालक गोद ले लिया था। परन्तु लार्ड डलहौजी ने सतारा को इस आधार पर अंग्रेजी राज्य में सम्मिलित कर लिया कि यहाँ के राजा ने अपने उत्तराधिकार की स्वीकृति कम्पनी की सरकार से प्राप्त नहीं की थी।

(2) नागपुर-

सन् 1885 ई० में यहाँ के राजा राघोजी भोंसले की मृत्यु हो गई। उसके कोई पुत्र नहीं था। उसने एक बालक को गोद लेने के लिए अंग्रेजों की स्वीकृति माँगी परन्तु उससे पूर्व ही उसकी मृत्यु हो गई। उसकी पत्नी ने राघोजी की आज्ञा के अनुसार यशवन्तराव को गोद ले लिया। परन्तु डलहौजी ने इसे स्वीकार नहीं किया और नागपुर को अंगरेजी राज्य में मिला लिया।

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(3) झाँसी-

सन् 1853 ई० में झाँसी का राजा निस्सन्तान मर गया। रानी लक्ष्मीबाई ने एक बालक गोद ले लिया। परन्तु डलहौजी ने इस बालक को राज्य का अवैध उत्तराधिकारी घोषित कर सन् 1854 ई० में झाँसी को अंग्रेजी राज्य में मिला लिया।

(4) छोटे राज्य-

उपर्युक्त राज्यों के अलावा संभलपुर (1849), जैतपुर (1841), बघाट (1859) तथा उदयपुर (1852) भी ‘गोद-निषेध‘ सिद्धान्त के अन्तर्गत अग्रेजी राज्य में मिला लिये गये।

बरार का विलीनीकरण

हैदराबाद के निजाम पर कम्पनी का ऋण था, जिसे न दे सकने के कारण डलहौजी ने बरार प्रदेश को उनसे छीन लिया।

कुशासन के आरोप पर अवध का अपहरण-

डलहौजी की साम्राज्यवादी नीति का अन्तिम शिकार अवध बना। अगरेजों ने अवध के नवाब वाजिदअली शाह से अवध का राज्य कम्पनी को देने को कहा परन्तु नवाब ने इसे अस्वीकार कर दिया। उस पर डलहौजी ने सेना की सहायता ली। सन् 1856 ई० में सेना ने बलपूर्वक लखनऊ पर अधिकार कर लिया, इस प्रकार कुशासन का आरोप लगा कर अवध अन्यायपूर्वक अग्रेजी राज्य में मिला लिया गया।

पदों और पेन्शनों की समाप्ति-

इन राज्यों के अलावा लार्ड डलहौजी ने देशी नरेशों को उनकी उपाधियों तथा पेन्शनों से भी वंचित कर दिया। पेशवा बाजीराव की मृत्यु सन 1853 ई० में हो गई। नाना साहब उसका गोद लिया हुआ पुत्र था। उसकी वह पेंशन बन्द कर दी गई जो पेशवा बाजीराव को अंगरेजों की तरफ से मिलती थी। कर्नाटक के शासक का देहान्त होने के बाद उसको मिलने वाली वृत्ति बन्द कर दी गई और किसी को उसका उत्तराधिकारी स्वीकार नहीं किया। तन्जौर का राजा भी निस्सन्तान मर गया। अतः  डलहौजी ने वहाँ के राजा के पद का अन्त कर दिया।

इस प्रकार यह हम देखते हैं कि लार्ड डलहौजी ने देशी राज्यों को ब्रिटिश राज्य में सम्मिलित कर अंग्रेजी राज्य का खूब विस्तार किया। पर इससे भारतीयों में बड़ा असंतोष उत्पन्न हुआ और डलहौजी के जाने के एक वर्ष बाद ही क्रान्ति हो गई।

डलहौजी के सुधार

ब्रिटिश साम्राज्य का विस्तार करने के साथ-साथ लाई डलहौजी ने शासन कार्य भी बड़ी सतर्कता से किया। उसने निम्नलिखित सुधार किये-

(1) सेना सम्बन्धी सुधार

डलहौजी के काल में अंग्रेजी राज्य का काफी विस्तार हो गया था। अतः उसने मेरठ को तोपखाने का मुख्य केन्द्र बनाया तथा सैनिक अड्डे बनाये। उसे भारतीय सैनिकों पर विश्वास नहीं था। अतः उसने उन्ह छाटान छोटी टुकड़ियों में बाँटकर उन्हें दूर-दर रक्खा ताकि वे षड्यन्त्र न कर सके।

(2) सार्वजनिक निर्माण विभाग की स्थापना-

डलहौजी ने सार्वजनिक निमाण, कार्यों में विशेष रुचि ली। उसने इसके लिए एक सार्वजनिक निर्माण विभाग की स्थापना की। यह विभाग चीफ इंजीनियर के नियन्त्रण में कार्य करता था। सड़कों, पुलों, नगरी, भवनों आदि का निर्माण कराने का उत्तरदायित्व इस विभाग पर था। उसने बम्बई तथा मद्रास में भी इस विभाग की स्थापना कराई।

