वस्तुनिष्ठ परीक्षण क्या है

वस्तुनिष्ठ परीक्षण क्या है?,विशेषताएँ एवं सीमाएँ | Objective Type Test in Hindi

वस्तुनिष्ठ परीक्षण(OBJECTIVE TYPE TEST)

अध्यापक निर्मित वस्तुनिष्ठ परीक्षण को नवीन प्रकार की परीक्षा से भी जाना जाता है क्योंकि इनका जन्म वर्तमान शताब्दी के प्रथम दशक में ही हुआ। निबन्धात्मक परीक्षाओं के दोषों को जैसे-जैसे समझा जाने लगा वैसे-वैसे अध्यापक निर्मित वस्तुनिष्ठ परीक्षणों को प्रोत्साहन मिलने लगा। आज के युग में तो यह इतने उपयोगी सिद्ध हो चुके हैं कि मौखिक एवं लिखित दोनों ही प्रकार से इनका प्रयोग किया जाने लगा। जीवन की जटिलतम परिस्थितियों में व्यक्ति को निर्देशन प्रदान करने, विषय-वस्तु के सम्बन्ध में भविष्यवाणी करने तथा अन्य दैनिक कार्यों में उनकी उपयोगिता को समझा जाने लगा। आज इनका प्रयोग लगभग समस्त विद्यालय विषयों के अध्ययन में किया जाता है। अब प्रश्न उठता है कि अध्यापक निर्मित वस्तुनिष्ठ परीक्षण से हमारा क्या आशय है ? इन परीक्षणों से हमारा अभिप्राय उन परीक्षणों से है जिनकी रचना अध्यापक अपने अनभवों के आधार पर उद्देश्यों एवं आवश्यकताओं की पूर्ति हेतु करता है।

इन परीक्षणों में उद्देश्यों में पर्ण रूप से ही निश्चित कर लिया जाता है तथा समस्त पाठ्य-वस्तु में से पदों का चयन कर उन्हें एक परीक्षण के रूप में छात्रों के सम्मुख प्रस्तुत किया जाता है। फिर उनके द्वारा यह देखने का प्रयास किया जाता है कि किसी निश्चित क्षेत्र में व्यक्ति की योग्यताओं का वैज्ञानिक ढंग से मापन हो रहा है या नहीं। इसमें बालकों की सफलता देखने हेतु कोई निश्चित स्तर निर्धारित नहीं किया जाता है बल्कि समस्त व्यक्तियों पर दिये गये परीक्षण फलांकों के आधार पर व्यक्ति की सफलता एवं असफलता के सम्बन्ध में जाना जाता है।

 

वस्तुनिष्ठ परीक्षणों के कार्य (Functions of Objective Tests)

(i) यह छात्रों के सीखने तथा अध्यापक के सीखने की प्रक्रिया को प्रभावशाली बनाते हैं जिससे कि पठन-पाठन स्थितियों में सफलता हासिल हो सके।

(ii) यह फलांकों के माध्यम से प्रेरणा प्रदान करते हैं तथा इनमें वस्तुनिष्ठता के कारण किसी भी शिकायत का अवसर नहीं मिल पाता।

(iii) इनमें शिक्षा के उद्देश्यों को पहले निर्धारित किया जाता है।

(iv) यह परीक्षण छात्रों की कमियों एवं कठिनाइयों का पता लगाकर उनके निदान का प्रयास करते।

(v) शक्षिक एवं व्यावसायिक निर्देश प्रदान करने तथा व्यक्ति के सम्बन्ध में भविष्यवाणी करने में भी यह सहायक होते हैं।

(vi) छात्रों का वर्गीकरण करना एवं उन्हें स्तर प्रदान करना भी उनका मुख्य कार्य है।

 

 

अध्यापक निर्मित वस्तुनिष्ठ परीक्षणों में प्रयुक्त होने वाले प्रश्न

निबन्धात्मक प्रश्नों की भाँति अध्यापक निर्मित वस्तुनिष्ठ परीक्षणों में भावाभन्न प्रकार क प्रश्ना या पदों का प्रयोग किया जाता है। किन्तु इसके प्रश्नों का रूप सदैव भिन्न होता है। प्रश्न छोटे, सरल एवं स्पष्ट होते है तथा उनका उत्तर संक्षिप्त एवं एकार्थक होता है। मुख्य रूप से इनमे दो प्रकार के पदों का प्रयोग किया जाता है-

 

