दक्षिण भारत के राजवंश
(चोल,चालुक्य,पल्लव एवं संगम वंश)

संगम वंश कालीन साहित्य में ‘कोन’, ‘को’ एवं ‘मन्नन’ शब्द राजा के लिए प्रयुक्त होते थे। संगम या संघम प्राचीन तमिल शब्द है,

पल्लव शासक सिंहविष्णु (575-600 ई.) ने ‘अवनिसिंह’ की उपाधि राज धारण की थ। कशाकुडी दान पत्र से ज्ञात होता है कि सिंहविष्णु जल ने चोल, पाण्ड्य, सिंहल तथा कलम्र के राजाओं को पराजित किया।

नरसिंहवर्मन प्रथम (630-668 ई.) ने ‘महामल्ल’ की उपाधि धारण में की थी।
महेंद्रवर्मन प्रथम (600-630 ई.) ने ‘मत्तविलासप्रहसन’ नामक हास्य समय ग्रंथ की रचना की थी।

संगम साहित्य में केवल चोल, चेर एवं पाण्ड्य राजाओं के उद्भव प्रदर्श और विकास का विवरण प्राप्त होता है। चोल स्थापत्य के उत्कृष्ट नमूने तंजौर के शैव मंदिर

कृष्णा तथा तुंगभद्रा नदियों से लेकर कुमारी अंतरीप तक का विस्तृत भू-भाग प्राचीन काल में तमिल प्रदेश का निर्माण करता था।

चोलों की राजधानी तंजौर थी। इसके अतिरिक्त गंगैकोंडचोलपुरम् भी चोलों की राजधानी बनी थी। संगम काल में चोलों की राजधानी उरैयूर थी।

चोल शासक राजराज I ने सिंहल (श्रीलंका) पर आक्रमण करके उत्तरी सिंहल को जीतकर अपने राज्य में मिला लिया।

कदंब राजाओं की राजधानी वनवासी थी। इस राजवंश (कदंब) स्थापना मयूरशर्मन ने की थी। कदंब राज्य को पुलकेशिन द्वितीय ने अपने राज्य में मिला लिया था।

दक्षिण भारत के राजवंश
(चोल,चालुक्य,पल्लव एवं संगम वंश)

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