(3) डाक व्यवस्था-

भारत में डाकखाना विभाग की स्थापना करने का श्रेय भी डलहौजी को प्राप्त है। उसने टिकट की प्रथा चलाई और डाक की दरें निश्चित कर दी।

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(4) तार की व्यवस्था-

डलहौजी ने भारत में तार व्यवस्था प्रारम्भ की। प्रमुख स्थानों पर तारघर खोले गये। इस प्रकार एक स्थान से दूसरे स्थान तक तार द्वारा संदेश भेजे जाने लगे।

(5) रेलों की व्यवस्था-

भारत में रेलों का चलना भी डलहौजी के शासन-काल में शुरू हुआ। सबसे पहली रेलवे लाइन सन् 1853 ई० में बम्बई से थाना तक चलाई गई। इसके बाद अन्य रेलवे लाइनें बिछाई गई।

(6)सिंचाई की व्यवस्था-

डलहौजी ने सिचाई की उपयुक्त व्यवस्था की ओर ध्यान दिया। इसके लिए उसने पुरानी नहरों का जीर्णोद्धार कराया और नई नहरें खदवाई। उसने गंगा नहर को पूरा कराया और पंजाब में नहरों के निर्माण की एक विस्तृत योजना बनाई गई।

(7) सड़कों की व्यवस्था-

डलहौजी ने अनेक कच्ची-पक्की सड़कों का निर्माण कराया। कच्ची सड़कों को पक्का करवा दिया। इससे व्यापार को बड़ा प्रोत्साहन मिला।

(8) शिक्षा सम्बन्धी सुधार-

डलहौजी ने शिक्षा की ओर भी ध्यान दिया। उसने प्रत्येक कमिश्नरी में एक सरकारी स्कूल खुलवाया। स्त्री-शिक्षा पर उसने बड़ा बल दिया। ऐंग्लो वर्नाक्यूलर तथा हाई स्कूल खोलने की व्यवस्था की गई। गैर सरकारी स्कलों को सरकारी सहायता प्रदान की गई। कलकत्ता, मद्रास तथा बम्बई में विश्वविद्यालय खोलने की व्यवस्था की गई।

(9)यापारिक सुधार-

लार्ड डलहौजी का यह उद्देश्य था कि ब्रिटिश पूँजी भारतीय बाजारों में आये। अतः उसने उन्मुक्त व्यापार (Free Trade) के सिद्धान्त का असर किया। उसने भारत के सभी बन्दरगाहाको सभा के लिए खोल दिया और व्यापार पर से रोक हटा दिये। फल यह हुआ कि इंग्लैण्ड का माल भारत में सस्ते दामों पर बिकने लगा और यहाँ का कच्चा माल बाहर जान लगा। उसकी यह नीति भारतवासियों के लिए बड़ी हानिकारक सिद्ध हुई।

वस्तुतः लार्ड डलहौजी ने जितने भी कार्य किये थे सब ब्रिटिश राज्य के विस्तार एवं उन को भी लाभ हुआ। संगठन को लक्ष्य में रखते हुए किये, पर अप्रत्यक्ष रूप से उसके सुधारों से भारतवासियों को लाभ हुआ।

लार्ड डलहौजी को एक महान साम्राज्य निर्माता क्यों माना जाता है?

लार्ड डलहौजी सन् 1848 ई० में भारत का गवर्नर जनरल बनकर भारत आया। उसने भारत आकर साम्राज्यवादी नीति अपनायी। उसने अगरेजी साम्राज्य विस्तार के लिए जो उपाय किये, वे थे-विलय, यदि राजा निःसंतान मर जाय तो देशी राजाओं के राज्यों का अपहरण कर लेना। उसने अपनी राज्य हड़प नीति के अन्तर्गत सतारा, नागपुर, झाँसी, बरार, अवध, संभलपुर, तन्जोर, बघाट तथा उदयपुर आदि राज्यों की ब्रिटिश साम्राज्य में मिलाकर ब्रिटिश साम्राज्य की नींव सुदृढ़ की।

लार्ड डलहौजी विस्तारवादी नीति का समर्थक था। उसने बर्मा तथा सिक्खों के देशी राजाओं को हटाकर उनके राज्य को अंगरेजी साम्राज्य में मिला लिया। इस प्रकार उसने अपने आठ वर्षों के समय में साम्राज्य-वृद्धि के सर्वाधिक प्रयास किये।

डलहौजी ने भारत में ब्रिटिश साम्राज्य की स्थापना ही नहीं की बल्कि उसने अनेक प्रशासनिक एवं सामाजिक सुधार किये जिससे जनता काफी लाभान्वित हुयी। लार्ड कर्जन के शब्दों में-“इंग्लैण्ड आज भी भारत में ब्रिटिश साम्राज्य की स्थापना, विस्तार और सुदृढ़ीकरण की दिशा में उसके कार्यों का प्रशंसक है।”

 

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