(A) पुनःस्मरण प्रकार के प्रश्न (Recall Type Items)-इस प्रकार के प्रश्नों में किसी सीखे हुए तथ्य की पुनरावृत्ति या पुनःस्मरण किया जाता है, अतएव यह परीक्षार्थी की धारणा शक्ति (Power of Retention) का मापन करने में सहायक होते हैं। इनकी रचना सुगमता के साथ होती है। इनके माध्यम से श्रेष्ठ एवं कमजोर विद्यार्थियों का पता लग जाता है। इनकी प्रमुख सीमा यह है कि केवल रटने पर बल देते हैं, विद्यार्थी कितना समझा इससे इनको कोई मतलब नहीं। ये प्रश्न भी दो भागों में विभिन्न किये जा सकते हैं-

(अ) साधारण पुनःस्मरण प्रकार के प्रश्न (Simple Recall Type Items)- इनका आधुनिक परीक्षणों  में अत्यधिक प्रयोग प्रचलित है। ये प्रश्न एक लघु वाक्य के रूप में होते हैं तथा जिनका उत्तर भी एक छोटे से वाक्य या शब्द के रूप में देना होता है,

उदाहरणार्थ-भारत की राजधानी क्या है नाम? ()

अमेरिका का राष्ट्रपति कौन है ? ()

(ब) रिक्त स्थान पूर्ति प्रकार के प्रश्न (Completion Recall Type Items)-ऐसे प्रश्नों में, प्रश्नों का वाक्य रूप में प्रस्तुत कर एक या अधिक रिक्त स्थान छोड़ दिये जाते हैं जिनकी पूर्ति परीक्षार्थी को करनी होती है।

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उदाहरणार्थ, ताजमहल………….. ने बनवाया था।

मेघदूत………… ने सन्……. में लिखा था।

 

(B) प्रत्याभिज्ञान प्रकार के प्रश्न (Recognition Type Items)-इन प्रश्नों में सही उत्तर को पहचान कर उनका प्रत्युत्तर देना होता है। यद्यपि यह भी परीक्षण को वस्तुनिष्ठ बनाने में सहायक होते हैं किन्तु फिर भी इनकी आलोचना की जाती है क्योकि यह अनुमान पर विशेष बल देते हैं। ये दो प्रकार के होते हैं-

(अ)एकान्तर प्रत्युत्तर प्रकार क प्रश्न (Alternate Response Type Items)-इस प्रकार का में एक कथन दिया होता है जो कि सत्य या असत्य होता है तथा परीक्षार्थी को यह बताना होता है कि यह सत्य है या असत्य। ऐसे प्रश्न पद उपलब्धि परीक्षणों के फलाको को सुगम एवं वस्तुनिष्ठ बनाते हैं किन्तु कभी-कभी कुछ ज्ञान के ऐसे क्षेत्रों में जो कि न तो पूर्णतः सत्य या असत्य हैं इनका प्रयोग नहीं किया जा सकता।

उदाहरणार्थ 1. राधाकृष्णन भारत के प्रथम राष्ट्रपति थे। (सत्य या असत्य)

2. न्यूयार्क अमेरिका की राजधानी है। (सत्य या असत्य)

(ब) बहुचयन प्रकार वाले प्रश्न (Multiple Choice Type Items)-इस प्रकार के प्रश्नों में एक कथन दिया रहता है जिसके चार-पाँच तक प्रत्युत्तर दिए रहते है जिसमें से परीक्षार्थी को सही उत्तर की पहचान करनी होती है। इनमे व्यक्ति को अनुमान लगाने का कम अवसर मिलता है क्योंकि एक ही प्रश्न के कई उत्तर होते है और उसे केवल एक सही प्रत्युत्तर छाँटना होता है जिससे फलांकन विधि की वस्तुनिष्ठता बढ़ जाता है। इन प्रश्नों के माध्यम से सीखी हुई विषय-वस्तु में विभेद करने, बालक की तर्क-शक्ति, निर्णय एव समझने की शक्ति का मापन किया जाता है। इनकी रचना करने में कठिनता होती है। चूंकि इनमें अनुमान की कम सम्भावना होती है इसलिये इनकी विश्वसनीयता एवं वैधता भी अधिक होती है। इस प्रकार के प्रश्नों को चार भागों में बाँटा जा सकता है-

(1) सरल बहुचयन प्रकार के प्रश्न (Simple Multiple Choice Type Items)-इस प्रकार के प्रश्ना में एक कथन दिया होता है जिसके सम्मुख कई प्रत्युत्तर दिये होते हैं तथा उनमें से परीक्षार्थी को केवल एक का चयन करना होता है। इनमें अनुपात, पूरक, विलोम रूपी प्रश्नों को पूछा जाता है।

उदाहरणार्थ प्रश्न- भारत का सबसे बड़ा रेलवे इंजनों का कारखाना कहाँ है ?

(उत्तर-जमशेदपुर, टाटानगर, चितरंजन, भुवनेश्वर)

प्रश्न-ठण्डे देशों में ऊनी वस्त्रों का प्रयोग इसलिये किया जाता है, क्योंकि

(वे टिकाऊ होते हैं) (वे शरीर को गर्मी देते हैं) (व सुन्दर होते हैं) (वे महँगे होते हैं)

प्रश्न-50: 100 :: 200 : ?

(50, 100,300,400,500,800)

 

(2) तुलनात्मक बहुचयन प्रकार के प्रश्न (Matching Type Multiple Choice Items) इस प्रकार के प्रश्नों में व्यक्ति को प्रश्न के अनुसार सही उत्तर का चयन करना होता है। प्रश्नों एवं उत्तरो के क्रमो में परिवर्तन होता है अर्थात् उत्तर उसी क्रम में नहीं दिए रहते हैं जिस क्रम में प्रश्न। यहाँ पर परीक्षार्थी को प्रत्येक प्रश्न का सही उत्तर ढूँढना होता है।

 

(3) वर्गीकरण बहुचयन प्रकार के प्रश्न (Classification Type Multiple Choice Items) इस प्रकार के प्रश्नों में पाँच-छ: शब्दों का एक समूह दिया होता है तथा जो शब्द समूह के अनुसार उपर्युक्त न हो उसके नीचे रेखा खींच दी जाती है;

उदाहरणार्थ

1. तुलसीदास, प्रेमचन्द, सुभाष बोस, रवीन्द्रनाथ टैगोर।

2. जयपुर. लखनऊ, श्रीनगर, भूपाल, इलाहाबाद, चण्डीगढ़।

 

(4) पुनर्व्यवस्थित बहुचयन प्रकार के प्रश्न (Rearranged Type Multiple Choice Items)- इस प्रकार के प्रश्नों में विद्यार्थी को किसी तथ्य को किसी निश्चित आधार पर पुनर्व्यवस्थित करने को कहा जाता है, उदाहरणार्थ-मुगल काल में शासन करने वाले बादशाहों को ऐतिहासिक रूप से व्यवस्थित करे-बाबर, हुमायूँ, शाहजहाँ, जहाँगीर, अकबर, औरंगजेब ।

 

 

अध्यापक निर्मित वस्तुनिष्ठ परीक्षण की विशेषताएँ/वस्तुनिष्ठ परीक्षण के गुण

(1) समय की मितव्ययता- इनके प्रयोग में कम समय व्यय होता है। इसलिये परीक्षण का व्यक्ति किसी प्रकार की थकान एवं उदासीनता महसूस नहीं करते। इसके अतिरिक्त इनके फलांक भी कम समय लगता है।

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(2) फलांकन की सगमता- इसमें फलांकन प्रदान करना अत्यधिक सुलभ तथा यान्त्रिक का इसके करने के लिये किसी विशेषज्ञ की आवश्यकता नहीं होती बल्कि कुजी की सहायता से कोई भी अक प्रदान कर सकता है। अब तो कम्प्यूटर की सहायता से यह प्रक्रिया आर भी सरल हो गयी है।

(3) पाठ्य-वस्तु की व्यापकता- चूँकि इन परीक्षणों में प्रश्नों की संख्या अत्यधिक होती है। इसलिये समस्त पाठ्य-वस्तु से सैम्पिल लेना सम्भव होता है जिससे परीक्षार्थी के पाठ्य-वस्तु सम्बन्धी ज्ञान का उचित रूप से मापन हो जाता है। इन परीक्षणों की पाठ्य-वस्तु वैधता अधिक होती है।

(4) वस्तुनिष्ठता-यह परीक्षण अत्यधिक वस्तुनिष्ठ होते हैं। इसकी फलांकन विधि भी वस्तनिष्ट होती है जिससे आत्मगत तत्वों को कोई स्थान नहीं मिलता है। इनमें परीक्षार्थी जितने प्रश्न सही रूप से हल कर लेता है। उसे उतने ही अंक मिल जाते हैं जबकि निबन्धात्मक परीक्षाओं में अंक परीक्षार्थी के। ज्ञान पर नहीं बल्कि परीक्षक के मूड एवं विचारों पर आधारित रहते हैं। अतएव, वस्तुनिष्ठता के कारण। इनमें पक्षपात की बहुत कम सम्भावना रहती है तथा अध्यापक को किसी विशेष छात्र को लाभ या हानि पहुँचाने का अवसर भी नहीं मिल पाता है।

(5) अधिक वैध एवं विश्वसनीय- चूँकि यह परीक्षण किसी निश्चित उद्देश्य को लेकर बनते हैं अतएव यह अधिक वैध होते हैं। परीक्षण के पदों से ही यह ज्ञात हो जाता है कि अमुक प्रश्न किस उद्देश्य था। योग्यता का मापन कर रहा है। इन परीक्षणों की वैधता के साथ-साथ यह अधिक विश्वसनीय भी होते हैं। यदि इन परीक्षणों को कई बार दिया जाये तब भी परीक्षार्थी वही अंक प्राप्त करेगा। दूसरे, यदि एक परीक्षार्थी की पुस्तिका की जाँच पाँच परीक्षकों से कराई जाये तब भी वह विश्वसनीय होगा।

(6) लिखने का कोई प्रभाव नहीं- इस प्रकार के परीक्षणों में लिखने की अधिक आवश्यकता नहीं होती।

(7) प्रेरणा का स्रोत- चूँकि इस प्रकार के परीक्षणों में विभिन्न नवीन प्रकार के पदों को सम्मिलित किया जाता है जिससे परीक्षार्थी को प्रेरणा मिलती है। विषय-वस्तु की नवीनता थकान के प्रभाव को दूर करती है।

(8) मानकीकरण की सम्भावना– इस प्रकार के परीक्षणों के मानकीकरण की काफी सम्भावना रहती है। एक लम्बे समूह पर उन्हें प्रशासित कर, मानकों को ज्ञात कर मानकीकरण किया जा सकता है।

(9) निरर्थक सामग्री को कोई महत्व नहीं– इनमें परीक्षार्थी के प्रत्युत्तर नियन्त्रित होते हैं इसलिये वह निरर्थक सामग्री का प्रयोग नहीं कर सकता है जिसकी सम्भावना निबन्धात्मक परीक्षाओं में रहती है।

(10) रटने का बहिष्कार- इन परीक्षणों में समस्त विषय-वस्त के समझने की आवश्यकता होती है। तभी उसे सफलता मिल सकती है। ये रटने का पूर्ण रूप से बहिष्कार करती है।

 

 

वस्तुनिष्ठ परीक्षण की सीमाएँ/वस्तुनिष्ठ परीक्षण के प्रमुख दोष

(1) निर्माण में कठिनता- इन परीक्षणों की रचना अत्यन्त कठिन होती है। इसकी रचना में अत्यधिक परिश्रम, समय एवं धन की आवश्यकता होती है। इसके निर्माण हेत विशेषज्ञ की आवश्यकता होती है। विषय-वस्तु के सम्पूर्ण भागों से पदों का चयन करना कठिन हो जाता है।

(2) अनुमान को प्रोत्साहन– इनमें अनुमान को प्रोत्साहन मिलता है क्योंकि बहुधा व्यक्ति अनुमान से ही प्रश्नों का उत्तर देते हैं। उदाहरणार्थ: यदि वह बिना सोचे ही दो प्रत्युत्तर वाले प्रश्नों का उत्त तब 50% उत्तर सही देने की सम्भावना रहती है अतएव, ऐसी स्थिति में पाठ्य-वस्तु का बिल्कुल शा होने पर भी उसे कुछ अंक मिल जाते हैं।

(3) विचारों एवं अभिव्यक्ति की नगण्यता।

(4) व्यक्तित्व का अध्ययन नहीं।

(5) कमजोरियों को जानना कठिन।

(6) अध्ययन पर अधिक कार्य का होना।

(7) नकल की अधिक सम्भावना।

इस प्रकार से हमने देखा कि निबन्धात्मक परीक्षणों के गुण, वस्तुनिष्ठ परीक्षणों के दोष तथा निबन्धात्मक परीक्षणों के दोष वस्तुनिष्ठ परीक्षणों के गुणों से मिलते हैं।

 

 

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